Monday, December 29, 2008

किस्मत का धनी कसाब

मुंबई कोहराम में सैनिक कारबाई से आतंकियों का ढेर होना और अफज़ल आमिर कसाब का बचना पुरे विश्व के लिए एक चुनौती भरा प्रश्न है तो वही कसाब के लिए किस्मत का धनी होना
पाकिस्तान को ठोस सबूत चाहिए , भारतीये अदालत को भी ठोस सबूत चाहिए, मानवाधिकार को भी ठोस सबूत चाहिए और अंतरराष्ट्रीय अस्तर पर भी ठोस सबूत की जरूरत होगी ऐसे में तो "कसाब" किस्मत का धनी ही माना जाएगा जिसने सैकड़ों लोगो को के ५६ से भुन कर स्वयम जिन्दा है और "भी आई पी सुरक्षा" में गर्व से कह रहा है - "करकरे को मैंने मारा ताज को मैंने उड़ाया सैकडो लोगो की जाने मैंने ली" ।
सुक्र है कसाब की- आज भगत सिंह नही है वरना तुम्हे यह सब कहने की आज़ादी कदापि नही मिलतीअब देखना है की भारतीये संविधान में तुम्हे किस तरह की मौत मिलती है। मौत मिलना तुम्हे तय है ..... बस इंतज़ार है दुनिया को तुम्हारी मौत का सिर्फ़ मौत का

Saturday, December 20, 2008

अवसरवादियों का प्रवचन

लोग कहते आए हैं की अपने गिरिवान या अपने को सही कर ले तो देश अपने आप सुधर जाएगा लेकिन मैं अपने ४२ वें बसंत में देखा है की लोग नही सुधरे
मैं डेल्ही में १९९० के दशक में कदम रखा और संघ लोक सेवा की तैयारी में लग गया मेरी सोंच बिल्कुल पारदर्शिता थी मैं प्रत्येक पहलुओं पर पारदर्शिता के साथ-साथ अनुशासनात्मक कदम रखता आया किंतु हम पीछे के कतार में ही अपने को पायाआप आम लोगों के दिन-चर्चा पर ध्यान दे तो आपको लगेगा की कही कही सामंतवादी इन्हे दबोच रखे हुए है और कह रहा है की पहले अपने गिरिवान में झांक कर देखो
जीवन के हर पडाव पर आपा-धापी हैचाहे वह इंदिरा आवास की योजना हो, प्रधामंत्री रोजगार योजना हो, ग्रामीण रोजगार योजना हो, कोर्ट-कह्चरी, स्वाथ्थ्य योजना, बिजली-पानी, मकान-नक्शा, रेलवे आरक्षण, राज्य सरकार या केन्द्र सरकार की नौकरियां आदि क्षेत्र में अराजकता व्यापक पैमाने पर हैऔर इन अराजकता के पीछे सामंतवादी मानसिकता छुपी है
ये तो शासन - प्रशासन की बात हैआप मीडिया के क्षेत्र में भी देखे तो वंहा भी वे वैसी ही ख़बर को लेते है जिससे उन्हें फ़ायदा होवे वैसी ख़बर को आमतौर पर जगह नही देते जिससे की उनके व्यापार पर असर डालेआप अगर अखवार पढ़े और खबरों पर नजर डाले तो बहुत कुछ समझ में जायेगीकई पत्रकार ऐसे मिल जायेंगे जो अवसरवादी है
प्रत्येक व्यक्ति अपने गिरिवान में एक वार जरूर झांक कर देखता है किंतु हालत ऐसे उत्पन्न होते है जिससे वह भौचक होकर कुछ भी करने-सोंचने को विवश हो जाता यही है अवसरवादियों का प्रवचन ।
अगर सामंतवादी गिरेवान और देश सुधरने की बात करते हैं तो सबसे पहले उन्हें पारदर्शिता और अनुशासन में आना होगा लेकिन यह संभव ही नही है चुकी भारत में आज भी गुलामी प्रथा कायम है भले ही भारत आजाद हो गया होभारत में चाटुकारों और चापलुस्वाजो की कमी नही, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इनकी संख्या अत्यधिक है
इसे पढ़ने के बाद क्या आप भी कहेंगे की गिरेवान में झांक कर देखो देश अपने आप सुधर जाएगा?

Friday, December 19, 2008

क्या राहुल गाँधी बिहार का नेतृत्व करेंगे?

देश के युवा कर्मठ, तेजस्वी, होनहार यवम झुझारू राहुल गाँधी अगर बिहार का नेतृत्व अपने हाँथ लेने को तैयार हो तो बिहार में एक नया संचार क्रांति लाया जा सकता है
संचार क्रांति के लिए जिन अस्त्र-शस्त्र की जरूरत होती वो राहुल गाँधी के पास हैलोकनायक जयप्रकाश ने भी १९७७ के आन्दोलन में युवाओं को हीं अपना अस्त्र-शस्त्र बनाया था और उन्हें बहुत बड़ी सफलता भी मिलीबिहार सच में गौतम बुध्ध का "विहार" है किंतु जातीय व्यवस्था ने बिहार की जनता को आर्थिक दल-दल में इस तरह से झकझोड़ दिया है मानो बिहार को कैंसर हो गयाबिहार में आपदा नाम की जंतु कभी नही आती थी लेकिन जबसे लालू, रामविलाश, नीतिश, मोदी जैसे गद्दार चेला अपना कमान चलाने लगे तभी से आपदा, विपत्ति, आर्थिक तंगी, बेरोजगारी जैसे शब्द गूंजने लगे है
बिहार में युवाओं का नेतृत्व सामने उभर कर आए तो निश्चित तौड़ पर आपदा, विपत्ति, आर्थिक बदहाली, बेरोजगारी जैसे शब्द सुनामी की तरह गौण हो जाएगापुण्य प्रशुन्य बाजपेयी को सुधीर के लिए कलम नही चलानी पड़ेगी

Wednesday, December 17, 2008

बिहार के विकाश में युवाओं की भागीदारी महत्वपूर्ण

बिहार-बिहार-बिहार हल्ला हो रहा है, लोग चर्चा - परिचर्चा कर रहे हैं फिर भी बिहार का विकाश नही हो पा रहा हैआख़िर क्यों? जबकि बिहार से ५४ प्रतिनिधि संसद में बैठकर भारत का इतिहास-भूगोल बनाते - बिगारते रहते आए हैं तो बिहार को विकाश का मार्ग प्रसस्त करने में ऐसा कौन सा रोग इन प्रतिनिधियों को लग जाता है जिससे विकाश अवरूद्ध होता है
बिहार की धरती गौतम बुध्ध, भगवान महावीर जैसे बौध्धिक विचार धारावाले को जन्म देकर पुरे विश्व में शिक्षा का संचार पैदा कर सकते हैं, गाँधी बिहार की धरती से आन्दोलन शुरू कर भारत को आज़ादी दिला सकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं तो आज बिहार को ऐसा क्या हो गया जिससे बिहार पीछे है अन्य राज्यों के तुलना मेंमुझे ऐसा लगता है की बिहार में अच्छे नेताओं की किल्लत हैजबकि बिहार के युवाओं में आज भी एक नया जोश है जो प्रतिस्पर्धा के बाज़ार में संघ लोक सेवा आयोग में बैठकर अव्वल होतेइसके अलावे देश के शीर्ष शैक्षणिक प्रतिष्ठानों में भी अपना नाम दर्ज कराने में अव्वल रहते हैं
आज के नेताओं को इन बिहारी युवाओं से प्रेरणा ले कर बिहार के विकाश में हाँथ बढ़ाना चाहिएया फिर बिहार के चौमुखी विकाश के लिए युवाओं को बिहार की राजनीत में कूदकर बिहार का बागडोर अपने हाँथ में लेना होगा तभी बिहार की तर्रक्की, बिहार का उत्थान आदि सम्भव हो पायेगा