Thursday, May 27, 2010

नितीश जी का ब्लॉग

बिहार के मुख्या मंत्री जी का ब्लॉग ! वाह-वाही से भरा पड़ा है। अगर आप इनके ब्लॉग पर कोई आरोप-प्रत्यारोप करते है तो नहीं प्रकाशित होगी। प्रकाशित वाही होगी जिसमे थोड़ी - बहुत मुख्यमंत्री जी का वाह-वाही हो। इसमे कोई सक नहीं की लालू से अच्छे मुख्या मंत्री नितीश है पर ये भी घमंड से चूर है। ये दूसरों की बात कम सुनते हाँ इनसे जो ताकतवर है उनकी बात जरूर समझते-बुझते है जैसे भेट्रण क्रिमल नटवर सिंह। नटवर सिंह को आज तक ये जेल का हवालात नहीं पहुंचा सके। बिहार की महिला चिल्लाते रह गई पर मुख्या मंत्री जी उस महिला की बात को आज तक नहीं सुन पाए। चलिए इसे अपवाद में रखते है। इसमे शक नहीं की ५ वर्षों में सिर्फ कुछ हद तक क्राइम बंद हुआ। लेकिन विकाश की बात आज भी बेईमानी है। राज्य सरकार द्वारा कौन सा ऐसा कार्य किया गया जिसे विकाश बिहार का हो गया।
सड़कों का निर्माण केंद्र सरकार का पैसा है। बिजली-पानी की हालात आज भी जस की तस बनी हुई है। बेरोजगारी आज भी चरम सीमा पर है। लड़कियों को स्कूल जाने के लिए साइकिल सिर्फ दे देने से विकाश नहीं हो जाता। नितीश जी आप अच्छे मुख्या मंत्री है पर विकाश के नाम पर आप ढिंढोरा पिट रहे है। ५ वर्ष विकाश के लिए काफी होता है। ५०% महिला को आरक्षण दे देने से विकाश नहीं होता। विकाश की परिभाषा तो बिहार की जनता ही बतलाएगी।
वैसे आप अभी तक खुशनसीब है की इस बार भी बिहार की जनता आपको ही मतदान करेगी चुकी जनता के पास विकल्प नहीं। लेकिन यह भी कहना मुश्किल लग रहा की बिहार की जनता आपको ही मतदान करे?????
मेरा अपना व्यक्तिगत राये है की युवाओं को ज्यादा से ज्यादा चुनाव लड़ाए । घिसे-पिटे नेता को दूर रखे। सायद कंही जनता दुबारा मुख्या मंत्री आपको बना डाले । विकाश के नाम पर तो हैदराबाद के मुख्या मंत्री चन्द्र बाबु नायडू चुनाव हार गए। कंही आप उन्ही का तो अनुशरण नहीं कर रहे????????????????

Sunday, May 16, 2010

ममता बनर्जी ने ठीक ही कहा यात्री जिम्मेवार.....

मैं बार-बार कह रहा हूँ की भारत देश की आबादी इतनी अधिक है की इसे संभालना किसी भी सरकार या गैर सरकार संगठन के लिए मुश्किल है। आबादी बढ़ गई पर भारत का आन्तरिक सुभिधाये नहीं बढ़ पाई रेल कर्मचारी क्या करे उसे जीतनी सुभिधाये दी गई है उसे ही वह अपना कर्तब्य समझता है। यात्रियों की संख्या को देखते हुए ट्रेन की बोगिया २०-२२ कर दी गई पर रेल ट्रैक को नहीं बढाया गया ऐसे में यह कहना बड़ा कठिन हो जाता की कौन सी गाड़िया किस प्लेटफोर्म पर आगमन करेगी।
यात्री भी मजबूर है चुकी जनसँख्या के हिसाब से जीतनी गाड़िया होनी चाहिए वो तो है नहीं अगर थोड़ी है भी तो सीट बहुत कम ऐसे यात्री एक-दुसरे पर चढ़ जाना पसंद करता चाहे किसी की जान चली जाये पर वो धक्का-मुक्की कर जाना जरूर पसंद करता।
आये दिन ऐसी घटना होती रहती है की रेल कर्मचारी को निर्धारित या घोषित प्लेटफोर्म को एका-एक बदलना पड़ता है। ऐसे में यात्रियों को भी सजग रहने की आवश्यकता होती पर यात्री एक-दुसरे यात्री का ख्याल कंहाकरने वाले वो तो एक-दुसरे की जान लेने पर तुले होते की आगे हम जाये तो हम जाये...
आप सडको पर भी यही नज़ारा देख सकते है। गाँव की ओर बस जानेवाली को भी आप देख सकते की किस तरह से यात्री एक-दुसरे पर लड़ कर यात्रा करते । लोकल सवारी चाहे वह रेल , बस या ऑटो हो सब में यात्री लादे जाते है। आखिर यात्रियों के पास क्या बिकल्प है? सरकार क्या करेगी? सरकार तो नहीं कहती की आप लादे जाओ फिर भी आप एक-दुसरे पर चढ़ के जाते हो आखिर क्यों?
जनता भी कम दोषी नहीं ? भले ही जाँच के लिए ममता जी ने कह डाला पर जनता को खुद इसकी जांच करनी चाहिए की दोषी सरकार या हम ?????????????????????????

Friday, May 14, 2010

अगर भारत में हिटलर होता .........

भा जा पाके राष्ट्रीय अध्यक्ष ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जिससे किसी को आहत पहुंचे। अगर किसी को आहत पहुंचा हो भी तो वह सही मायेने में भारत का कुत्ता (डॉग) ही होगा। अफ़सोस है की भारत की जनता ७०% गाँव में रहती है, उनके पास गुमराही समाचार के अलावा कोई ऐसा माध्यम नहीं जिससे वे लोग क्रांति ला सके। प्रिंट मीडिया या इलेक्ट्रोनिक मीडिया ये सब शहरो में ही विकसित है। बिहार के कई ऐसे नेता है जो कुत्ते के सामान है वो थाली चाटना जानते है और साथ में बिहार की जनता को थाली चटवाना भी जानगए है। अगर सही में आज हिटलर होते तो सायद बिहार के इन नेताओं को जिन्दा गोली बिच बाज़ार में मार दिया होता।
बिहार के कई ऐसे नेता है जो रहमो-करम पर जिन्दा है। अगर इन नेताओ पर सी बी आई शिकंजा कसे तो ये कंही के न रहे। इनके पास कंही न-कंही से पॉवर यानी जनता को गुमराह कर सत्ता पक्ष में आ जाते और जनता के साथ खून का होली खेलते। मीडिया को विज्ञापन का लालच देकर उनसे अपने पक्ष में लिखवाते है। यही तो इन नेताओ का चरित्र हो गया है।
गडकरी जी ने सही कहा कई ऐसे नेता देश के अंदर है जो कुत्ते के सामान है । अरे जो नेता कुत्ता रहेगा उसे तो लोग कुत्ता ही कहेगा न।
कुत्ते लोग सावधान हो जाओ नहीं तो एक न - एक दिन हिटलर आएगा ही और तुम सभी कुत्तों को जिन्दा सड़क पर जनता को खाने के लिए छोड़ देगा । जनता जब इन कुत्तों से तंग आ जाएगी तो इन कुत्तों को तो खाने का काम ही करेगी न। गडकरी जी आप चिंता न करे देश की जनता आपके साथ है। घर की मुर्गी दाल बराबर बिहार के नेता ऐसे ही है जो सत्तू और चिउरा -मिट्ठा का लालच देकर भीड़ खड़ा कर लेते चुकी इनके पास चारा जैसे कई घोटाले का पैसा जो है। आप मत घबराओ गडकरी । आप मंत्री नहीं बने इसलिए राष्ट्रीय नेता के रूप में इन कुत्तों ने अभी तक नहीं पहचाना है आपको । इन नेताओ ने मंत्री पद से देश की जनता का रुपया लूट लिया है तो ये राष्ट्रीय नेता की भाषा बोलने लग गए। गडकरी आप राष्ट्रीय नेता हो कोई जन्म से नहीं पैदा लेता राष्ट्रीय नेता इन कुत्तों को आप बता दो......

Thursday, May 6, 2010

संसद में अनंत जैसा नेता

लालू और अनंत कुमार का वाक्य युध्ध संसद में देखने और सुनने लायक तो नहीं था किन्तु भारत देश के ५४५ लोग जो भारत की तकदीर लिखते है वो इस तांडव में कुछ हंसते तो कुछ लड़ते दिखे। यह बात भी बिलकुल सही में कहा गया की लालू न तो देश के बारे में सोंचते और न ही बिहार के तर्रक्की । लालू को अगर "देशद्रोह" कहा गया तो इसमे क्या जुल्म हुआ।

लालू के राज्य-पाट में जितना अनियमितता और घोटाले का पर्दाफास हुआ क्या सिध्ध नहीं करता की देशद्रोह वाकई में वो है। लालू जातीय आधार की बात करते है तो वो बताये की कितने यदुबंसी को उंच्या शिक्षा दिलवाया कितने को विधायक और संसद का मार्ग दिखलाया अगर वो दिखलाये भी तो अपने सगे-सम्बन्धी को ही। आम यदुबंशी तो आज भी गाँव में दूध बांटने का काम ही कर रहे है । देश की जनता ने उन्हें संसद में भेजकर बहुत बड़ा गुनाह किया । देश की जनता को उनसे हिसाब-किताब पहले लेना चाहिए और साथ में यह भी पूछना चाहिए की उन्होंने भारत देश के लिए अब तक क्या किया?

संसद में वाकई अनंत कुमार जैसे कद्दावर नेता की आवश्यकता है जो लालू जैसे नेता को खुलेआम "देशद्रोह" कहने का जिगर रखता हो। अनंत कुमार जी आपको कोटिशः बधाई ।