Saturday, October 30, 2010

वोट के मामले में बिहारी जनता खामोश

बिहार के चुनाव में इस बार बहुत कुछ देखने और सुनने को मिला। चुनाव में टी एन शेषण और के जे राव का नाम भी लोगो के जुबान पर छाई रही। प्रथम चरण और द्वितीये चरण के मतदान में प्रसाशन की भूमिका थोड़ी एन डी ऐ सरकार की ओर नरम थी जो लोग २-४ वोट अगर डालना चाहते तो आसानी से डाल रहे थे इसकी वजह थी की वोटर लिस्ट से सैकड़ों की तादात में मतदाता का नाम डिलीट कर दिया गया था जिस वजह से लोगो ने बूथ पर ही धरना - प्रदर्शन करना सुरू कर दिया अन्तः प्रसाशन ने बहुत जगह तो मत डालने का अधिकार दे डाला कई जगह मतदाता नाखुश होकर बरबराते चले गए की यही नितीश सरकार का "विकाश" है।
बिहार में "विकाश" की चर्चा तो लोग कर रहे थे पर वोट किन्हें देंगे यह कहने में कतराते रहे। लेकिन मन का भेदी तो मन को टटोलने में खुछ हद तक तो कामयाब हो ही जाते। मैंने मुजफ्फरपुर संसदिये क्षेत्र में ११ विधान सभा क्षेत्र का दौरा किया कही उम्मीदवार के नाम पर एक मत नहीं बन रहा था तो कंही पार्टी भी अर्चने आ रही थी । लोग यह तय करने में लगभग सभी जगह उहापोह की स्तिथि में थे किस उम्मीदवार को अपना मत डाले । कई तो पार्टी लाइन से जुड़े थे तो कई उम्मीदवारों का चयन करने में उलझे थे ।
विकाश की बात हर जगह हो रही थी पर लोग प्रश्न भी करने से नहीं चुक रहे थे की नितीश जी ने ऐसा क्या विकाश किया अगर नितीश जी ने बिहार का विकाश किया तो फिर लड़ाई किस बात की? कांग्रेस के स्टार प्रचारक भी नितीश जी के वोट बैंक में सेंध मारने में सफल होते दिखाई दिए किन्तु ११ विधान सभा क्षेत्र से कांग्रेस एक भी जगह सीधी लड़ाई में नहीं थी।
हर जगह लगभग सीधी लड़ाई एन डी ऐ और राजद गठबंधन में ही है जो की कांटे की लड़ाई है । बिहार में आज भी जात-पात की बात गर्मजोशी के साथ देखने को मिली। ज्यादातर लोगों ने विकाश की बात को नज़रंदाज़ करते जात-पात पर ही अपना मत डालने में लगे रहे कई क्षेत्र में तो ऐसा भी देखने को मिला की अगर उनके जात का उम्मीदवार नहीं जीत रहा तो किसी तीसरे को मत डालते दिखे।
मुझे ऐसा लगता है की अभी बिहार को विकाश का मार्ग प्रसस्त करने में ५-१० वर्ष और लगेंगे तभी लोग जात-पात से उपर उठकर विकाश की बात को सही मायने में समझ पाएंगे।
बहरहाल द्वितीये और तिर्तिये मतदान तक नतीजे के तौड़ पर देखा जाये तो कांटे की टक्कर है यह कहना कठिन सा लग रहा है किसकी सरकार बनेगी। अभी नतीजे को आप ब्लॉगर के सामने रखने में मेरी जल्दबाजी होगी। मैं आप सभी को सिर्फ इतना ही बता सकते की बिहार के मतदाता खामोश है उनके दिलो-दिमाग में तो "विकाश" शब्द आ बैठा है पर जात-पात का संकट अभी भी बिहार पर है जो विकाश के रास्ते में बाधा उत्पन्न कर सकती है।

Sunday, October 3, 2010

लाइव कॉमनवेल्थ गेम्स २०१०

भारतीये यवम देश-विदेश के इतिहास में ३ अक्टूबर २०१० का दिन स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा। आज का लाइव कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीये इलेक्ट्रोनिक मीडिया सबसे पीछे दिखी जबकि भारतीय दूरसंचार नेशनल चैनल ने भारतीये समय के अनुसार ठीक शाम ७ बजे से सीधा प्रशारण दिखाने में सफल हो गए। मैं यंहा कहना चाहूँगा की सारे चैनल जो यह दावा करते है की लाइव दिखा रहे है उनका दावा आज बिलकुल व्यर्थ है और खोखला। मुझे पता नहीं की बाहरी इलेक्ट्रोनिक मीडिया मेरा मतलब है एनडीटीवी , स्टार न्यूज़ , जी न्यूज़, आज तक, आईबीएन -७ , आदी को लाइव न्यूज़ दिखाने की इजाजत थी या नहीं अगर थी भी तो ये विज्ञापन से कमाने में मशगुल थे। पर ये सब के सब भारतीये समय पर देश की जनता को लाइव दिखाने में असमर्थ थे। खैर छोड़िए !
कॉमनवेल्थ गेम्स का शुभारम्भ अपने निर्धारित भारतीये समय के अनुसार ठीक ७ बजे आतिशबाजी ढोल-ताशे, मृदंग, गाजे - बाजे, नगारे, तबले आदि के साथ आरम्भ हुआ। तबले पर नन्हा कलाकार केशव अपने हांथो का कमाल दिखा रहे थे लोग उनके वादन पर आनंदित व मुग्ध हो रहे थे जैसे ही गाजे-बाजे का कार्यक्रम ख़त्म हुआ देश-विदेश से आये मेहमान ने अपने-अपने ध्वज के साथ नेहरु स्टेडियम का फूट मार्च किया। फूट मार्च भी देखने के लायक था। खिलाडी अपने-अपने अंदाज़ में दर्शकों को रिझाने में लगे थे। एक-एक करके सभी देशों ने अपने ही अंदाज़ में फूट मार्च कर रहे थे। करोड़ों रुपये की लागत से बनी गुब्बारे भी दर्शकों को लुभाने में लगी थी वंही स्टेडियम का साज-सज्जा और रोशनी भी दर्शको को चका-चौंध कर रही थी। वाकई स्टेडियम का नज़ारा स्वर्ग से कम नहीं था जिसकी हम-आप कल्पना करते है की -"स्वर्ग कैसा होगा" ?
६० हज़ार दर्शको से भरा नेहरु स्टेडियम रंग-बिरंगे पोशाकों में कुछ-न-कुछ बयां ही कर रहे थे। जब भारतीये खिलाडियों का फूट मार्च का समय आया तो सारा स्टेडियम गूंज उठा। सभी ने बड़े उत्साह के साथ भारतीये खिलाडियों का जोरदार स्वागत किया। भारत के राष्ट्रपति , प्रधानमन्त्री , खेलमंत्री, दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी भारतीय खिलाडियों का स्वागत करने से पीछे नहीं दिखे। फूट मार्च के बाद भाषण बाजी का दौड़ चला जिसे सर्वप्रथम श्री श्री श्री कलमाड़ी ने शुरू किया। कुल मिलाकर कॉमनवेल्थ गेम्स का नज़ारा बेहद ख़ूबसूरत और स्वर्ग से कम नहीं था। शेष तो आप कंही-न-कंही देर-सबेर से यह नज़ारा देख ही लेंगे । यह लेख लिखने का अभिप्रायः मेरा यह है की लाइव देखने का आनंद ही कुछ और है। अगर आप चैनलों के माध्यम से देख रहे होंगे तो आप खेल कम विज्ञापन का आनंद ज्यादा ले रहे होंगे। चलिए तमाम उहा-पोह के बाद भी समय पर कॉमनवेल्थ गेम्स आरम्भ हो गया इसकी ख़ुशी हमसबों को है। अगर आपको मौका मिले तो जरूर ३ अक्टूबर से 13 अक्टूबर के बीच खेल को यवम दिल्ली को अवश्य देखे ।

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