भारत को आजाद हुए ६२ वर्ष हो गए किंतु आज भी भारत की तंत्र व्यवस्था ढीली और लोचपूर्ण है। एक कहावत है " जिधर देखें खीर उधर गए फिर" । भारत में अभी तक ऐसा ही देखने को मिला है। भारत में अगर आज़ादी है तो वह है " बोलने और लिखने " का। आडवानी जी जब तक गृह मंत्री रहे तब तक उन्होंने अपना जीवन परिचय किताब नही लिखा जब वो सत्ता से अलग हुए तो जीवन परिचय नाम से एक पुस्तक लिखी गई जो विवादास्पद था। उन्होंने इस पुस्तक में अपने को कंधार के घटना-क्रम से बिल्कुल अलग रखा।
आडवानी जी के कार्य-काल में कई ऐसे घटना-क्रम हुए जिसकी जांच प्रक्रिया आज तक पुरी नही हो सकी और न जाने कब तक चलेगी।
मुंबई ब्लास्ट १९९३ में भी हुई जिसकी जांच प्रक्रिया आज तक चल ही रही है। वर्ष २००८ के नवम्बर माह में आतंवादियों द्वारा मुंबई ब्लास्ट किया गया । इस घटना-क्रम को अंजाम आतंकवादियों ने जरूर दिया लेकिन इसके जिम्मेवार भारत सरकार और यंहा की तंत्र व्यवस्था है।
इस घटना के पहले हमारे खुफिया तंत्र कंहा थे, हमारे सुरक्षा कर्मी क्या कर रहे थे , हमारी सरकार क्या कर रही थी आदि सवाल सैकडों निर्दोष लोगों के मर जाने पर आपको मिलेगा वह भी सायद आपके स्वर्गवास के बाद। यही है हमारा तंत्र व्यवस्था।
भारत में एक प्रथा जबरदस्त चल पड़ी है वह यह की - बायोग्राफी । आप किसी के बाड़े में कुछ भी लिख दे । कई मिशाल है जिससे लेखक को जल्द ख्याति मिल जाती है। अगर आज कोई महिला अपने जीवन परिचय में यह लिखे की मैं ये पी जे कलम से मोहब्बत करती थी तो उसे ख्याति मिल जायेगी भले ही मामला कोर्ट में क्यूँ न जाए ।
आप अलोग-ब्लॉग पर कुछ भी लिख डालें पर इसकी खोज-ख़बर लेने वाला कोई नही यही है भारतीये तंत्र व्यवस्था।