Sunday, November 9, 2008

वारंट

जज साहब यह कैसी परम्परा है की अदालत में केस दर्ज हो जाता है और मुद्दालय को पता भी नही चल पता की उन पर केस दर्ज है। पता तब होता जब थानेदार साहब वॉरंट लेकर एकाएक उनके घर पहूँचते हैं।
कोर्ट में सिस्टम बना हुआ है की पहले सम्मन जाएगा और सम्मन का जवाब नही मिलने या उपस्थित नही होने पर हीं वॉरंट जारी किया जाएगा किंतु इस परम्परा को या तो कोर्ट के पेशकार बाबु दबा देते हैं या फिर सम्मन पहूँचाने वाले डाकिये बाबु।
दूसरा माननिये न्यायालय में डेट पर डेट लेने में भी व्यापक रूप से धांधली है। अगर आप चौकस नही रहे तो पुनः वॉरंट का सिकार बनना तय है। डेट की जानकारी के लिए आपको या तो वकील साहब को पैसे देने होंगें या फिर पेशकार बाबु को।
माननिये चीफ न्याधीश, भारत सरकार को अपने ब्लॉग के माध्यम से इन छोटी-छोटी त्रुटियों पर ध्यान दिलाना चाहता हूँ ताकी आम जनता को परेशानी न उठाना पड़े । कोई येसा तरकीब निकालें की वॉरंट और सम्मन के बीच सीधा संपर्क स्थापीत मुद्दई को न्यायलय से हो जाए और थानेदार बाबु का हिस्सा गौण हो जाए।

4 comments:

Alpana Verma said...

aasha hai aap ki baat sahi channel/vyakti tak pahunchegi.aur ucheet action liya jayega.
Sirf kanoon visheshgya apni raay is vishay par de saktey hain

Unknown said...

बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने. कितनी परेशानी उठाता है आम आदमी?

लोकेश Lokesh said...

एक शिकायती डब्बा बनवा दें क्या, 'अदालत' में?

Udan Tashtari said...

सही मुद्दा लिया!!