जज साहब यह कैसी परम्परा है की अदालत में केस दर्ज हो जाता है और मुद्दालय को पता भी नही चल पता की उन पर केस दर्ज है। पता तब होता जब थानेदार साहब वॉरंट लेकर एकाएक उनके घर पहूँचते हैं।
कोर्ट में सिस्टम बना हुआ है की पहले सम्मन जाएगा और सम्मन का जवाब नही मिलने या उपस्थित नही होने पर हीं वॉरंट जारी किया जाएगा किंतु इस परम्परा को या तो कोर्ट के पेशकार बाबु दबा देते हैं या फिर सम्मन पहूँचाने वाले डाकिये बाबु।
कोर्ट में सिस्टम बना हुआ है की पहले सम्मन जाएगा और सम्मन का जवाब नही मिलने या उपस्थित नही होने पर हीं वॉरंट जारी किया जाएगा किंतु इस परम्परा को या तो कोर्ट के पेशकार बाबु दबा देते हैं या फिर सम्मन पहूँचाने वाले डाकिये बाबु।
दूसरा माननिये न्यायालय में डेट पर डेट लेने में भी व्यापक रूप से धांधली है। अगर आप चौकस नही रहे तो पुनः वॉरंट का सिकार बनना तय है। डेट की जानकारी के लिए आपको या तो वकील साहब को पैसे देने होंगें या फिर पेशकार बाबु को।
माननिये चीफ न्याधीश, भारत सरकार को अपने ब्लॉग के माध्यम से इन छोटी-छोटी त्रुटियों पर ध्यान दिलाना चाहता हूँ ताकी आम जनता को परेशानी न उठाना पड़े । कोई येसा तरकीब निकालें की वॉरंट और सम्मन के बीच सीधा संपर्क स्थापीत मुद्दई को न्यायलय से हो जाए और थानेदार बाबु का हिस्सा गौण हो जाए।
4 comments:
aasha hai aap ki baat sahi channel/vyakti tak pahunchegi.aur ucheet action liya jayega.
Sirf kanoon visheshgya apni raay is vishay par de saktey hain
बहुत सही मुद्दा उठाया है आपने. कितनी परेशानी उठाता है आम आदमी?
एक शिकायती डब्बा बनवा दें क्या, 'अदालत' में?
सही मुद्दा लिया!!
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