Thursday, December 31, 2009

Thursday, December 24, 2009

वोट बैंक में नई खोज

नितीश गए हवा खाने। नितीश जी मीडिया को अपने हाँथ और मुठी में ले लेने से वोट बैंक में इजाफा कंहा तक हुआ? अब चुनाव आने वाला है। बिहार वासियों को ढेर सारे उपहार नितीश देने वाले है। ताकि वोट बैंक सही-सलामत रह सके। झारखण्ड में तो बूंट लादने गए अब तो उनकी ही बारी है।

"बाबु जी जरा धीरे चलना वोट में धोखा है " लालू और पासवान एक ओर अपने-अपने पासा फेंकने में लगे है वंही राहुल भी अपने नौजवान को लेकर बिहार में कदम रखने जा रहे है। देखना है की बिहार की बाबु जनता नितीश के हवा-हवाई मामलों को लेकर वोट करती है या फिर एक खुशहाल बिहार की तस्वीर को लेकर नई खोज।

Tuesday, September 1, 2009

भारत में ट्रिपल "बी" की बीमारी

जी हाँ चौंकिए मत! ट्रिपल "बी"यानि (बुत्तोक्क, बरेअस्त बेल्ली अंग्रेजी के शब्द है) हिन्दी में नितंभ, छाती और चीतल मांछी पेट कहते है। भारत में यह बीमारी कुछ एक युवतियों और महिलाओं में अर्धनग्न फैशन से फैला है। इस बीमारी की सबसे खास बात ये है की इससे पुरूष वर्ग के शरीर में अजीबो-गरीब सी भावना उत्त्पन्न होती है जिससे युवती या महिला वर्ग घायल हो जाती है और पुरूष को आजीवन कारावास , उम्र कैद या फांसीकी सजा हो जाती है।
स्वास्थ्य विभाग ने इस ट्रिपल "बी" की बीमारी पर गहरी चिंता व्यक्त कर कहा की इससे बचने का एक ही रास्ता है की पुरूष वर्ग बिटामिन जैसे पदार्थों का इस्तेमाल न करे वही मौसम विभाग ने इस बीमारी को बेहद खुशनुमा बताते हुए फैशन विभाग को निर्देश दिया की वो इस तरह के कपड़े बनाये जिससे अंग की पारदर्शिता झलके।
सूत्रों के हवाले से पता चला है की महिला आयोग ने इस ट्रिपल "बी" बीमारी के रोक-थाम के लिए सरकार से ठोस और कड़ा कानून बानाने की मांग की है जिससे युवतियों और महिलाओं को और भी पारदशी कपड़े पहनने में छुट मिल सके।

Friday, August 28, 2009

आज का युवक कृष्ण हो सकता युधिष्ठिर नही

कौन कहता है संघ में ५५-६० का ही उम्र है। आज संघ के प्रमुख ने मीडिया के सामने बयां जो दिया उसमे तनिक भी सच्चाई नही दिखती । के सी सुदर्शन और आज के प्रमुख पहले अपनी उम्र तय करे की उन्हें कब तक काम करना है तभी किसी पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने की चेष्टा करे। संघ राजनीत से अलग रहकर बात कर ही नही सकती क्योंकि उनके मिशन में अर्थ और राजनीत अहम् है बगैर इनदोनों के संघ एक डेगभी आगे नही चल सकती।

संघ भारतीये समाज को बरगला रही है। हिंदुत्वा की रक्षा करे लेकिन समाज में विभाजन न करे। जसवंत की किताब गुजरात में प्रतिबन्ध कर दी गई बिना सोंचे-समझे। सिर्फ़ इसलिए की पटेल समाज की बात थी तो दूसरी ओर अल्पसंख्यक समाज का । गुजरात के वर्तमान मुख्यमंत्री संघ घराने से आते है । संघ प्रमुख ने जसवंत की किताबें नही पढ़ी पर राजनीत जरूर कर रही है। संघ के पास कोई ऐसा युवक नही जो भारतीये संस्कृति और हिंदुत्वा का पाठ भारतीये समाज को पढ़ा सके। आज का युवक कृष्ण हो सकता है युधिष्ठिर नही।

संघ जब तक भाजपा में दखल देती रहेगी तब-तक भाजपा दिल्ली की कुर्सी को हथिया नही सकती। भले ही संघ भाजपा से गैर संघी नेता को पार्टी से निकल-बहार कर ले। आज संघ आडवानी को कह रहा रिटायर तो वह दिन भी दूर नही जब जनता संघ को राजनीत से दूर कर दे। बढती जनसँख्या इस बात को इंगित करती है।

संघ की नीति स्पस्ट है की आगामी चुनाव में हिंदुत्वा का कार्ड पूर्ण रूप से खेले यही वजह है की भाजपा अब दो भागो में बंटेगी। आगे -आगे देखिये संघ का दपोर्संखी जवाब......................................और राजनीत।

Wednesday, August 26, 2009

भारत आज़ाद किंतु गुलामी आज भी पसंद

भाजपा में हो रहे उथल-पुथल से यही ज्ञात होता है की अटल - आडवानी और संघ को छोड़ पार्टी में कुछ है ही नही। कहने को भाजपा चाल, चरित्र , चिंतन और अनुशाशन वाली पार्टी है पर वास्तव में दपोर्शंख है। भाजपा की ये आदत रही है की वो अपने कद से ऊँचे नेता को उभरने देती ही नही। मिशाल के तौर पर देखा जाए तो पार्टी के थिंक टैंकर गोविन्दाचार्य जैसे नेता को पार्टी से अलग किया जब की वो संघी थे और हैं। इसके बाद तो सिलसिला अभी तक चल ही रहा है। पार्टी हमेशा से अपने कार्यकर्मों में श्यामा प्रसाद मुख़र्जी और पंडित दीनदयाल उपाध्य का चित्र लगाकर फूल-मालाओं से अर्पित कर कार्यक्रम आरम्भ करती है। किंतु उनके मूल सिधांत को ताख पर रख वर्चस्व यानि गुलामी प्रथा को जन्म देती आई है।


आज अगर गौर से देखा जाए तो पहले अटल थे फिर आडवानी फिर स्वर्गीय महाजन। इससे पहले देखे तो , अटल , गोविन्दाचार्य और आडवानी। अटल तो अटल है किंतु पूर्ण विराम । अटल राजनीत में सुभाष चंद्र बोस की जगह ले चुके है जो गौण है।
रही अडवानी की बात तो भाजपा के लिए टेढी खीर होगी अडवानी को पार्टी से बहार निकालना । भाजपा अटल अडवानी से ही जाना जाता आया है जिस तरीके से कांग्रेस को लोग गाँधी-नेहरू से जानते आए है। गाँधी-नेहरू के आगे आज भारत के लोग गुलाम बने है उसी तरह भाजपा में अटल-अडवानी का लोग गुलाम है।
गुलामी आज भी लोगों को पसंद है।

भाजपा को मुद्दे की लडाई लड़नी चाहिए न की धर्म और मजहब की

संघ परिवार में व्यापक रूप से भ्रष्टाचार आ चुका है। संघ का जब से राजनीतिकरण हुआ तभी से संघ का प्रत्येक सदस्य मूल उद्देश्य से भटक गया। संघ में पैसों का खेल खेला जाने लगा जैसे क्रिश्चानिटी में हो रहा है। संघ की शाखा अब एक्के-दुक्के ही लगतीहै। संघ से जुड़े व्यक्ति एक-दुसरे के घर जा-जा कर अपना ही राग अलापते नजर आयेंगे। देश-दुनिया की बात से कोसों दूर राजनीत की बात अवस्य करेंगे।
भाजपा के शीर्ष नेताओं में गैर संघी ज्यादा रहे है। यही वजह है की भाजपा भी अपने मूल उदेश्यों को छोड़ अब तक भटकती रही है। न तो वह राम का ही नाम ले सकी और न रहीम का। १९५२ से सक्रिए राजनीत में एक ही पार्टी देश पर हाबी रही वह है कांग्रेस । बीच-बीच में कुछ-एक वर्षों के लिए भारतीये जनता ने कांग्रेस से मुंह मोड़ ली थी। वह भी रणनीतिकारों की वजह से वरना कांग्रेस को सत्ता से कोई दूर नही कर सकता था। आज भारतीये राजनीत में विपक्ष के पास कोई रणनीति नही । अब वो जमाना गया की कोई राम और रहीम के नाम पर सत्ता काबिज़ कर ले।
भाजपा को राजनीत करनी है तो संघ से अलग रहे और संघ को अपने मिशन में आगे बढ़ना हो तो वे राजनीत से कोसो दूर रहे।

Sunday, July 26, 2009

आयोग महिलाओं के प्रति उदासीन

महिला आयोग की अध्यक्ष महोदया महिलाओं के प्रति उदासीन ही अब तक दिखी है। चुकी अब तक न तो वो भारतीये महिलाओं को भारतीये सभ्यता का पाठ पढ़ा पाई है और न तो उनके प्रति जागरूक ।

मैं व्यक्तिगत तौर पर उनसे यह पूछना चाहता हूँ की वो इस पद पर अस्थापित होने के लिए कितने सीढियों को पार की है। उनकी योगता यानि शैक्षणिक योग्य क्या रही है? क्या वो आ इ एस रही है या राजनैतिक योग्यता के बल पर महिला आयोग की अध्यक्ष बनी है? मेरे समझ से यह पद राजनैतिक पद है और ६ साल के लिए नियुक्त किए जाते है। श्रीमती व्यास यह बतलाये की उन्होंने अब तक महिलाओं के लिए क्या किया है?

आज बिहार में किसी महिला के साथ किसी युवक ने शर्मनाक तरीके से पेश आकर मीडिया में बात आई तो व्यास जी ने त्वरित टाईम्स ऑफ़ इंडिया में यह बयां दे डाली की _ "शे वास शोक्केड़ तो शे टीवी फुटेज ऑफ़ थे इंसिडेंट अद्दिंग नोट ओनली इट्स पेर्पेत्रतोर्स बुत अल्सो थे स्पेक्टातोर्स ओउघ्त तो बे पुनिशेद" । मैं उनसे पूछता हूँ की उन्होंने भी तो यह दृश टीवी पर देखा ।

मैं व्यास जी से कहना चाहता की जब समाज के अंदर ही दूरितियाँ पैदा हो गई है तो सरकार या आम आवाम क्या करेगी। आज समाज के अंदर महिलाएं जिस तरह का पोशाक पहन कर सड़कों पर आ रही है उससे लगता है महिलाये ख़ुद पुरुष वर्ग को न्योता दे रही है की आओ मेरे पास । बाद में यही महिला भारतीये कानून का मज़ाक बनाकर पुरुष वर्ग को कारागार तक पहुचाने में सफल हो जाती । वाह क्या बात है महिलाओं का और महिला आयोग का।

Sunday, May 10, 2009

जोड़ - तोड़ की राजनीत में प्रणव मुख़र्जी प्रधानमंत्री

१६ मई २००९ से लोक सभा के परिणाम आने शुरू हो जायेंगे। इस बीच जोड़-तोड़ की राजनीत शुरू हो चुकी है। प्रधानमंत्री के दौड़ में कई नाम शामिल है। लेकिन जोड़दार शब्दों में मनमोहन सिंह , राहुल गाँधी और लाल कृष्ण अडवाणी का नाम सामने आ चुका है।

चुनावी हल्ला- बोल संस्कृति में भारत की जनता ने जिस तरह से अपने-अपने वोटों का प्रयोग किया है उसमें किसी भी राष्ट्रिये या क्षेत्रिये पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलने के असार नही है ऐसे में स्वाभाविक है की राजनेता-गन खरीद-परोख के बाज़ार के तरफ़ जायेंगे। अब देखना है की ऊंट किस तरफ़ करवट लेती है?

भारत की जनता ने पी ऍम वेटिंग लाल कृष्ण अडवाणी को भी पूर्ण बहुमत देने से बंचित रखा है और मनमोहन सिंह को भी। अब पार्टी लेबल पर देखा जाए तो जनता का रुझान बीजेपी के अपेक्षा कांग्रेस की ओर ज्यादा रही है जैसा की बिभिन्न न्यूज़ एजेंसियों के आंकडे अब तक बता रहे है।

इन तमाम इस्तिथि -परिस्तिथि , जोड़-तोड़, खरीद-परोख की राजनीत में मुझे ऐसा लगता है की प्रणव मुख़र्जी ही सही और प्रबल दावेदार हैं। भारत की जनता १९८४ में इनके प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने लगी थी किंतु ज्ञानी जैल सिंह जी ने गाँधी परिवार से तत्कालीन राजीव गाँधी को प्रधानमंत्री पद पर बैठा दिया था। अब सोनिया जी की पाली है की वो किसे प्रधानमंत्री चुनंती हैं?

Friday, May 8, 2009

फर्नांडिस साहब लोक सभा ०९ का चुनाव जीतते-जीतते हारे

फ़र्नान्डिस साहब लोक सभा चुनाव मुजफ्फरपुर से हार रहे है यह लिखना बिल्कुल ही ग़लत है । पर आप सभी को चुनाव परिणाम पूर्व बताना भी मेरा धर्म है क्योंकि मैं अभी बिहार भ्रमण कर दिल्ली लौटा हूँ।

फर्नांडिस साहब भारत ही नही अपितु सम्पूर्ण विश्व में अपनी पहचान को बनाये रखने में उनकी योग्यता, , हठता , कर्मण्यता, दूरदर्शिता, पारदर्शिता आदि शामिल रही है। फर्नांडिस साहब चुनाव जीतते-जीतते हार गए। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ की इनके चुनाव का कमान कुछ असामाजिक तत्वों के साथ जुड़ी हुई थी। इनके सिपह-सलाहकार कुछ ऐसे थे जो पैसा कमाने में लगे थे इन्हे मुजफ्फरपुर लोक सभा का परिसीमन तक मालूम नही था। कार्यकर्ता में उत्साह, उमंग जरूर देखने को मिला पर पर चुनावी योजना को सकारात्मक रूप देने में ये लोग सफल नही हो सके।

फर्नांडिस साहब के विरूध्ह कैप जय नारायण निषाद, विनीता विजय, भगवान लाल सहनी ही मैंदान में थे और इन्सबो में इनकी उम्मीदवारी एक दमदार के रूप में थी, किंतु इनके एजेंट लोग सिर्फ़ पैसा को अपने-अपने हितों में बटोरने में लगे रहे। चुनाव के एक दिन पूर्व ही फर्नांडिस साहब अपना प्रेस कांफ्रेस कर दिल्ली लौट आए।

चुनाव कमान को संभालने वालों में से गाँधी संसथान के सुरेन्द्र ओझा, शिव कुमार यवम प्रवीन जाडेजा आदि शामिल थे।

Monday, April 6, 2009

नीतिश और ललन में दम हो तो राबरी का जवाब दे

आज सुबह चाय के प्यालों के साथ नींद खुली अख़बार देखा -"राबर पर ऍफ़ आई आर " दर्ज । हँसी भी आई पर चर्चित पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती राबरी देवी ने एक साहस और आत्मविश्वास के साथ यह वक्तव्य दे डालीं की -"ललनसिंह कौन हैं? ललन सिंह नीतिश का साला है। हम खुलेआम बोलेंगे। और नीतिश कुमार कौन है? नीतिश कुमार का साला है।" वाकई राबरी ने समाज के सामने एक सवाल खरा कर दिया है। सिर्फ़ समाज ही नही समाज के दर्पण कहे जानेवाले मीडिया पर भी अंगुली उठाई है।

नीतिश कह रहे है राजनीत में ओछी हरकते ठीक नही मेरी भी इज्जत है। तो नीतिश जी यह बताये की जब वो रेल मंत्री थे तो उन्होंने अर्चना, उपासना और इबादत के नाम से नै ट्रेने खोली थी। मीडिया वालों के खिंच- तान में उन्होंने पहार और धर्म की बात बोलकर निकल पड़े थे आज बिहार की जानी-मानी मुख्यमंत्री राबरी देवी ने यह प्रश्न उठाया है तो इसका जवाब जनता को नीतिश और ललन को देना चाहिए।
मीडिया को भी राबरी के इन सवालों का जवाब तलाशना चाहिए ।

Wednesday, April 1, 2009

१.५ करोड़ की आबादी को संभालना किसी की भी सरकार के लिए मुश्किल

भारत की राजधानी दिल्ली और १.५ करोड़ आबादी में एक मात्र अखिल भारतीये आयुर्विज्ञान संस्थान ( अ भा आ सं) नईदिल्ली । इसमे इलाज़ कराना बहुत ही कठिन है । अगर किसी गाँव - देहात से आए बीमार व्यक्ति और उनके परिजन एम्स में इलाज़ कराने आते हो तो निम्न बातों का ध्यान अवश्य रखे :

१ एम्स में पैरवी न तो किसी संसद और न किसी दलाल की चलती अगर चलती है तो वह है एम्स के स्टाफ का।

एम्स के सिस्टम में आम व्यक्ति इस कदर परेशां होंगे की उन्हें इलाज़ कराना तो दूर उनके रहने, खाने-पीने में हीं आर्थिक इस्थिति इतनी चरमरा जाती है की रोगी के साथ परिजन ही बीमार हो जाते।
३ एम्स में यह सिस्टम है की सुबह ५ बजे से ओ पी डी कार्ड के लिए नम्बर लगाना पड़ता है उसके उपरांत १० रुपये का कंप्यूटर से कार्ड बनता है।
४ इस कार्ड के बन जाने के बाद सम्बंधित विभाग/डॉक्टर के रूम में जाने से पहले निर्धारित समय में यह कार्ड को जमा कराना पड़ता है तब आप रोगी को दिखानेमें सफल हो सकते है।
५ इस ओ पी डी में पहले जूनियर डॉक्टर रोगी का निरिक्षण करते है इस निरिक्षण में आपका एक दिन का समय निकल जाएगा। ये जूनियर डॉक्टर आपको सीनियर डॉक्टर से दिखाने के लिए फिर एक सप्ताह का समय दे देंगे।
६ अगर किसी मरीज का ऑपरेशन होना हो तो ५वीं मंजिल का चक्कर "पी ए सी "का तारीख लेने के लिए लगाना होगा इस प्रोसेस में लगभग १.५ से २.५ महीने लग जायेंगे।
७ पी ए सी टेस्ट हो जाने पर आपको सम्बंधित डॉक्टर से पुनः तारीख लेने होंगे ।
८ डॉक्टर ऑपरेशन का डेट लेने के लिए आपको सलाह देंगे ।
९ ऑपरेशन का डेट लेने के लिए आपको पुनः १ से २ महीने चक्कर लगाने होंगे।
जरा आप सोंचे की इस लम्बी प्रक्रिया में गाँव-देहात से आए गरीब-गुरबा व्यक्ति का क्या हाल होगा।


Wednesday, March 4, 2009

फ़ोन + कैश + मोबाइल + नेम और फेम = संसद

आज की ताजा ख़बर है की हेमामालिन डेल्ही सीट से चुनाओ नही लडेंगी अब उनकी जगह पर अनिल कपूर को तलाशा जा रहा है। वाह भाई वाह बीजेपी के नेतागण ! बीजेपी अपने चाल, चरित्र और चिंतन के लिए अद्भुत पार्टी कही जाती रही है पर inake shirsh नेताओं ने डेल्ही की गद्दी पाने की होड़ में सक्रिय कार्यकर्ताओं को नजर अंदाज़ कर फिल्मी कलाकारों और क्रिक्केतारों को चुनाओ मैदान में उतारने का एक अद्भुत मिशाल बनाने जा रही है। सायद इससे अडवाणी को पी एम् वेटिंग कहने में और मदद मिल सकेगी।
आपको याद होगा की बीजेपी के एक ऐसे neta थे जो computerised थे unake राह -Kadmon पर वर्ष २००४ का चुनाओ संपन्न हुआ usame बीजेपी charo खाने चित हो गई। अब अडवाणी जी की बात हो रही है kanhi ऐसा न हो की पी एम् वेटिंग kahlate-kahlate clean bold हो जाए। चुकी अडवाणी जी भी फ़ोन, fax, कैश, मोबाइल और नेम and फेम के jordaar samarthak रहे हैं।
बीजेपी के alawe भी कई rashtriye पार्टी हैं जो फ़ोन, FAX, मोबाइल, कैश, नेम AND फेम wale को ही अपना ummidwar bana रही है। जनता भी फ़ोन, FAX, मोबाइल, नेम AND फेम वालों को ही अपना bahumulya VOTE देने का काम कर रही है। वाह जनता tumhara भी mijaj का पता लगाना दुर्लभ ही है। जनता को कोई matlab नही की कौन usake क्षेत्र का सांसद हो ???????????????????????

Monday, February 23, 2009

२१ वीं शदी का सही अर्थ कम समय में ज्यादा उपलब्धि

सभी ब्लॉग प्रेमियों से मेरा व्यक्तिगत आग्रह है की २१ वीं सदी का अर्थ समझे या समझाएं। भाई मैं ब्लॉग के बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ हूँ। मुझे नही मालूम की इस ब्लॉग पर एक नोवेल लिखू या एक उपन्यास या कविता काब्य संग्रह। मुझे जो समझ में अब तक आया है वह यह की इस ब्लॉग के माध्यम से अपनी बात को कम-से-कम शब्दों में कही जा सकती जो अन्य प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मान्य नही हो। क्योंकि प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व्यापर है उसे जंहाँ धंधा समझ में आता है वन्ही वह ख़बर को तरजीह देता है।
दूसरी ओर हम यह भी समझते है की आज के परिवेश में लोगों के पास समय बहुत कम होता है। उन्हें इतना फुर्सत नही होता की आपके इतिहास, भूगोल को पढ़ें। इसलिए ब्लॉग पर कही जाने वाली बात मेरी समझ से कम-से-कम शब्दों में हो तो लोग रूचि लेकर पढेंगे भी और उन्हें सही में प्रतिक्रियाएं भी मिलेंगी।
एक बार पुनः क्षमा प्राथी के साथ .......................................

Thursday, February 12, 2009

दफ्तरों के काम-काज में देरी क्यों?

अंग्रेज भारत छोड़ गए परन्तु वो अपना मूल मंत्र भारतवासियों को दे गए। unake "फुट डालो राज करो" kee nitee के bawjood भारत में आज भी कई इमानदार प्रशासक है ,जो चाहते है की दफ्तरों में pardarshita से काम हो। taki आम जनता त्रस्त न हो सके। लेकिन दफ्तरों के बाबु लोग एक ही दिन में चाहते है की खरबपति बन जाए। बाबु लोग देखते है की नेतागण झूठ-सांच कर अमीर बन रहे है तो हम क्यों पीछे रहे। किंतु इन्हे ये पता नही की इनके आलाकमान एक ईमानदार ऑफिसर है।
मैंने अपने कार्यों के दौरान देखा है की आर्डर कर दिया गया है अब काम तो दफ्तरों के बाबु को ही करना है लेकिन बाबु को तो आदत है की बगैर पैसा लिए फाइल आगे बधायेंगें नही इसलिए ऐसा नुस्खा निकालों की साहब भी भौचक हो जाए और मेरा भी काम निकल आए। साहब की डांट भी बाबु को लगती है किंतु बाबु तो थेथेर हैं वो अब साहब को ही धमका देते है की साहब thik से और समझ भुझ कर काम कीजिए वरना इल्जाम ग़लत होगा। इसके वाबजूद अधिकारी चाहते है की काम करो, पर बाबु काम होने नही देते। अब आप ही बताये की अधिकारी कैसे काम करे। एक इमानदार अधिकारी को धमकाया जाता है इसके वाबजूद अपनी जान की परवाह किए वगैर वो एक कुशल प्रशासक के रूप में काम करना चाहता है फिर भी उसे सफलता नही मिल पाती यह देश के लिए दुर्भाग्य है।
मेरी अपनी सोंच है की आम अवाम को जागरूक होना होगा तभी देश विकाश की ओर आगे बढेगा। जागो-जागो-जागो ....................कब जागोगे जब सब कुछ तुम्हारा लुट जाएगा तब?

Tuesday, February 10, 2009

मीटिंग, सीटिंग, इटिंग = दिल्ली

बहादुर साह ज़फर के बाद भारत की तस्वीर ऐसी बनी की कुछ लोग शासन- प्रशासन में व्यस्त रहे तो कुछ लोग आज़ादी का आनंद लेने में मशगुल । चारो ओर मीटिंग, सीटिंग और इटिंग होने लगा। यही परम्परा देश के कोने-कोने में होने लगी। इन तीन शब्दों में एक शब्द अधुरा था वह है "मूविंग" । अगर मूविंग होती तो सायद देश की इस्थिति कुछ और होती तब सायद न तो इतनी भ्रष्टाचार होती और न ही इतने नेतागण। उदाहरण स्वरुप देखें तो चुनाओ के समय ही भारत के प्रधान मंत्री क्षेत्र वार प्रचार-प्रसार के लिए भ्रमण करते है बाकि ५ वर्षों तक मीटिंग, सीटिंग, इटिंग होती है जिसे हम सभी दिल्ली कहते हैं।

Wednesday, January 28, 2009

देश के ७० फीसदी जनता बेलगाम

भारत आजाद हुआ लोग स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस मनाने लगे।लेकिन आज का भारत को देखने से लगता है की लोगों को पुर्णतः आज़ादी नही मिली। भारत का ७० फीसदी जनता त्रस्त है उन २० फीसदी लोगो से जिन्होंने भारत का खजाना अपने उपयोग में किया। १० फीसदी ऐसे है जिन पर ७० फीसदी जनता का आस है। इन्हे उम्मीद है सायद यही १० फीसदी जनता हमसबों का कल्याण करेगा।

१०० करोड़ की आबादी को देखते हुए संसद में संविधान परिवर्तन का गूंज अक्सर उठा करता है जिनमे आवश्यकता और नै चुनौतियों को ध्यान में रखकर संविधान में अनेको संशोधन हुए लेकिन मूलभूत विचारधारा, सिधान्तोऔर प्राथमिकताओं में बदलो नही आया। वर्ष १९५० से अबतक का सफर देखा जाए तो विभिन्न इमानदार प्रधानमंत्री द्वारा कमजोर वर्ग के लोगों के लिए कई ऐसे कल्याणकारी योजनाये ली गई फ़िर भी समाज के कमजोर वर्ग जैसे दुसाध, चमार, तुरहा, तात्मा, धोबी, मुशहर आदि जैसे अनेक वर्ग किसी सामन्तवादी का पैर ही धोते दूरदर्शन या अन्य चैनलों पर नजर आएंगे। इसका मूल कारन मुझे जो दिखाई देता वह यह की राजनेता ब्रोकरी का धंधा कराने से चुकाते नही, प्रशासन के लोग घुस लेकर रियल इस्टेट में पूंजी लगाने से बाज आते नही, अस्थानिये नेता राजनेताओं की चम्मच गिरी व खिदमत गिरी करने से फुर्सत नही तो आम जनता में इतनी हिम्मत कान्हा की वो आन्दोलन का रूख अपनाए।

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने कहा था की केन्द्र से अगर १ रूपया दिया जाता है तो जनता के पास मात्र १० पैसे ही पहुँच पाते है। आप सोंचे अगर बेईमान प्रधानमंत्री या बेईमान सांसद अगर सत्ता का बागडोर थमेगा तो देश और जनता का क्या होगा? जब चुनाओ आता है तो जनता ,पार्टी को देखती है समाज के ठीकेदार लोग उन्हें पार्टी का पाठ पढाती है और लोग बेईमानो को सांसद या विधानसभा में भेज भी देती। जनता का मिजाज का पता लगना बहुत कठिन सा मालूम पड़ता । अगर ७० फीसदी जनता नही सुधरेगी तो ये २० फीसदी लोग इनका शोषण, दोहन तो करेगी ही।

Saturday, January 3, 2009

देश पर भारी दो पुजारी

नेपाल के पशुपतिनाथ मन्दिर से अगर हिंदू पुजारी को नेपाल सरकार हटा ही दिया तो इसमे हिंदू वर्ग को कैसा खतरा? क्या वही दो पुजारी हिंदू धर्म के आधार हैं? क्या उनके हटाने से हिन्दुओं के अस्तित्वा पर ही संकट खड़ा हो गया? भला हम यह क्यों भूलने लगे की नेपाल एक हिंदू राष्ट्र हैहिंदुत्वा की कंही ज्यादा चिंता नेपाल को होनी चाहिए की भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश कोचर्च के कुछ पादरियों को खदेड़ कर या पशुपतिनाथ मन्दिर के दो पुजारियों के नाम पर हिंदुत्वा की यह घिनौनी राजनीत सही नही है
बीजेपी के तथाकथित अध्यक्ष मीडिया के समक्ष कैसी चिंता व्यक्त कीक्या बीजेपी के पास कोई मुद्दा नही? क्या मीडिया के पास कोई मुद्दा नही? क्या हिंदुत्वा पर ही बीजेपी की राजनीत टिकी हुई है अगर ऐसा है तो राजनाथ जी को राजनीत करने से अच्छा है की वो किसी घराने का पुजारी बनेनेपाल को हिंदुत्वा का ख्याल है और रहेगानेपाल के दो भारतीये पुजारियों पर चिंता व्यक्त करने से उनका निज स्वार्थ पुरा हो सकता है की पुरे हिंदुत्वा को
नेपाल सरकार को यह हक़ है की वो अपने ही देश के पंडितों से पशुपतिनाथ मन्दिर में पूजा कराये। मै राजनाथ जी से पूछना चाहूँगा की उनके घर में अगर नेपाली पुजारी पूजा कराये तो उन्हें कैसा लगेगा ।
पूंछ में चार दिनों से लगातार मुठभेड़ हो रहा है लेकिन इस मुद्दे पर कुछ नही बोल रहे हैं। यही देश का दुभाग्य है।

जरूरत है - सुरक्षा में नई सोंच और नए तरकीब की

भारत में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर आज भी प्रश्न चिह्न लगा हुआ है आख़िर क्यों? हमारे सुरक्षा व्यवस्था में ऐसी क्या कमी है जिससे आतंकवादी या घुसपैठी सीमा रेखा को तड़प या फान कर हमारी आंतरिक व्यवस्था को धत्ता कर तहस-नहस कर देती है
सुरक्षा व्यवस्था को लेकर हम अक्सर चर्चा-परिचर्चा करते रहे है और कभी-कभी तो बेवाक होकर गोली मारने की बात तो कभी नेताओं पर गरजने की आवाज आम बात हो गई हैबड़े-बड़े सुर्माभुपाली लोग टी भी , मगज़ीन, अखवार, यवम अन्य माध्यमों से बहस-पर-बहस करते आए हैमगर नतीजे के तौर पर देखे तो "धाक के पात" ही चारों ओर नजर आते हैं
मैं अक्सर देखा हूँ की जब-जब आतंकवादियों ने आतंक फैलाया है और जिन अस्त्रों-शस्त्रों का उपयोग किया है उसी उपकरणों का विज्ञापन केन्द्र या राज्य सरकार सार्वजानिक तौर पर की है. मिशाल के तौर पर रेडियो बम, साईकिल बम, मोबाइल बम, कूड़ेदान बम, मानव बम आदि . क्या भारत के सुरक्षा के सुर्माभुपाली इससे आगे का नही सोंचते की आतंकवादी किन-किन अस्त्रों-शस्त्रों का इस्त्तेमाल कर सकती जिसका विज्ञापन आम-आवाम तक पहुंचाए ताकि भारत की जनता एलर्ट रहे. लेकिन ऐसा नही हो पता. आख़िर क्यों?
मैं सुरक्षा की व्यवस्था को देखता हूँ तो हँसी ही आती है - आप ट्रेनों में देखे तो सुरक्षा कर्मी पुरे ट्रेन का चक्कर लगा-लेते है फिर भी उन्हें कुछ नही मिल पतासिनेमा घरों में देखे तो वंहा भी इन्हे कुछ नही मिल पता, रोज ये लोग चेक करते है फिर भी इन्हे सुराग तक नही मिल पाता और हादसा हो जाता है
कभी भी ये लोग ट्रेनों में चढे यात्रियों का बैग, झोला, बेद्दिंग्स, सूटकेश आदि को खोलवाकर चेक नही करते अगर ये लोग किसी का चेक करते भी है तो वह है सब्जीवाली, भिखमंगा, गरीब-गुरबा का जिससे इन्हे आमदनी होती हैवही हाल है गाडीवाले का गाड़ी को स्कान्नेर से सिर्फ़ स्कैन कर लेते है कभी भी ये लोग तो सिट को खोल्वाते है और ही डिक्की को । इन्हे इस तरह से ट्रेनों, बस अड्डा, हवाई अड्डा, समुंदरी अड्डा, सीमा रेखा को चेक करना होगा जिससे अवाम में दहसत हो ही साथ-साथ असामाजिक तत्वा भी घबडा जाए की कभी भी पकड़े जा सकते है।
बॉर्डर क्षेत्र में इन्हे सख्ती से चेकिंग करनी होगी चाहे वह किसी भी तबके के लोग होंइन्हें यह दहसत फैलाना होगा की बॉर्डर के अंदर गए तो हम मारे जायेंगेट्रेनों में भी इन्हे यही रूप धारण करने होंगे, समुंदरी मार्ग में भी चौकस रहना होगा, हवाई मार्ग को भी सख्ती से और गहन चेक करना होगासुरक्षा व्यवस्था करनेवाले को मिलो दूर की बात सोंचनी होगी और नए तरकीब भीघर के अन्दर चेक्किंग करने से उतना लाभ नहीहमें यह तय करना होगा की इन्हे हम घर के अन्दर घुसने ही ना देइसके लिए हमें नए-नए तरकीब सोंचने की आवश्यकता हैहम हथियार से मजबूत है हीअगर जरूरत है तो नए सोंच की और नए तरकीब की