Wednesday, January 28, 2009

देश के ७० फीसदी जनता बेलगाम

भारत आजाद हुआ लोग स्वतंत्रता व गणतंत्र दिवस मनाने लगे।लेकिन आज का भारत को देखने से लगता है की लोगों को पुर्णतः आज़ादी नही मिली। भारत का ७० फीसदी जनता त्रस्त है उन २० फीसदी लोगो से जिन्होंने भारत का खजाना अपने उपयोग में किया। १० फीसदी ऐसे है जिन पर ७० फीसदी जनता का आस है। इन्हे उम्मीद है सायद यही १० फीसदी जनता हमसबों का कल्याण करेगा।

१०० करोड़ की आबादी को देखते हुए संसद में संविधान परिवर्तन का गूंज अक्सर उठा करता है जिनमे आवश्यकता और नै चुनौतियों को ध्यान में रखकर संविधान में अनेको संशोधन हुए लेकिन मूलभूत विचारधारा, सिधान्तोऔर प्राथमिकताओं में बदलो नही आया। वर्ष १९५० से अबतक का सफर देखा जाए तो विभिन्न इमानदार प्रधानमंत्री द्वारा कमजोर वर्ग के लोगों के लिए कई ऐसे कल्याणकारी योजनाये ली गई फ़िर भी समाज के कमजोर वर्ग जैसे दुसाध, चमार, तुरहा, तात्मा, धोबी, मुशहर आदि जैसे अनेक वर्ग किसी सामन्तवादी का पैर ही धोते दूरदर्शन या अन्य चैनलों पर नजर आएंगे। इसका मूल कारन मुझे जो दिखाई देता वह यह की राजनेता ब्रोकरी का धंधा कराने से चुकाते नही, प्रशासन के लोग घुस लेकर रियल इस्टेट में पूंजी लगाने से बाज आते नही, अस्थानिये नेता राजनेताओं की चम्मच गिरी व खिदमत गिरी करने से फुर्सत नही तो आम जनता में इतनी हिम्मत कान्हा की वो आन्दोलन का रूख अपनाए।

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने कहा था की केन्द्र से अगर १ रूपया दिया जाता है तो जनता के पास मात्र १० पैसे ही पहुँच पाते है। आप सोंचे अगर बेईमान प्रधानमंत्री या बेईमान सांसद अगर सत्ता का बागडोर थमेगा तो देश और जनता का क्या होगा? जब चुनाओ आता है तो जनता ,पार्टी को देखती है समाज के ठीकेदार लोग उन्हें पार्टी का पाठ पढाती है और लोग बेईमानो को सांसद या विधानसभा में भेज भी देती। जनता का मिजाज का पता लगना बहुत कठिन सा मालूम पड़ता । अगर ७० फीसदी जनता नही सुधरेगी तो ये २० फीसदी लोग इनका शोषण, दोहन तो करेगी ही।

4 comments:

अक्षत विचार said...

bhai jra shaf-shaf likhiye aap kahana kya chahte hein?

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

अच्छी जानकारी मिली सर! अब तक मुझे पता ही नहीं था की देश में कोई ईमानदार प्रधानमन्त्री भी रहा है.

Udan Tashtari said...

दोहन का नियम सतत वं शाश्वत है. कभी ऐसे तो कभी वैसे.

kumar Dheeraj said...

सही टिप्पणी है लेकिन सच यह है कि कहने के लिए ये सारी चीजे है । मै देखता आया हूं कि यह आकड़े काफी दिनों से पेश किये जा रहे है लेकिन इसका असर कही दिखा है । मुझे तो नही लगता है । शुक्रिया