Thursday, November 4, 2010

केंद्र की सहायता बिना बिहार का विकाश बेईमानी

इतिहास गवाह है की कोई भी राज्य बिना केंद्र की सहायता से विकाश नहीं किया चाहे वह महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेस या पंजाब हो।बिहार में भले ही नितीश की सरकार क्यूँ न हों।नितीश की सरकार ने जरूर कुछ अच्छा काम किया पर केंद्र ने भी बिहार को कम नहीं दिया। नितीश अपने ५ वर्षों के कार्य-काल में अपराध पर कामयाबी पाई है पर विकाश के लिए जो साधन-संसाधन चाहिए वो बिहार के पास नहीं।
बिहार सरकार अपने आय के क्ष्रोत को बढ़ाने में विफल है जिस वजह से केंद्र द्वारा जो भी पैसा आता है उसे खर्च करने में असमर्थ रहता केंद्र सरकार ने आई आई टी बिहार को दिया पर बच्चे जब इस संस्था से पढ़ कर निकलेंगे तो फल देने किसी दुसरे राज्य में चले जायेंगे। जबकि बीज बिहार सरकार का और फल किसी दुसरे राज्य को। नितीश सरकार ने आर्यभट्ट तकनीक संस्था विश्वविधालय तो बना दिया पर बच्चे इस तकनीक को दुसरे राज्य में इस्तेमाल करेंगे। क्योंकि बिहार में कोई उद्योग नहीं, कल-कारखाने नहीं तो फिर इन बच्चों को रोजगार कौन देगा।
बिहार के अधिकांश लोग किसान है उन्हें बिजली-पानी चाहिए उन्हें फसल की सुरक्षा चाहिए उन्हें उन्नत किस्मों की बीज चाहिए, उन्हें रियायती दरों पर खाद्ध पदार्थ चाहिए, उनके फसलों के उचित दाम चाहिए और ये सब देने के लिए किसी भी राज्य को बिना केंद्र की सहायता लिए संभव नहीं। चाहे वह नितीश की सरकार हों या लालू-पासवान की सरकार हों।
बिहार का विकाश तभी संभव है जब राज्य और केंद्र में एक ही दल का सरकार हों। बिहार की जनता को जात-पात और पार्टी से अलग हटकर विकाश के मुद्दों पर लड़ाई करनी पड़ेगी। ५ वर्षों का समय अगर बहुत ज्यादा नहीं तो बहुत कम भी नहीं विकाश के लिए। अगर कोई सरकार सिर्फ ये कहे की हमने ५ वर्षों में अपराध मुक्त कर दिया तो बहादुरी नहीं।
बिहार की जनता सोंचे-समझे सिर्फ नितीश, लालू-पासवान या राहुल चालीसा पढने से काम नहीं चलेगा। ऐसा संयोग बनाना होगा की एक ही पार्टी की सरकार राज्य और केंद्र में हों।
बिहार अभी चुनाव के दौड़ से गुजर रहा है नितीश भी चिल्ला रहे की उन्हें ५ वर्ष और मिले। उधर राहुल भी चिल्ला रहे की अगर बिहार में विकाश हुआ है तो बिहार के लोग दुसरे राज्यों में क्यों पलायन कर रहे। राहुल यह भी कह रहे की केंद्र का पैसा गरीबों तक न तो पहुँच रहा और न ही विकाश के कार्यों में लगाया जा रहा । इस तरीके से तमाम आरोप-प्रत्यारोप का दौड़ चल रहा। सही क्या है और गलत क्या है ये तो बिहार की जनता ही फैसला करेगी। आगामी २४ नवम्बर को परिणाम सामने होंगे।
तब तक आइये हम सब मिलकर दिवाली का आनंद ले। आप सभी ब्लोग्र्रों को दिवाली की ढेर साड़ी शुभकामनायें .

Saturday, October 30, 2010

वोट के मामले में बिहारी जनता खामोश

बिहार के चुनाव में इस बार बहुत कुछ देखने और सुनने को मिला। चुनाव में टी एन शेषण और के जे राव का नाम भी लोगो के जुबान पर छाई रही। प्रथम चरण और द्वितीये चरण के मतदान में प्रसाशन की भूमिका थोड़ी एन डी ऐ सरकार की ओर नरम थी जो लोग २-४ वोट अगर डालना चाहते तो आसानी से डाल रहे थे इसकी वजह थी की वोटर लिस्ट से सैकड़ों की तादात में मतदाता का नाम डिलीट कर दिया गया था जिस वजह से लोगो ने बूथ पर ही धरना - प्रदर्शन करना सुरू कर दिया अन्तः प्रसाशन ने बहुत जगह तो मत डालने का अधिकार दे डाला कई जगह मतदाता नाखुश होकर बरबराते चले गए की यही नितीश सरकार का "विकाश" है।
बिहार में "विकाश" की चर्चा तो लोग कर रहे थे पर वोट किन्हें देंगे यह कहने में कतराते रहे। लेकिन मन का भेदी तो मन को टटोलने में खुछ हद तक तो कामयाब हो ही जाते। मैंने मुजफ्फरपुर संसदिये क्षेत्र में ११ विधान सभा क्षेत्र का दौरा किया कही उम्मीदवार के नाम पर एक मत नहीं बन रहा था तो कंही पार्टी भी अर्चने आ रही थी । लोग यह तय करने में लगभग सभी जगह उहापोह की स्तिथि में थे किस उम्मीदवार को अपना मत डाले । कई तो पार्टी लाइन से जुड़े थे तो कई उम्मीदवारों का चयन करने में उलझे थे ।
विकाश की बात हर जगह हो रही थी पर लोग प्रश्न भी करने से नहीं चुक रहे थे की नितीश जी ने ऐसा क्या विकाश किया अगर नितीश जी ने बिहार का विकाश किया तो फिर लड़ाई किस बात की? कांग्रेस के स्टार प्रचारक भी नितीश जी के वोट बैंक में सेंध मारने में सफल होते दिखाई दिए किन्तु ११ विधान सभा क्षेत्र से कांग्रेस एक भी जगह सीधी लड़ाई में नहीं थी।
हर जगह लगभग सीधी लड़ाई एन डी ऐ और राजद गठबंधन में ही है जो की कांटे की लड़ाई है । बिहार में आज भी जात-पात की बात गर्मजोशी के साथ देखने को मिली। ज्यादातर लोगों ने विकाश की बात को नज़रंदाज़ करते जात-पात पर ही अपना मत डालने में लगे रहे कई क्षेत्र में तो ऐसा भी देखने को मिला की अगर उनके जात का उम्मीदवार नहीं जीत रहा तो किसी तीसरे को मत डालते दिखे।
मुझे ऐसा लगता है की अभी बिहार को विकाश का मार्ग प्रसस्त करने में ५-१० वर्ष और लगेंगे तभी लोग जात-पात से उपर उठकर विकाश की बात को सही मायने में समझ पाएंगे।
बहरहाल द्वितीये और तिर्तिये मतदान तक नतीजे के तौड़ पर देखा जाये तो कांटे की टक्कर है यह कहना कठिन सा लग रहा है किसकी सरकार बनेगी। अभी नतीजे को आप ब्लॉगर के सामने रखने में मेरी जल्दबाजी होगी। मैं आप सभी को सिर्फ इतना ही बता सकते की बिहार के मतदाता खामोश है उनके दिलो-दिमाग में तो "विकाश" शब्द आ बैठा है पर जात-पात का संकट अभी भी बिहार पर है जो विकाश के रास्ते में बाधा उत्पन्न कर सकती है।

Sunday, October 3, 2010

लाइव कॉमनवेल्थ गेम्स २०१०

भारतीये यवम देश-विदेश के इतिहास में ३ अक्टूबर २०१० का दिन स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा। आज का लाइव कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीये इलेक्ट्रोनिक मीडिया सबसे पीछे दिखी जबकि भारतीय दूरसंचार नेशनल चैनल ने भारतीये समय के अनुसार ठीक शाम ७ बजे से सीधा प्रशारण दिखाने में सफल हो गए। मैं यंहा कहना चाहूँगा की सारे चैनल जो यह दावा करते है की लाइव दिखा रहे है उनका दावा आज बिलकुल व्यर्थ है और खोखला। मुझे पता नहीं की बाहरी इलेक्ट्रोनिक मीडिया मेरा मतलब है एनडीटीवी , स्टार न्यूज़ , जी न्यूज़, आज तक, आईबीएन -७ , आदी को लाइव न्यूज़ दिखाने की इजाजत थी या नहीं अगर थी भी तो ये विज्ञापन से कमाने में मशगुल थे। पर ये सब के सब भारतीये समय पर देश की जनता को लाइव दिखाने में असमर्थ थे। खैर छोड़िए !
कॉमनवेल्थ गेम्स का शुभारम्भ अपने निर्धारित भारतीये समय के अनुसार ठीक ७ बजे आतिशबाजी ढोल-ताशे, मृदंग, गाजे - बाजे, नगारे, तबले आदि के साथ आरम्भ हुआ। तबले पर नन्हा कलाकार केशव अपने हांथो का कमाल दिखा रहे थे लोग उनके वादन पर आनंदित व मुग्ध हो रहे थे जैसे ही गाजे-बाजे का कार्यक्रम ख़त्म हुआ देश-विदेश से आये मेहमान ने अपने-अपने ध्वज के साथ नेहरु स्टेडियम का फूट मार्च किया। फूट मार्च भी देखने के लायक था। खिलाडी अपने-अपने अंदाज़ में दर्शकों को रिझाने में लगे थे। एक-एक करके सभी देशों ने अपने ही अंदाज़ में फूट मार्च कर रहे थे। करोड़ों रुपये की लागत से बनी गुब्बारे भी दर्शकों को लुभाने में लगी थी वंही स्टेडियम का साज-सज्जा और रोशनी भी दर्शको को चका-चौंध कर रही थी। वाकई स्टेडियम का नज़ारा स्वर्ग से कम नहीं था जिसकी हम-आप कल्पना करते है की -"स्वर्ग कैसा होगा" ?
६० हज़ार दर्शको से भरा नेहरु स्टेडियम रंग-बिरंगे पोशाकों में कुछ-न-कुछ बयां ही कर रहे थे। जब भारतीये खिलाडियों का फूट मार्च का समय आया तो सारा स्टेडियम गूंज उठा। सभी ने बड़े उत्साह के साथ भारतीये खिलाडियों का जोरदार स्वागत किया। भारत के राष्ट्रपति , प्रधानमन्त्री , खेलमंत्री, दिल्ली प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी भारतीय खिलाडियों का स्वागत करने से पीछे नहीं दिखे। फूट मार्च के बाद भाषण बाजी का दौड़ चला जिसे सर्वप्रथम श्री श्री श्री कलमाड़ी ने शुरू किया। कुल मिलाकर कॉमनवेल्थ गेम्स का नज़ारा बेहद ख़ूबसूरत और स्वर्ग से कम नहीं था। शेष तो आप कंही-न-कंही देर-सबेर से यह नज़ारा देख ही लेंगे । यह लेख लिखने का अभिप्रायः मेरा यह है की लाइव देखने का आनंद ही कुछ और है। अगर आप चैनलों के माध्यम से देख रहे होंगे तो आप खेल कम विज्ञापन का आनंद ज्यादा ले रहे होंगे। चलिए तमाम उहा-पोह के बाद भी समय पर कॉमनवेल्थ गेम्स आरम्भ हो गया इसकी ख़ुशी हमसबों को है। अगर आपको मौका मिले तो जरूर ३ अक्टूबर से 13 अक्टूबर के बीच खेल को यवम दिल्ली को अवश्य देखे ।

लाइव

Thursday, September 16, 2010

विकास का यही तो फ़ायदा है

जी हाँ एनडीटीवी के रविश जी यह विश्वास करते है की "बिना रोक-टोक के उड़ाने भरना ही विकाश का सही मतलब है। उन्होंने इस बात को "ब्लॉग वार्ता : ब्लोगर मन बिहार भयो " में लिखा है।

Sunday, September 12, 2010

भारत की आम जनता अगर बन्दूक उठा ले तो कोई गुनाह नहीं

कांग्रेस की सरकार और उसकी कैबिनेट ने यह फैसला ले लिया की डिवोर्स के नियम - कानून में बदलाव जरूरी। तो इस सत्र में कांग्रेस ने इस अधिनियम को क्यों नहीं राज्यसभा से पारित कराकर लोकसभा बहस का मुद्दा उठाया। सुप्रीमकोर्ट ने बार-बार सरकार को ललकारा है इस मुद्दे पर किन्तु सरकार अभी भी मत्सुन्न्य आखिर क्यों ? क्या सोनिया की सरकार जनता को ठगने के लिए कैबिनेट से इस प्रस्ताव को पास कराया ?
क्या जात के आधार पर जनगणना अत्याधीक प्रिये था इन नेताओ के लिए या भारत के सैंकड़ों लोग जो इस इस कानूनी प्रक्रिया से झूझ रहे वर्षों से? कोर्ट का चक्कर लगाते- लगाते लोग थक चुके है उनकी उम्र बीततीचली जा रही, सैंकड़ों महिलाए माँ बननेसे वंचित हो रही तो वंही पुरूष भी बाप बनने से वंचित हो रहा है सिर्फ इसलिए की कानूनी दांव-पेंच बड़ा कठिन है ?
मुझे यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं की अगर ऐसे लोग सरे -आम बन्दूक उठा कर नेताओं को भुनाने का काम करे तो कोई गुनाह नहीं होगा। सरकार और विपक्ष इस मुद्दे पर शीघ्र ध्यान दे अन्यथा अंजाम बुरा होगा।

Saturday, September 4, 2010

मिले सुर हमारा-तुम्हारा...............

मिस्टर नितीश कुमार, मुख्यमंत्री बिहार आज बिहार के सिपाहियों के जान-माल की रक्षा करने में असमर्थ दिखाई दे रहे है। शायद उन्हें यह पता नहीं था की एक दिन ऐसा भी आयेगा। बिहार में बढ़ती बेरोजगारी, गरीबी, अत्याचार , नक्सलबाद जैसे समस्याओं को लेकर मीडिया में न आना ही ऐसे परिणामों को दर्शाती है। आज बिहार में भुखमरी, अत्याचार, लूट-खसोट दिन-दहारे हो रहा पर मीडिया खामोश !
नितीश कुमार ने ५ वर्षों में अगर कोई काम किया है तो वह है "बिहार की मीडिया को अपंग" बनाना। विज्ञापन के नाम पर सबको धमकाया-हर्काया यंहा तक की मीडिया के मालिकों को भी अपने इशारों पर नचाया भला पैसा भी क्या चीज़ है।
मीडिया मालिकों और संपादक भी अपने सहकर्मियों को सीधा-सीधा निर्देश दिया की नितीश चालीसा ही लिखो। भुखमरी, अत्याचार, लूट-खसोट, भ्रष्टाचार और नक्सल जैसे ज्वलंत समस्या दबती चली गई और अन्तः इसका परिणाम लूकस टेटे की मौत । दूसरी ओर अभय यादव की पत्नी का बयान "अगर नितीश ने सुहाग नहीं बचाया तो कर लेंगे आत्महत्या" । अभी तीन बंधक की जान खतरे में है। समय बीतता जा रहा और मौत करीब आते जा रही है। ऐसे में बिहार वासियों के और बिहार के मीडिया के लिए नितीश चालीसा पढना यही दर्शाता है की -मिले सुर हमारा-तुम्हारा और जेब भरे तुम्हारा और हमारा।

Wednesday, August 25, 2010

दिल्ली मेट्रों दिल्ली की शान

"दिल्ली की मेट्रों दिल्ली की शान" है इसमे जरा सा भी संकोच करने की गुंजाईश नहीं । भीड़ यंहा भी है पर राहत भी उतनी ही है, व्यस्तता भी उतना ही है जितना आराम, कहने को खड़े होकर सफ़र करते हम पर इमानदारी भी उतनी ही है, महिला हो, बुढ़ें हो या अपंग सबके-सब देते शिष्टाचार के आयाम। जी हाँ ! यंहा डीटीसी नहीं यंहा मेट्रों का सफ़र है जिसमे सबको आराम ही आराम ।
दिल्ली मेट्रों का नियुन्तम किराया ८ रूपया है। डी टी सी के वनिस्पत मात्र ३ रूपया अत्यधिक। मगर सुबिधा आप देखे तो तीब्र गति से आप अपने गंतब्य स्थान पर पहुचते है, वातानुकूलित वातावरण में यात्रा करते है, साफ़-सफाई से आप योग्य होते है, आपकी शिकायत को सुननेवाले होते है। अब आम जनता को क्या चाहिए जल्द-से-जल्द और सुरक्षित पहुँचनेका सीधा मार्ग है दिल्ली मेट्रों।
काश ये सुबिधा भारत के गाँव-गाँव में होती...................................................

Monday, August 23, 2010

दिल्ली की डी टी सी बस और सुबिधाये नदारत

जी हाँ ! आज मैं आर के पुरम से मयूर विहार के लिए डी टी सी के ६११ नंबर का बस जो लो फ्लोर की बस थी उसमे चढ़ा । गर्मी इतनी अत्यधिक थी की लोग गर्मी से परेशान थे। इनमे आधी सीट तो महिलाओं के लिए होती है तो आधी से कम सीट पुरूषों के लिए होती है। दो सीट बुजुर्गो के लिए होती है उस पर भी कोई-न-कोई महिलाएं ही नज़र आएँगी या फिर युवा वर्ग। भीड़ इतनी अत्यधिक थी की लोगों को सीट मिलना दुर्लभ ही था। मैं भी उसी क़तर में खड़ा था। हर पड़ाव पर भीड़ बढाती ही जा रही थी और बस के कनडक्टरसाहब टिकेट काटते जा रहे थे।
मैंने बस में चर्चा छोड़ दी - जिंदगी नरक है क्या यही जिंदगी है की लोग बस धक्का-मुक्की खाते चले फिरें ? क्या यह जनसँख्या का परिणाम है या फिर राजनेताओं की अनदेखी? इतन कहना ही मेरा था लोग आपस में बर्बराने लगे आप ठीक कहते है। इन नेताओं ने हमारी मजबूरी को समझ लिया है। फिर कुछ देर ख़ामोशी रही। मैंने फिर कहा हम जनता ही सुल्फेट हैं । फिर आवाज आई आप ठीक कहते है। ये नेता गण हमारी कमजोरी को समझ गए है। तो मैंने कहा क्या आपने इन नेताओं की कमजोरी अब तक नहीं समझा क्या? बस मेरा इतना कहना था की लोग चिल्लाने लगे गेट खोलो गेट बंद नहीं होगा हवा आने दो आदि - आदि बाते कहने लगे। नतीजे के तौड़ पर हमने देखा बस का गेट खुल गया और बंद नहीं हुआ ।
मैंने यह महसूस किया की अगर लोगो को नेतृत्वा मिले तो लोग पानी में आग लगा दे। जनता को नेतृत्वा चाहिए जो नेता गण ही इन्हें दे सकते। ये नेतृत्वा के बगैर लाचार है, अधर है, दिशा हिन् है, और कमजोड है। इन्हें नेतृत्वा मिले तो ये वो सब कर सकते जो आज के नेता नहीं कर सकते। जनता भी नेता की कजोरो को समझती, परखती है पर लाचार है चुकी इनके पास नेतृत्वा की कमी है।
डी टी सी की बस में कम से कम ५ रूपया फिर १० रूपया और अंतिम पड़ाव पर जाने के लिए यानि जिस रूट की बस है वंहा तक का किराया १५ रूपया है। और सुबिधा के नाम पर कुछ भी नहीं। क्या यही सरकार है? क्या यही आज़ादी है?

Friday, August 6, 2010

प्रधान मंत्री के नाम खुला पत्र

प्रधान मंत्री जी, आज युग बदला, समय बदला, शताब्दी बदली किन्तु लोग नहीं बदले। लोग (जनता) आज भी १९४७ के पीछे वाली है। मैं बारीकी से देख रहा हूँ की किस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के लोगों को फोड़ा था आज की जनता और नेता भी उसी रस्ते पर है। अगर यही हालात रही तो भारत की तस्वीर आनेवाले समय में कुछ और होगी जिसकी परिकल्पना आज के नेतागण नहीं कर रहे । संसद में मीडिया के सामने (प्रसारित) लम्बी-चौड़ी भाषण दे डालते लेकिन क्षेत्र में ठीक उसके विपरीत काम करते।
मैं गंभीरता से यशवंत जी (पूर्व वित्त मंत्री) का संसद में भाषण सुन रहा था। कुछ बातें अच्छी थी तो कुछ आपत्ति जनक था "उन्होंने कहा की आज मैं एक कुआँ भी नहीं खोद सकता चुकी मेरे पास फंड नहीं और आज का नौजवान किसी बड़े पद पर हो तो मैं उसके सामने क्या हाँथ जोडूंगा" । वो भूल गए की जनता के द्वारा ही आज जो कुछ है भले ही कभी आई ऐ एस रहे हो आज वो जनता के द्वारा ही सब कुछ है। जब वे एक नौजवान के सामने हाँथ नहीं जोड़ सकते तो आम आदमी जो बुजुर्ग हो वो कैसे इन आई ऐ एस को हाँथ जोड़ेगा? यह तो राजतन्त्र वाली बात हुई। न की लोक तंत्र और प्रजातंत्र ।
बी जे पी नेता अब बौखला गए क्योंकि उन्हें मांश खाने का मौका नहीं मिल रहा (कहाबत है जब गिदर और शेर को मांश खाने की लत पर जाती तो उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
राष्ट्र मंडल खेल को लेकर जो तैयारियां की गई और उसमे जो अनिमियेता हुई उसमे कांग्रेस की छवि खराब होती नज़र आ रही । चुकी कलमाड़ी कांग्रेस से ही मनोनीत है और कलमाड़ी के नेतृत्वा में ही घोटाले हुए ऐसे में कलमाड़ी का इस्तीफा तुरंत और शीघ्र लेना चाहिए । अगर अभी नहीं ली गई तो कल बी जे पी वाले कांग्रेस पर हल्ला-बोल राजनीत करेंगे।
मुझे मालूम है और पुरे देश को मालूम है की एम् सी डी में बी जे पी ही सक्रिय है उन्ही का मेयर है तो घपले-बाज़ी में उनका भी हाँथ है। अगर आप दोनों पार्टी मिलकर भारत को बर्बाद करना चाहते भारत को लूटना चाहते तब तो कोई बात नहीं । अगर आप और आपकी पार्टी भारत के सामने स्वक्ष रहना चाहती तो अविलम्ब कलमाड़ी का इस्तीफा लेना चाहिए जिस तरह आपने विदेश राज्य मंत्री का इस्तीफा ले लिया था।
मैं पुनः कहूँगा की कलमाड़ी का इस्तीफा जल्द से जल्द लेना चाहिए इनके इस्तीफा देने के वावजूद राष्ट्र मंडल खेल भारत में सम्पन्न होगी और अच्छे से होगी।
अन्तः मैं यही कहूँगा की अभी नहीं तो कभी नहीं और ऐसे में कांग्रेस को बहुत बड़ा नुक्सान उठाना पर सकता है।

Thursday, August 5, 2010

आखिर तेंदुलकर क्यों चुप?

भारत के जाने-माने बल्लेबाज़ सचिन तेंदुलकर आखिर चुप क्यों ? क्या वे भारत के नागरिक नहीं जिनके देश में आई पी एल और राष्ट्र मंडल जैसे खेल के आयोजन पर रुपयों का बंदरबांट हो रहा ? खेल से तो वे जुड़े है उन्हें शीघ्र अपनी टिप्पणी देनी चाहिए ।
भारत के करोड़ों जनता उनके बल्लेबाजी को लेकर दुआएं मागती है, संसद में उन्हें "भारत रत्न" देने की मांग की जाती है तो क्या तेंदुलकर का दायीत्वा नहीं बनता की वे इतने बड़े घोटाले पर अपनी टिप्पणी दें। भारत के नागरिक होने के नाते उन्हें भी अपनी टिप्पणी देनी चाहिए वरना वो "भारत रत्न " के सही हक़दार नहीं।
१९८० के दशक में सुनील गावस्कर भी काफी नामी-गिरामी बल्लेबाज़ थे उस समय उनकी भी बल्लेबाजी में पूरी दुनिया लोहा मानती थी तो क्या उन्हें "भारत रत्न " नहीं मिलाना चाहिए? मेरे समझ से तो उन्हें भी "भारत रत्न" तेंदुलकर से पहले मिलना चाहिए।
हर भारतीये का यह कर्तब्य है की वो भारत में अनियमतता का घोर विरोध करे वरना वो सच्चा भारतीय नहीं। मिशालके तौर पर सिने अभिनेता शाहरूख खान एक ऐसे जिंदादिल इन्सान है जिन्होंने बल थाकड़ेसे माफ़ी मांगने से इंकार कर दिया। अमिताभ बच्चन भी जब कभी भारत पर या भारत में अनियमतता का संकट गहराता है तो अपनी आवाज़ को देने से चुकते नहीं। "सेव टाइगर" के लिए प्रचार-प्रसार उनके भारतीये होने का गर्व प्रदान करता है।
लोग कहते है सेलेब्रिटी ही प्रचार-प्रसार के लिए सही माध्यम है ? मैं पूछता हूँ की भारत में ऐसे कई सेलेब्रिटी है जो घोटाले पर अपनी आवाज़ को ताला -चाभी दे देते । वाह रे सेलेब्रिटी ! वाह रे दुनिया ! ऐसे सेलेब्रिटी का क्या मतलब जब उनके ही खेल की दुनिया में इस तरीके का घपले बाज़ी हो और ये सेलेब्रिटी छु-खामोश हो तो इनका क्या कहना ! ये तो भारत रत्न के क्या किसी भी रत्न के लायक नहीं।

Tuesday, August 3, 2010

५४५ सांसद धोखेबाज़ तो १.२५ करोड़ जनता नौटंकीबाज़

जी हां ! यह सच है की भारत में घोटाले-पर-घोटाले होते रहते है और भारत की जनता इन्हें सिर्फ पढ़ती -सुनती- देखती रहती है, चुकी जनता के पास कोई उपाय नहीं । वोट विकल्प नहीं और जनता के पास कोई ऐसा सरकारी हथियार नहीं जिससे ये सांसदों को सबक सिखा सके। ऐसे में मीडिया कर्मी भी कम ड्रामेबाज नहीं। भारत का तीसरा अस्तंभ न्यायापालिका ये भी अंधे कानून से बंधा है की ये भी चाह कर कुछ कर नहीं सकती। और ऐसे में पूंजीपति का बल्ले-बल्ले होना लाज़मी है।
आज भारत में चारो ओर घोटाले की चर्चा हो रही कोई सीबीआई पर उंगली उठा रहा तो कोई व्यवस्था पर। ये उठाने वाले कोई भारत के आम जनता नहीं बल्कि मीडिया ही है भले ही ये भी पाक-साफ़ न हो किन्तु आवाज जरूर उठाते। अमित शाह और नरेन्द्र मोदी पर कई गंभीर आरोप है तो लालू पर ९५० करोड़ का चारा घोटाला न्यायालय में अब तक लंबित है वंही आज दिल्ली में आयोजित राष्ट्र मंडल खेल को लेकर तमाम घोटाले का पर्दाफाश हो रहा है। इन घोटालो और आरोपों का खेल वर्षों तक न्यायालय में चलता रहेगा तब तक भारत की आबादी १.२५ करोड़ से ३ सौ करोड़ पहुँच जाएगी और भारत की जनता यूँ ही तमाशबीन बनी रहेगी।
मैं पूछता हूँ की ये सब ५४५ सांसद संसद में क्या कर रहे सिर्फ जनता को ठग रहे या खुद का जेब भर रहे। महगाई पर संसद ४ दिनों तक नहीं चली फिर संसद चलने लग गई क्या महगाई कम हो गई। मैं तो यही कहूँगा की सब-के-सब सल्फेट है ये जनता को ठगते है और जनता लाचार है।चूकी इनके पास कोई हथियार नहीं जिससे ये सांसदों को कुचल सकें ।
सभी दल को को एक-एक सांसदों का आचरण पता है फिर भी ये तब तक खामोश रहते जब तक इनके काम चलते रहते जब ये समझ लेते की अब इनसे पार्टी का काम नहीं चलेगा तब ये सी बी आई का प्रयोग करते और उतना ही तक सिमित रहते जितना में इन दलों/ पार्टी का काम चल जाता।
पूंजीपति , किसान , मजदूर और व्यवसायी वर्ग को वोट के अलावे कानूनी दायित्व मिल जाये तो इन नेताओं को ४७ सेवेन से गोली दागने में देर नहीं लगेगी।

Friday, July 30, 2010

आत्मबल के धनी व संघर्षशील मिलाप डुग्गर नहीं रहे

आत्मबल के धनी व संघर्षशील मिलापचंद डुग्गर ( मरुभूमि पुत्र ) आज भारत के १.२५ सवा सौ करोड़ आबादी के बीच से स्वर्गवास को चले गए। अपने पीछे धर्मपत्नी, पुत्र, पुत्रवधू और पुत्रिया को छोड़ गए। इश्वर उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे ।
मुझे याद है जब डुग्गर जी दिल्ली के प्रेस क्लब में आयोजित गोष्ठी " आतंकबाद और भ्रष्टाचार " पर अपना वक्तव्य दे रहे थे। उन्होंने कहा था की भ्रष्टाचार ही आतंकबाद का जननी है इसे शीघ्र रोकने का प्रयास भारत के प्रत्येक नागरिक और शिक्षण संस्थान को करना चाहिए। मैं उनकी बातों को अपने इस ब्लॉग के माध्यम से आगे बढ़ाते हुए भारत के तमाम नागरिक से अपील करता हूँ की वो स्वर्गीय मिलाप डुग्गर जी की आवाज को अपने जीवन के कड़ी में जोड़ कर आतंकबाद और भ्रष्टाचार के खिलाप आन्दोलन छेड़े । यही मिलाप के प्रति हमारी सच्ची श्रधांजलि होगी।

नोट : अधिक जानकारी के लिए www. iaseuniversity.org.in पढ़े ।

Thursday, July 22, 2010

और यूँ बन गए मुरली हीरो ...

आज २२.०७.२०१० दोपहर उपरांत भारत - श्री लंका का क्रिकेट मैच किसी चैनल पर मैं देख रहा था हलाकि मैच देखने के ख्याल से नहीं देख रहा था इसी कड़ी में मै समाचार भी देख रहा था। समाचार से ज्ञात हुआ की श्री लंका के मुरली का ८०० सौ वां विकेट का इंतज़ार है। मैं कई बार मैच के चैनल को खोल-खोल कर देख रहा था पर मुरली का ८०० सौ वां विकेट मिल ही नहीं रहा था दर्शक दीर्घा में बैठे लोग को भी मैं देख रहा था उनकी आँखे भी उतनी ही उत्सुकता से मुरली पर टिकी थी जीतनी पूरी दुनिया की।
भारत का नौवां विकेट रन आउट हुआ मुरली ने ताली बजाई अपने टीम के लिए। मुरली के चेहरे पर मुस्कान भी दिखी पर लोगो की ओरजब कैमरा गया तो लोगो में मुरली के लिए एक अलग जगह बना राखी थी इसलिए ख़ुशी तो थी पर एक कशिश जरूर थी की मुरली को एक और विकेट मिले जो ८०० सौ वां था। ओवर पर ओवर होता रहा पर मुरली जस का तस नज़र आते रहे। हाँ उनके परिवार के लोगो में एक ओर चहरे पर उदास तो दूसरी एक झलक मुरली को बेताज बादशाह बनने की जरूर थी पर ये हो नहीं रहा था। दर्शक दीर्घा में बैठे तमाम दर्शक चाहे वो बूढ़े हो या बच्चे सब-के सब मुरली के लिए एक तरह से प्रार्थना ही कर रहे थे।
मैंने सोंचा की मुरली ने तो ७९९ का एक स्कोर यानि विकेट पा ही लिया है जो सायद याद करने योग्य है। मै रह-रह कर चैनल बदल लिया करता था सिर्फ इसलिए नहीं की मेरी धरकन तेज हो रही थी या मैं ब्याकुल था मुरली के ८०० विकेट पाने के लिए। मैं तो सिर्फ खेल भावना से क्रिकेट चैनल को देख रहा था। मैं भारत के १.५ करोड़ जनता की तरह पागल नहीं हूँ की अपना सारा काम-काज छोड़ क्रिकेट मैच देखू। हाँ भारत का रहने वाला हूँ भारत का गुण-गान गाता हूँ। आज पता नहीं मुरली जैसे गेंदबाज़ को देख मुझे लगा की इनके ८०० वां विकेट के लिए न जाने कितने लोग आँख गराए बैठे है सायद उनके मन में खेल की भावना हो। न की पागलपन। जैसा की भारत के लोग पागल है किसी एक - दो नाम के पीछे ।
अन्तः मैंने जब चैनल बदला तो मुरली ही गेंद फेंक रहे थे मैंने कहा "जय बाबा गरीब नवाज़ " ओर मुरली को विक्केट मिल गया । सायद मेरे साथ ऐसे करोडो लोग होंगे जो खेल की भावना से मुरली को दुआ दे रहे होंगे। मुरली के ८०० वां विकेट लेने में करोडो लोगों की दुआ काम आई जो खेल भावना से जुडी थी।

Saturday, July 17, 2010

बिहार विधान सभा चुनाव नजदीक

बिहार विधान सभा चुनाव को लेकर बिहार ही नहीं अपितु पुरे देश की जनता का नज़र बिहार पर है। एक ओर लालू एवं पासवान बिहार में डेरा डाले हुए है तो वंही कांग्रेस भी इस आस में है कैसे बिहार में सेंध मारा जाये? बिहार में जातीय आधार को नाकारा नहीं जा सकता । बिहार का चुनाव जातीय आधार पर अब तक अवस्य होता आया है और ऐसा लगता है ये जातीय परम्परा सायद बिहार से कभी ख़त्म भी नहीं होगा ।
वर्तमान मुख्यमंत्री नितीश जी जात से कुर्मी है तो कुर्मी वोटको वो बटोरने में सफल है साथ -साथ तात्मा, नोनिया, कोयरी, मलाह आदि जात पर पाकर बना सकते वंही सवर्ण में भूमिहार , ब्रह्मण और कायस्थ का वोट भी बटोरने में सक्षम हो सकते ।
दूसरी ओर लालू जी अपने यादव वोट को चमोट कर पकडे हुए है। इनके साथ पासवान जी भी अपने पासवान वोट को टस-से-मसनहीं होने देंगे। और इन दोनों समीकरण के साथ सवर्ण वोट में राजपूत का वोट भी इन्ही के साथ होगा। राजपूत वोट का बिछुरने का एक मात्र कारण है नितीश का भूमिहार वर्ग को तरजीह देना। अब अकेले नरेन्द्र सिंह और आनंद मोहन राजपूत का वोट नितीश को नहीं दिला सकते । नरेन्द्र सिंह की छवि अपने बेटे के आत्म हत्या के बाद बिगड़ी तो आनंद मोहन की छवि एक क्रिमनल के तौड़ पर जाना जाता है।
कांग्रेस बिहार में सेंध का प्रयास कर रही लेकिन कांग्रेस के जो असली वोट बैंक है वो ब्रह्मण और भूमिहार। ये दोनों अभी नितीश के साथ चिपके हुए है। ऐसे में कांग्रेस को एक मात्र सहारा है मुस्लिम वोट का। माने तो मुस्लिम वोट तो सबको चाहिए । मुस्लिम भी इस बार दुबिधा में है । इसलिए मेरा मानना है की मुस्लिम वोट इस बार बतेगी ऐसे में नितीश का क्या होगा यह कहना बड़ा मुश्किल लग रहा है। भा जा पा का वोट बैंक है कायस्थ और वैश्य। कायस्थ तो मीठी जात है इसे जो चाहे भुना ले लेकिन वैश्य तो बनिया है इसे जब तक नफा-नुकसान का समझ नहीं आएगा तब-तक इधर-उधर डोलता रहेगा। ऐसे में हमें लगता है नितीश अलग-थलग पद जायेंगे और कोई तीसरा बाज़ी मार ले जायेगा ।

Friday, July 16, 2010

बौखलाए नितीश

बिहार विधान सभा का चुनाव आते ही नितीश कुमार बौखला गए । तस्लीमुद्दीन तो आनंद मोहन सभी अपराधी तबके के लोग को अपने दल में शामील करने में लगे है। उधर प्रमुख विरोधी दल लालू प्रसाद यवमराम विलास पासवान नितीश का बौख्लापन का मज़ा ले रहे है। नितीश इस तरह भी बौखलाए की राजपूत वोट भी इनसे बिछुरने लगी । नितीश का बौख्लापन उस समय भी दिखा जब इन्होने भा जा पा के तमाम राष्ट्रीय नेता का भोज ही काट दिया ।
नितीश अब जो कुछ भी कर रहे वह बौखलाहट का सन्देश दे रही । स्वर्गीय दिग्विजय सिंह के मृत्यु पर भी इन्होने राजनीत करने से बाज नहीं आया। इनके विरोधी तो यंहा तक कह दिया की नितीश अहंकारी हो गए ।
नितीश कुमार के लिए अब बिहार विधान सभा का चुनाव आसान नहीं । चाणक्य कहे जाने वाले नितीश कुमार अब बहुत पीछे चले गए । कहा जाता है की जब-जब घमंड का रूप धारण करता है कई रावन का नाश होते जाता है । शायद अब नितीश कुमार इसी चिंता में है । हलाकि बिहार की बुध्धिजीवी जनता आज भी नितीश को चाह रही इसमे भूमिहार, कायस्थ यवम ब्रह्मण वर्ग है। हलाकि भूमिहार, कायस्थ और ब्रह्मण का वोट भी इन्हें प्रचुर मात्रामें मिलनेवाला नहीं है।
नितीश सही में बौखलाए हुए हैं सायद इस बार नितीश की पाली नहीं बिहार की जनता नकार भी सकती है इन्हें ??????

Friday, June 18, 2010

फांसी के फंदे में मुहब्बत

कहते है लोग प्यार दो तरीके के होते है एक टेक्टोनिक दूसरा प्लुतोनिक। दोनों में जमीं-आसमा का अंतर है। न जाने क्यों आज-कल की लड़कियां समझने में असमर्थ है ? नतीजे के तौर पर फांसी का फंदा ही नज़र आता है। जबकि मरने से पहले ये लडकिय किसी को भी फंसने या फ़साने से वंचित कर जाती है अपने सुसाइड नोट में लिखकर । लेकिन इन्हें क्या पता की मरने के बाद इनके परिवार के सदस्य या प्रेमी पुलिस के जाल में कैसे फंसते या फसाए जाते या पुलिस इनके परिवार के लोगो को कैसे सताती है?
प्यार करना जुर्म नहीं ? ऐसा मेरा मानना है किन्तु प्यार में अपने होशो-हबास को इस क़द्र खो नहीं देना जिससे फांसी का फंदा ही गले में डाल ले। मैंने अपने जीवन में कई ऐसे उदाहरण देखे है की लडकिय अंतिम क्षण में खुद को जिम्मेवार समझकर आत्म-हत्या कर लेती । सायद इनका प्रेम के प्रति नजरिया हो , सायद ये समझती हो की प्रेमी बदनाम न हो और मैंने उनके प्रेम के लिए क़ुर्बानी दे डाली। किन्तु यह ढकोसला ही कहलायेगा। आप में जब लड़ने की क्षमता न हो, अच्छे-बुरे का ज्ञान न हो तो प्रेम ही कैसा? प्रेम तो एक तपस्या है, बलिदान है। महाभारत काल में राधा ने भी कृष्ण से प्यार किया जो आज भी अमर है? लोग इनकी पूजा करते। लोग आज राधे-कृष्ण का गुण-गान करते, पूजते , अपने मन-मस्तिक में रखते फिर तुम्हारे प्रेम में ऐसी कौन सी बात आ जाती की तुम आत्म -हत्या या फांसी के फंदे में खुद को डाल लेती ?
मतलब साफ़ है की तुम्हारा प्रेम न तो पाक है न साफ़ ? तुम प्रेम के नहीं वासना के इतनी दीवानी हो जाती की तुम्हे "प्रेम" शब्द का ज्ञान ही नहीं हो पाता ।
आज-कल की लड़कियां अपने माता - पिता से कोसों दूर रहकर अकेली वास करती इन्हें पूरी आजादी होती छूटकर टहलने-घुमने , बात-चित करने का । ये एक ही घर के अन्दर "पी जी" स्टाइल में ज्यादातर रहती , घुमती सैर करती पर इन्हें क्या पाता की ये एक दिन अपने ही गले में अपने ही दुपट्टा से फांसी लगाएंगी।
दोस्तों , माता एवं बहनों खुद को संभलो इज्ज़त तुम्हारा है इस इज्ज़त को तुम्हे ही संभालना है वर्ना कुत्ते तो हज़ार है जो तुम्हे खाने को तैयार बैठे है।
तुम ये गफलत में न रहो की तुम्हे चाहने वाले हज़ार है ? तुम इस फ़िराक में रहो की तुम लूटो ही नहीं । एक बार लुट गई न तो कंही के भी नहीं रहोगी। अंजाम वही है की प्यार में फांसी ..............................................

Thursday, June 10, 2010

कांग्रेस सरकार का एतेहासिक फैसला

वर्षों से लंबित हिन्दू मैरिज एक्ट में शंसोधन को आखिकार कांग्रेस सरकार ने फैसला ले ही लिया । इस फैसले से सैंकड़ों नर यवम नाडी को बहुत बड़ी राहत मिली । इस फैसले से वैसे माता-पिता को नुक्सान पहुंचा होगा जिन्होंने दहेज़ प्रथा कानून के आड़ में वैसे लड़के-लड़की का शादी कर देते थे जो मानसिकरूप से कमजोर , नपुंसक, अपंग या अन्य बिमारियों से ग्रसित बच्चे-बच्चियो का शादी कर देते थे। ऐसे माँ-बाप के लिए यह शंसोधन अभिशाप होगा वन्ही कई ऐसे लड़के-लड़कियों के लिए वरदान होगा।
कांग्रेस सरकार यह शंसोधन वाकई काबिले तारीफ़ है। समय बदला , युग बदला तो काननों क्यों नहीं? समय के साथ कांग्रेस भी चले यह तो भारतीये समाज के लिए शुभ है।
नए शंसोधन में जो मुझे मालुम है वह यह की कोई भी चाहे वह नर या नाड़ी हो उसे तलाक ६ महीने के अन्दर मिल जायेगा आपस में समझौता न होने पर। पहले यह प्रक्रिया लम्बी थी अब यह राह लोगों के लिए आसन सा हो गया। इस नए शंसोधन में मुख्या रूप से फिलहाल जो बात सामने आई है वह यह की :-
१ अगर कोई स्त्री या पुरूष किसी तीसरे व्यक्ति से सम्बन्ध स्थापित करता है तो दोनों में से किसी एक के चाहने पर तलाक हो सकता है वह भी ६ महीने में।
२ स्त्री-पुरूष दोनों में से किसी एक ने भी क्रूरता की तो वैसे केस में भी तलाक ६ महीने के अन्दर हो सकता।
३ २ साल से एक साथ नहीं रह रहे स्त्री-पुरूष को भी तलाक ६ महीने के अन्दर मिल सकता।
४ धोखाधारी से शादी के मामले में भी ६ महीने में तलाक मिल जायेगा।
५ मानसिक रूप से कमजोड स्त्री या पुरूष के हालात में भी ६ महीने में तलाक मिलेगा।
वाकई कांग्रेस का यह एतेहासिक फैसला है जो सैकड़ों हिन्दुओं को राहत देने का काम किया है। देश-विदेश से बाहर रहने वाले हिन्दुओं को मानो कांग्रेस ने बहुत बड़ा राहत दिया । सिर्फ यही नहीं कोर्ट में सैंकड़ों केस लंबित पड़ी को भी कांग्रेस सरकार ने राहत दिया। यह समय की मांग भी थी।

Thursday, June 3, 2010

जिधर देखे खीर उधर गए फिर

भारतीय मीडिया का आज़ादी के बाद अब तक यही रवैया रहा है की "जन्हा देखा खीर उन्ही गया फिर"। बड़ी से बड़ी खबर को आप गौर से देखेंगे तो आपको लगेगा की कंही न कंही इसमें मीडिया कर्मी अपना उल्लू सीधा किया है। भारत के चौथी अस्तभ और समाज के दर्पर्ण कहलाने वाले ये मीडिया कर्मी आज सिर्फ अपना उलू सीधा करते है।
खबरे बनती नहीं आज बनाई जाती है। चाहे वो छोटे तबके के पत्रकार हो या बड़े तबके के सभी अपने स्वार्थ में ख़बरों को तरजीह देते है। इन्हें अगर आप दुत्कार दे तो आपके पीछे पर जायेंगे और संसद या निचले अस्तर पर हंगामा खड़ा करना चाहेंगे। इनके अस्तर इतने निचे गिर गए फिर भी ये चौथी अस्तभ बने है क्योंकि इनके पीछे खबरची नेता है।
आपको सायद नहीं मालूम की ये लोग प्रधान मंत्री कोटे से एक सप्ताह के लिए विदेश भेजे जाते सिर्फ इसलिए की आप जाओ थोडा येशमौज कर लो। आप गौर से देखेंगे तो कुछ चैनल सरकार के पक्ष में रहेगी तो कुछ प्रिंट मीडिया भी। मीडिया में भी मारा-मारी है।बड़े मीडिया छोटे मीडिया कर्मी को तरजीह नहीं देते तो छोटे मीडिया भी बड़े मीडिया को तरजीह नहीं देते। अन्तः हालत ऐसे उत्पन्न होते की कुछ ख़बरों जन्हा बड़ी रकम मिलनेवाली होती वंहा इन्हें नुक्सान उठाना पड़ जाता । आप जब भड़ास मीडिया को पढेंगे या अस्थानिये अस्तर पर देखेंगे तो मीडिया का रोल आपको बड़ा हस्याद्पद लगेगा। आज का मीडिया कर्मी सही मायने में चटोरपन हो गया है। चटोरपन हो भी तो क्यों न हो नेताओ का तो मीडिया के साथ ऐसा सम्बन्ध है जैसे एक पति-पत्नी का। कुछ प्रमुख पार्टी के नेता को आप प्रत्येक दिन देख सकते। खासकर भा जा पा और कांग्रेस में। ये नेता ऐसे है जिन्हें अपने जिला का चौहद्दी नहीं मालूम फिर भी राज्य सभा के सदस्य बना दिए जाते या फिर जाती के नाम पर सदस्य। यही नेता गन मीडिया वालो को चापलूसी सिखाता खबरों को उलट-पुलट करना बताता। तो भाई सरकारी ऑफिसर भी कान्हा पीछे....
आज का मीडिया आपको फ़ोन लगाएगा पूछेगा की :
सर! आज का मौसम कैसा रहेगा
जवाब में : बिलकुल अच्छा रहेगा
सर! ऐसी संभावना हो सकती है की एक-दो रोज में मौसम कुछ बदल जाये
जवाब में : हाँ ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?
कल होकर आप अखबारों में देखेंगे की मौसम विभाग ने कहा एक-दो रोज के अन्दर वर्षा के साथ कुछ छींटे भी हो सकते।
दिल्ली के जी बी रोड पर पुलिस का दौरा हुआ खबर छपी की "तबले की थाप की जगह पुलिस के बूट की थाप" । आप बारीकी से देखे तो कई ऐसे खबर आपको मिलेंगे की ये खबरे या तो बनाई गई है या फिर पैसे लेकर लिखी गई है।
मीडिया कर्मी धमकाते भी ज्यादा है " आपको कहेंगे देख लेंगे " मीडिया का अस्तर आज इस हद तक गिर चूका है की इनके लाख लेखनी के बावजूद कोई परिवर्तन नहीं होता। आज के दौर में इनका मिजाज़ यही है "जिधर देखे खीर उधर गए फिर" .

Wednesday, June 2, 2010

"कुत्ता भूके हज़ार हांथी चले बाज़ार"

दीदी ने यह साबित कर दिखाया की "कुत्ता भूके हज़ार हांथी चले बाज़ार "। बंगाल की जनता ने दीदी को भाड़ी मतों से जीत दिलाकर यह साबित कर दिया की मीडिया सिर्फ भुकता है, तमाम तरह के हथकंडो को उपयोग कर दीदी के तेवर को कम करना चाहा पर दीदी के तेवर ने बंगाल में एक नई क्रांति ला खड़ा कर दी है। अब मीडिया के रूख भी दीदी के ओर झुकते नज़र आ रही।
अब मीडिया यह कह रही की दीदी के पास बंगाल की जनता के लिए ऐसी कौन सी रूप-रेखा तैयार है जिससे बंगाल की तस्बीर बदली जा सकती? दीदी सायद अपने तावर-तोड़ तेवर से फिर एक बार मीडिया को जवाब दे !
वर्तमान समय में मीडिया और नेताओ का एक बड़ा हुजूम है जिनका अब सिर्फ यही काम रह गया है की अलूल-जलूल, बेतुका बात, अपनी जुबान को चमकाना साथ में चैनल का टी आर पी बढ़ाना रह गया है। कई ऐसे नेता है जो आपको कंही न कंही छपते या चैनल पर नित्य दिन दीखते रहेंगे । दरअसल ये नेता नहीं पार्टी के प्रवक्ता है जो नेता बनते है। ये जनता के बीच नहीं जाते ये तो दरअसल में पार्टी के गुलाम है इन्हें वही कहना है जो पार्टी कहती है। लेकिन मीडिया वाले इन्हें ही नेता बनाना चाहती क्योंकि मीडिया वाले को सही नेता तावर-तोड़ जवाब देती और नेता इनसे जल्दी मिलते भी नहीं।
आपको याद होगा जब लालू बिहार का कमान संभाल रहे थे तो मीडिया ने उनका जोरदार स्वागत कर नित्य दिन फोटो और खबरों का भरमार कर दिया था । जब मीडियाकर्मी से मैंने पुछा की भाई बताओ तुम रोज लालू की तस्वीर और खबरे क्यों छापते हो तो उनका जवाव होता की जनता पसंद करती है। वही लालू जी जब दिल्ली का रूख किये तो मीडिया कर्मी को अपने दरवाजे के बाहर घंटो खड़ा करवाए रहते थे । मीडिया कर्मी को दुत्कारते थे तब जाकर मीडिया ने बंद किया रोज का छापना। कई पार्टी प्रवक्ता तो दिन-रात मीडिया को फ़ोन करते नज़र आयेंगे तो कभी उन्हें चाय - नास्ते पर बुलाएँगे । इन नेताओ का रोजमर्रा यही है और मीडिया कर्मी का भी।
कलक्टर साहब का दफ्तर हो या नेताओ का दफ्तर हर जगह मीडिया कर्मी आपको जरूर दिखेंगे। मीडिया कर्मी जब अपने दफ्तर जायेंगे तो फ़ोन से ही बात कर खबरों को तैयार करेंगे। खोज करना तो सायद ये लोग भूल गए।
बंगाल की जनता ने यह साबित कर दिखाया की जनता के बीच जो रहे वही मेरा नेता है चाहे मीडिया भूके हज़ार हम तो जायेंगे ही बाज़ार । रेल चाहे दिल्ली से चले या बंगाल से रेल तो चलेगी ही यह साबित कर दिखाया ममता बनर्जी ने।

Thursday, May 27, 2010

नितीश जी का ब्लॉग

बिहार के मुख्या मंत्री जी का ब्लॉग ! वाह-वाही से भरा पड़ा है। अगर आप इनके ब्लॉग पर कोई आरोप-प्रत्यारोप करते है तो नहीं प्रकाशित होगी। प्रकाशित वाही होगी जिसमे थोड़ी - बहुत मुख्यमंत्री जी का वाह-वाही हो। इसमे कोई सक नहीं की लालू से अच्छे मुख्या मंत्री नितीश है पर ये भी घमंड से चूर है। ये दूसरों की बात कम सुनते हाँ इनसे जो ताकतवर है उनकी बात जरूर समझते-बुझते है जैसे भेट्रण क्रिमल नटवर सिंह। नटवर सिंह को आज तक ये जेल का हवालात नहीं पहुंचा सके। बिहार की महिला चिल्लाते रह गई पर मुख्या मंत्री जी उस महिला की बात को आज तक नहीं सुन पाए। चलिए इसे अपवाद में रखते है। इसमे शक नहीं की ५ वर्षों में सिर्फ कुछ हद तक क्राइम बंद हुआ। लेकिन विकाश की बात आज भी बेईमानी है। राज्य सरकार द्वारा कौन सा ऐसा कार्य किया गया जिसे विकाश बिहार का हो गया।
सड़कों का निर्माण केंद्र सरकार का पैसा है। बिजली-पानी की हालात आज भी जस की तस बनी हुई है। बेरोजगारी आज भी चरम सीमा पर है। लड़कियों को स्कूल जाने के लिए साइकिल सिर्फ दे देने से विकाश नहीं हो जाता। नितीश जी आप अच्छे मुख्या मंत्री है पर विकाश के नाम पर आप ढिंढोरा पिट रहे है। ५ वर्ष विकाश के लिए काफी होता है। ५०% महिला को आरक्षण दे देने से विकाश नहीं होता। विकाश की परिभाषा तो बिहार की जनता ही बतलाएगी।
वैसे आप अभी तक खुशनसीब है की इस बार भी बिहार की जनता आपको ही मतदान करेगी चुकी जनता के पास विकल्प नहीं। लेकिन यह भी कहना मुश्किल लग रहा की बिहार की जनता आपको ही मतदान करे?????
मेरा अपना व्यक्तिगत राये है की युवाओं को ज्यादा से ज्यादा चुनाव लड़ाए । घिसे-पिटे नेता को दूर रखे। सायद कंही जनता दुबारा मुख्या मंत्री आपको बना डाले । विकाश के नाम पर तो हैदराबाद के मुख्या मंत्री चन्द्र बाबु नायडू चुनाव हार गए। कंही आप उन्ही का तो अनुशरण नहीं कर रहे????????????????

Sunday, May 16, 2010

ममता बनर्जी ने ठीक ही कहा यात्री जिम्मेवार.....

मैं बार-बार कह रहा हूँ की भारत देश की आबादी इतनी अधिक है की इसे संभालना किसी भी सरकार या गैर सरकार संगठन के लिए मुश्किल है। आबादी बढ़ गई पर भारत का आन्तरिक सुभिधाये नहीं बढ़ पाई रेल कर्मचारी क्या करे उसे जीतनी सुभिधाये दी गई है उसे ही वह अपना कर्तब्य समझता है। यात्रियों की संख्या को देखते हुए ट्रेन की बोगिया २०-२२ कर दी गई पर रेल ट्रैक को नहीं बढाया गया ऐसे में यह कहना बड़ा कठिन हो जाता की कौन सी गाड़िया किस प्लेटफोर्म पर आगमन करेगी।
यात्री भी मजबूर है चुकी जनसँख्या के हिसाब से जीतनी गाड़िया होनी चाहिए वो तो है नहीं अगर थोड़ी है भी तो सीट बहुत कम ऐसे यात्री एक-दुसरे पर चढ़ जाना पसंद करता चाहे किसी की जान चली जाये पर वो धक्का-मुक्की कर जाना जरूर पसंद करता।
आये दिन ऐसी घटना होती रहती है की रेल कर्मचारी को निर्धारित या घोषित प्लेटफोर्म को एका-एक बदलना पड़ता है। ऐसे में यात्रियों को भी सजग रहने की आवश्यकता होती पर यात्री एक-दुसरे यात्री का ख्याल कंहाकरने वाले वो तो एक-दुसरे की जान लेने पर तुले होते की आगे हम जाये तो हम जाये...
आप सडको पर भी यही नज़ारा देख सकते है। गाँव की ओर बस जानेवाली को भी आप देख सकते की किस तरह से यात्री एक-दुसरे पर लड़ कर यात्रा करते । लोकल सवारी चाहे वह रेल , बस या ऑटो हो सब में यात्री लादे जाते है। आखिर यात्रियों के पास क्या बिकल्प है? सरकार क्या करेगी? सरकार तो नहीं कहती की आप लादे जाओ फिर भी आप एक-दुसरे पर चढ़ के जाते हो आखिर क्यों?
जनता भी कम दोषी नहीं ? भले ही जाँच के लिए ममता जी ने कह डाला पर जनता को खुद इसकी जांच करनी चाहिए की दोषी सरकार या हम ?????????????????????????

Friday, May 14, 2010

अगर भारत में हिटलर होता .........

भा जा पाके राष्ट्रीय अध्यक्ष ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जिससे किसी को आहत पहुंचे। अगर किसी को आहत पहुंचा हो भी तो वह सही मायेने में भारत का कुत्ता (डॉग) ही होगा। अफ़सोस है की भारत की जनता ७०% गाँव में रहती है, उनके पास गुमराही समाचार के अलावा कोई ऐसा माध्यम नहीं जिससे वे लोग क्रांति ला सके। प्रिंट मीडिया या इलेक्ट्रोनिक मीडिया ये सब शहरो में ही विकसित है। बिहार के कई ऐसे नेता है जो कुत्ते के सामान है वो थाली चाटना जानते है और साथ में बिहार की जनता को थाली चटवाना भी जानगए है। अगर सही में आज हिटलर होते तो सायद बिहार के इन नेताओं को जिन्दा गोली बिच बाज़ार में मार दिया होता।
बिहार के कई ऐसे नेता है जो रहमो-करम पर जिन्दा है। अगर इन नेताओ पर सी बी आई शिकंजा कसे तो ये कंही के न रहे। इनके पास कंही न-कंही से पॉवर यानी जनता को गुमराह कर सत्ता पक्ष में आ जाते और जनता के साथ खून का होली खेलते। मीडिया को विज्ञापन का लालच देकर उनसे अपने पक्ष में लिखवाते है। यही तो इन नेताओ का चरित्र हो गया है।
गडकरी जी ने सही कहा कई ऐसे नेता देश के अंदर है जो कुत्ते के सामान है । अरे जो नेता कुत्ता रहेगा उसे तो लोग कुत्ता ही कहेगा न।
कुत्ते लोग सावधान हो जाओ नहीं तो एक न - एक दिन हिटलर आएगा ही और तुम सभी कुत्तों को जिन्दा सड़क पर जनता को खाने के लिए छोड़ देगा । जनता जब इन कुत्तों से तंग आ जाएगी तो इन कुत्तों को तो खाने का काम ही करेगी न। गडकरी जी आप चिंता न करे देश की जनता आपके साथ है। घर की मुर्गी दाल बराबर बिहार के नेता ऐसे ही है जो सत्तू और चिउरा -मिट्ठा का लालच देकर भीड़ खड़ा कर लेते चुकी इनके पास चारा जैसे कई घोटाले का पैसा जो है। आप मत घबराओ गडकरी । आप मंत्री नहीं बने इसलिए राष्ट्रीय नेता के रूप में इन कुत्तों ने अभी तक नहीं पहचाना है आपको । इन नेताओ ने मंत्री पद से देश की जनता का रुपया लूट लिया है तो ये राष्ट्रीय नेता की भाषा बोलने लग गए। गडकरी आप राष्ट्रीय नेता हो कोई जन्म से नहीं पैदा लेता राष्ट्रीय नेता इन कुत्तों को आप बता दो......

Thursday, May 6, 2010

संसद में अनंत जैसा नेता

लालू और अनंत कुमार का वाक्य युध्ध संसद में देखने और सुनने लायक तो नहीं था किन्तु भारत देश के ५४५ लोग जो भारत की तकदीर लिखते है वो इस तांडव में कुछ हंसते तो कुछ लड़ते दिखे। यह बात भी बिलकुल सही में कहा गया की लालू न तो देश के बारे में सोंचते और न ही बिहार के तर्रक्की । लालू को अगर "देशद्रोह" कहा गया तो इसमे क्या जुल्म हुआ।

लालू के राज्य-पाट में जितना अनियमितता और घोटाले का पर्दाफास हुआ क्या सिध्ध नहीं करता की देशद्रोह वाकई में वो है। लालू जातीय आधार की बात करते है तो वो बताये की कितने यदुबंसी को उंच्या शिक्षा दिलवाया कितने को विधायक और संसद का मार्ग दिखलाया अगर वो दिखलाये भी तो अपने सगे-सम्बन्धी को ही। आम यदुबंशी तो आज भी गाँव में दूध बांटने का काम ही कर रहे है । देश की जनता ने उन्हें संसद में भेजकर बहुत बड़ा गुनाह किया । देश की जनता को उनसे हिसाब-किताब पहले लेना चाहिए और साथ में यह भी पूछना चाहिए की उन्होंने भारत देश के लिए अब तक क्या किया?

संसद में वाकई अनंत कुमार जैसे कद्दावर नेता की आवश्यकता है जो लालू जैसे नेता को खुलेआम "देशद्रोह" कहने का जिगर रखता हो। अनंत कुमार जी आपको कोटिशः बधाई ।

Friday, March 19, 2010

१९७७ के कुत्ते

रामायण युग में भ्रष्ट, अत्याचार और राक्षसों के बिनाश के लिए राम की बानर सेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । हलाकि लोग कहते है आज भी उनके वंशज है पर उदंड, लालची और कोहराम से भरा। वर्तमान युग में १९७७ के कुत्ते का कोहराम पुरे देश के लोग झेल रहे हर कोई के जुबान पर है की नेता, पुलिस, प्रशासन और शासन सब के सब भ्रष्ट हो चुके पर आगे बढ़ने को कोई तैयार नहीं।
जी हाँ आज भारत के अधिकांश राज्यों में १९७७ के ही कुत्तों का राज्य-पाठ है। बिहार को ही देखे सब-के-सब १९७७ के जन्मे है और ये गर्व से कहते भी है की हम १९७७ के उपजे है। गुजरात में भी देखे तो १९७७ के ही। ये सभी कुत्ते कंही न कंही अपनी छाप इन्सान पर छोड़ अपना राजपाट कर रहे। सिर्फ यंही नहीं १९७७ के वंशज भी अब इंसानों पर राजपाट कर रहे। जरूरत है २१ वी सदी के कुत्तों की जो एलास्तिसिटी थेओरी पर आधारित है । इन्हें आप उतना ही खिंच या तान सकते जितना आपको जरूरत है ज्यादा इन्हें खीचने से ये ब्रेक कर जायेंगे। ये अत्याधुनिक है, तकनिकी यन्त्र से लैस जो एक सुरक्षित, कुशल यवम जनता के उम्मीदों से भरा पड़ा होगा।
आइये हम सब १९७७ के कुत्तों से बचे और अपने वोट से इन्हें शिकस्त करे । दलगत राजनीत से उभरे जो अच्छे इन्सान हो उन्हें दलगत भावनाओ से हटकर मतदान करे। आम तौर पर हमने देखा है की जब जनता को इन १९७७ के कुत्तों को उखाड़ फेकना होता है तो जनता फिर उन्ही दलगत भावनाओ में आकर उन्हें वोट करती । जरूरत है पार्टी या दलगत से ऊपर उठने की। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो तो ये मठाधीश बने रह जायेंगे और २१ वी सदी के लोग ................................

Sunday, March 14, 2010

क्या ३३% महिला विधेयक से सभी वर्ग के महिला को लाभ होगा?

देश पर भारी कुछ खास वर्ग ही है ऐसे में यह तो तय करना ही चाहिए की ३३% आरक्षण में सिर्फ उन्ही वर्ग के महिला संसद में न पहुंचे जो पहले से मजबूत है। सभी पार्टी या दल के चुनाव समिती के सदस्य गन उच्य वर्ग से प्रायः आते है और जब सिम्बोल देने की बात आती है तो वंहा समीक्षा यह होती है की - फलाने की हैसियत नहीं, तो वह दलित है, तो वह अल्पसंख्यक है , तो वो हमारे लोबी के नहीं आदि ऐसे प्रश्न के आधार पर उन्हें सिम्बोल से बंचित कर दिया जाता। मीडिया में भी आप देखे तो एक खास वर्ग के लोग ही शीर्ष पर बैठे है। ऐसे में क्या सही में गाँव , क़स्बा, बस्ती या टोला की महिलाओं को आरक्षण का लाभ मिल पायेगा?
कांग्रेस और भा ज पाअगर सही में चाहती है की ३३% महिला को आरक्षण मिले तो आवाम की आवाज को सुनना चाहिए और ३३% में यह बारा-न्यारा करना होगा की सभी वर्ग यानि सभी जात से महिला प्रतिनिधि करेंगी यह नहीं की सिर्फ ब्रह्मण, भूमिहार, राजपूत के महिला को ही आरक्षण का लाभ मिले। अगर ऐसा आरक्षण का मतलब सिर्फ खास वर्ग के लिए हो तो यह निरर्थक होगा, बेमानी होगी महिलाओं के साथ। कई राज्यों में ५०% महिला आरक्षण से गाँव, कसबे, टोला आदि की महिलाये आगे बढ़ी है।
पंचायती चुनाव में जब महिलाये जीत कर आई थी तो सभी को लगता था की ये क्या हो रहा है पर जब वो अपने कार्य-कुशल की क्षमता को भारतीय पटल पर रखी तो दुनिया अचंभित सी दिखी।
टिकरी मुलायम , शरद यवम लालू की बात को सुनकर ३३% में ही सभी वर्ग के लिए आरक्षित कर देना चाहिए। मेरे समझ से जो अब तक अर्चने है वह यही है की ३३% महिला विधेयक का मतलब यह नहीं की सिर्फ उच्य वर्ग इसका लाभ ले।

Friday, March 12, 2010

आनंद से भरा महिला विधेयक

पुरे देश पर भारी टिकरी (मुलायम, लालू यवम शरद )। आखिर ऐसी कौन सी मज़बूरी हो गई जिससे रूलिंग पार्टी या संसद को महिला विधेयक पास करने में इतना बिलम्ब हो रहा ? ३३% तो सभी वर्ग के लिए है इस बात को बुध्धिजीवी वर्ग इन तिकरियों को समझाने में असमर्थ क्यों है?

भा ज पा में भी अंतर्कलह , राजद भी राग अलाप रही उधर सपा भी चिल्ला रही वन्ही ज द यु में भी दो फार है नितीश कह रहे हम महिला आरक्षण के समर्थन में है तो शरद कह रहे है की हम संसद में प्राण दे देंगे । यह तो नाटकीय जाल है भाई। जनता को तो ये लोग पुर्णतः बेबकूफ ही समझ लिया है। ये लोग जान गए है की हम जो चाहेंगे वही जनता को करना होगा चाहे वो हंसकर करे या रोकर। मीडिया भी इसमें पुरजोर मज़ा ले रही।

Sunday, February 28, 2010

राहुल की शहनाई में संघ यवम भाजपा

एक ओर संघ ने हिन्दुत्व को साइड कर "राष्ट्रवाद और संस्कृतिवाद " का नारा बुलंद किया तो एक टीवी चैनल ने राहुल महाजन के सगाई के लिए १६ लड़कियों को खुलेआम डेटिंग, डांसिंग और न जाने कितने रशमो-रिवाजो को भारतीय सभ्यता के खिलाफ दिखाया। १५ लड़कियों के लिए तो खतरा हो गया की उनसे शादी कौन भारतीय करेंगे जिन्होंने चैनल पर वो सब कुछ देखा जो एक पत्नी के रूप में सार्वजानिक नहीं देख सकते ?
राहुल तो भाजपा के सदस्य भी रहे है और भारतीय राजनीत में कदम भी रख चुके थे । और राहुल उन १६ लड़कियों में किसी एक से शादी करेंगे तो बाकि १५ लड़कियों से कौन शादी करेगा यह तो संघ ही बता पायेगा की वो कैसे संस्कृतिवाद का रक्षा करेंगे।