Sunday, March 14, 2010

क्या ३३% महिला विधेयक से सभी वर्ग के महिला को लाभ होगा?

देश पर भारी कुछ खास वर्ग ही है ऐसे में यह तो तय करना ही चाहिए की ३३% आरक्षण में सिर्फ उन्ही वर्ग के महिला संसद में न पहुंचे जो पहले से मजबूत है। सभी पार्टी या दल के चुनाव समिती के सदस्य गन उच्य वर्ग से प्रायः आते है और जब सिम्बोल देने की बात आती है तो वंहा समीक्षा यह होती है की - फलाने की हैसियत नहीं, तो वह दलित है, तो वह अल्पसंख्यक है , तो वो हमारे लोबी के नहीं आदि ऐसे प्रश्न के आधार पर उन्हें सिम्बोल से बंचित कर दिया जाता। मीडिया में भी आप देखे तो एक खास वर्ग के लोग ही शीर्ष पर बैठे है। ऐसे में क्या सही में गाँव , क़स्बा, बस्ती या टोला की महिलाओं को आरक्षण का लाभ मिल पायेगा?
कांग्रेस और भा ज पाअगर सही में चाहती है की ३३% महिला को आरक्षण मिले तो आवाम की आवाज को सुनना चाहिए और ३३% में यह बारा-न्यारा करना होगा की सभी वर्ग यानि सभी जात से महिला प्रतिनिधि करेंगी यह नहीं की सिर्फ ब्रह्मण, भूमिहार, राजपूत के महिला को ही आरक्षण का लाभ मिले। अगर ऐसा आरक्षण का मतलब सिर्फ खास वर्ग के लिए हो तो यह निरर्थक होगा, बेमानी होगी महिलाओं के साथ। कई राज्यों में ५०% महिला आरक्षण से गाँव, कसबे, टोला आदि की महिलाये आगे बढ़ी है।
पंचायती चुनाव में जब महिलाये जीत कर आई थी तो सभी को लगता था की ये क्या हो रहा है पर जब वो अपने कार्य-कुशल की क्षमता को भारतीय पटल पर रखी तो दुनिया अचंभित सी दिखी।
टिकरी मुलायम , शरद यवम लालू की बात को सुनकर ३३% में ही सभी वर्ग के लिए आरक्षित कर देना चाहिए। मेरे समझ से जो अब तक अर्चने है वह यही है की ३३% महिला विधेयक का मतलब यह नहीं की सिर्फ उच्य वर्ग इसका लाभ ले।

2 comments:

Anonymous said...

भारत एक पुरुष प्रधान देश है तो एक दम सभी वर्ग की महिलाएं तो बाहर आ नही जायेगी कुछ बाहर आयेगी तो सभी प्रभावित होकर हिम्मत जुटायेगी

hem pandey said...

जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था जाति व्यवस्था को मजबूत ही कर रही है. कम से कम महिला आरक्षण में जाति व्यवस्था को .दूर रख कर एक अच्छा काम हुआ है.हाँ जाति के नाम पर राजनीति करने वालों को जरूर हानि है. इस लिए लालू,मुलायम और शरद यादव का विरोध स्वाभाविक है.