Monday, February 23, 2009

२१ वीं शदी का सही अर्थ कम समय में ज्यादा उपलब्धि

सभी ब्लॉग प्रेमियों से मेरा व्यक्तिगत आग्रह है की २१ वीं सदी का अर्थ समझे या समझाएं। भाई मैं ब्लॉग के बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ हूँ। मुझे नही मालूम की इस ब्लॉग पर एक नोवेल लिखू या एक उपन्यास या कविता काब्य संग्रह। मुझे जो समझ में अब तक आया है वह यह की इस ब्लॉग के माध्यम से अपनी बात को कम-से-कम शब्दों में कही जा सकती जो अन्य प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मान्य नही हो। क्योंकि प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व्यापर है उसे जंहाँ धंधा समझ में आता है वन्ही वह ख़बर को तरजीह देता है।
दूसरी ओर हम यह भी समझते है की आज के परिवेश में लोगों के पास समय बहुत कम होता है। उन्हें इतना फुर्सत नही होता की आपके इतिहास, भूगोल को पढ़ें। इसलिए ब्लॉग पर कही जाने वाली बात मेरी समझ से कम-से-कम शब्दों में हो तो लोग रूचि लेकर पढेंगे भी और उन्हें सही में प्रतिक्रियाएं भी मिलेंगी।
एक बार पुनः क्षमा प्राथी के साथ .......................................

Thursday, February 12, 2009

दफ्तरों के काम-काज में देरी क्यों?

अंग्रेज भारत छोड़ गए परन्तु वो अपना मूल मंत्र भारतवासियों को दे गए। unake "फुट डालो राज करो" kee nitee के bawjood भारत में आज भी कई इमानदार प्रशासक है ,जो चाहते है की दफ्तरों में pardarshita से काम हो। taki आम जनता त्रस्त न हो सके। लेकिन दफ्तरों के बाबु लोग एक ही दिन में चाहते है की खरबपति बन जाए। बाबु लोग देखते है की नेतागण झूठ-सांच कर अमीर बन रहे है तो हम क्यों पीछे रहे। किंतु इन्हे ये पता नही की इनके आलाकमान एक ईमानदार ऑफिसर है।
मैंने अपने कार्यों के दौरान देखा है की आर्डर कर दिया गया है अब काम तो दफ्तरों के बाबु को ही करना है लेकिन बाबु को तो आदत है की बगैर पैसा लिए फाइल आगे बधायेंगें नही इसलिए ऐसा नुस्खा निकालों की साहब भी भौचक हो जाए और मेरा भी काम निकल आए। साहब की डांट भी बाबु को लगती है किंतु बाबु तो थेथेर हैं वो अब साहब को ही धमका देते है की साहब thik से और समझ भुझ कर काम कीजिए वरना इल्जाम ग़लत होगा। इसके वाबजूद अधिकारी चाहते है की काम करो, पर बाबु काम होने नही देते। अब आप ही बताये की अधिकारी कैसे काम करे। एक इमानदार अधिकारी को धमकाया जाता है इसके वाबजूद अपनी जान की परवाह किए वगैर वो एक कुशल प्रशासक के रूप में काम करना चाहता है फिर भी उसे सफलता नही मिल पाती यह देश के लिए दुर्भाग्य है।
मेरी अपनी सोंच है की आम अवाम को जागरूक होना होगा तभी देश विकाश की ओर आगे बढेगा। जागो-जागो-जागो ....................कब जागोगे जब सब कुछ तुम्हारा लुट जाएगा तब?

Tuesday, February 10, 2009

मीटिंग, सीटिंग, इटिंग = दिल्ली

बहादुर साह ज़फर के बाद भारत की तस्वीर ऐसी बनी की कुछ लोग शासन- प्रशासन में व्यस्त रहे तो कुछ लोग आज़ादी का आनंद लेने में मशगुल । चारो ओर मीटिंग, सीटिंग और इटिंग होने लगा। यही परम्परा देश के कोने-कोने में होने लगी। इन तीन शब्दों में एक शब्द अधुरा था वह है "मूविंग" । अगर मूविंग होती तो सायद देश की इस्थिति कुछ और होती तब सायद न तो इतनी भ्रष्टाचार होती और न ही इतने नेतागण। उदाहरण स्वरुप देखें तो चुनाओ के समय ही भारत के प्रधान मंत्री क्षेत्र वार प्रचार-प्रसार के लिए भ्रमण करते है बाकि ५ वर्षों तक मीटिंग, सीटिंग, इटिंग होती है जिसे हम सभी दिल्ली कहते हैं।