Wednesday, August 25, 2010

दिल्ली मेट्रों दिल्ली की शान

"दिल्ली की मेट्रों दिल्ली की शान" है इसमे जरा सा भी संकोच करने की गुंजाईश नहीं । भीड़ यंहा भी है पर राहत भी उतनी ही है, व्यस्तता भी उतना ही है जितना आराम, कहने को खड़े होकर सफ़र करते हम पर इमानदारी भी उतनी ही है, महिला हो, बुढ़ें हो या अपंग सबके-सब देते शिष्टाचार के आयाम। जी हाँ ! यंहा डीटीसी नहीं यंहा मेट्रों का सफ़र है जिसमे सबको आराम ही आराम ।
दिल्ली मेट्रों का नियुन्तम किराया ८ रूपया है। डी टी सी के वनिस्पत मात्र ३ रूपया अत्यधिक। मगर सुबिधा आप देखे तो तीब्र गति से आप अपने गंतब्य स्थान पर पहुचते है, वातानुकूलित वातावरण में यात्रा करते है, साफ़-सफाई से आप योग्य होते है, आपकी शिकायत को सुननेवाले होते है। अब आम जनता को क्या चाहिए जल्द-से-जल्द और सुरक्षित पहुँचनेका सीधा मार्ग है दिल्ली मेट्रों।
काश ये सुबिधा भारत के गाँव-गाँव में होती...................................................

Monday, August 23, 2010

दिल्ली की डी टी सी बस और सुबिधाये नदारत

जी हाँ ! आज मैं आर के पुरम से मयूर विहार के लिए डी टी सी के ६११ नंबर का बस जो लो फ्लोर की बस थी उसमे चढ़ा । गर्मी इतनी अत्यधिक थी की लोग गर्मी से परेशान थे। इनमे आधी सीट तो महिलाओं के लिए होती है तो आधी से कम सीट पुरूषों के लिए होती है। दो सीट बुजुर्गो के लिए होती है उस पर भी कोई-न-कोई महिलाएं ही नज़र आएँगी या फिर युवा वर्ग। भीड़ इतनी अत्यधिक थी की लोगों को सीट मिलना दुर्लभ ही था। मैं भी उसी क़तर में खड़ा था। हर पड़ाव पर भीड़ बढाती ही जा रही थी और बस के कनडक्टरसाहब टिकेट काटते जा रहे थे।
मैंने बस में चर्चा छोड़ दी - जिंदगी नरक है क्या यही जिंदगी है की लोग बस धक्का-मुक्की खाते चले फिरें ? क्या यह जनसँख्या का परिणाम है या फिर राजनेताओं की अनदेखी? इतन कहना ही मेरा था लोग आपस में बर्बराने लगे आप ठीक कहते है। इन नेताओं ने हमारी मजबूरी को समझ लिया है। फिर कुछ देर ख़ामोशी रही। मैंने फिर कहा हम जनता ही सुल्फेट हैं । फिर आवाज आई आप ठीक कहते है। ये नेता गण हमारी कमजोरी को समझ गए है। तो मैंने कहा क्या आपने इन नेताओं की कमजोरी अब तक नहीं समझा क्या? बस मेरा इतना कहना था की लोग चिल्लाने लगे गेट खोलो गेट बंद नहीं होगा हवा आने दो आदि - आदि बाते कहने लगे। नतीजे के तौड़ पर हमने देखा बस का गेट खुल गया और बंद नहीं हुआ ।
मैंने यह महसूस किया की अगर लोगो को नेतृत्वा मिले तो लोग पानी में आग लगा दे। जनता को नेतृत्वा चाहिए जो नेता गण ही इन्हें दे सकते। ये नेतृत्वा के बगैर लाचार है, अधर है, दिशा हिन् है, और कमजोड है। इन्हें नेतृत्वा मिले तो ये वो सब कर सकते जो आज के नेता नहीं कर सकते। जनता भी नेता की कजोरो को समझती, परखती है पर लाचार है चुकी इनके पास नेतृत्वा की कमी है।
डी टी सी की बस में कम से कम ५ रूपया फिर १० रूपया और अंतिम पड़ाव पर जाने के लिए यानि जिस रूट की बस है वंहा तक का किराया १५ रूपया है। और सुबिधा के नाम पर कुछ भी नहीं। क्या यही सरकार है? क्या यही आज़ादी है?

Friday, August 6, 2010

प्रधान मंत्री के नाम खुला पत्र

प्रधान मंत्री जी, आज युग बदला, समय बदला, शताब्दी बदली किन्तु लोग नहीं बदले। लोग (जनता) आज भी १९४७ के पीछे वाली है। मैं बारीकी से देख रहा हूँ की किस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के लोगों को फोड़ा था आज की जनता और नेता भी उसी रस्ते पर है। अगर यही हालात रही तो भारत की तस्वीर आनेवाले समय में कुछ और होगी जिसकी परिकल्पना आज के नेतागण नहीं कर रहे । संसद में मीडिया के सामने (प्रसारित) लम्बी-चौड़ी भाषण दे डालते लेकिन क्षेत्र में ठीक उसके विपरीत काम करते।
मैं गंभीरता से यशवंत जी (पूर्व वित्त मंत्री) का संसद में भाषण सुन रहा था। कुछ बातें अच्छी थी तो कुछ आपत्ति जनक था "उन्होंने कहा की आज मैं एक कुआँ भी नहीं खोद सकता चुकी मेरे पास फंड नहीं और आज का नौजवान किसी बड़े पद पर हो तो मैं उसके सामने क्या हाँथ जोडूंगा" । वो भूल गए की जनता के द्वारा ही आज जो कुछ है भले ही कभी आई ऐ एस रहे हो आज वो जनता के द्वारा ही सब कुछ है। जब वे एक नौजवान के सामने हाँथ नहीं जोड़ सकते तो आम आदमी जो बुजुर्ग हो वो कैसे इन आई ऐ एस को हाँथ जोड़ेगा? यह तो राजतन्त्र वाली बात हुई। न की लोक तंत्र और प्रजातंत्र ।
बी जे पी नेता अब बौखला गए क्योंकि उन्हें मांश खाने का मौका नहीं मिल रहा (कहाबत है जब गिदर और शेर को मांश खाने की लत पर जाती तो उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
राष्ट्र मंडल खेल को लेकर जो तैयारियां की गई और उसमे जो अनिमियेता हुई उसमे कांग्रेस की छवि खराब होती नज़र आ रही । चुकी कलमाड़ी कांग्रेस से ही मनोनीत है और कलमाड़ी के नेतृत्वा में ही घोटाले हुए ऐसे में कलमाड़ी का इस्तीफा तुरंत और शीघ्र लेना चाहिए । अगर अभी नहीं ली गई तो कल बी जे पी वाले कांग्रेस पर हल्ला-बोल राजनीत करेंगे।
मुझे मालूम है और पुरे देश को मालूम है की एम् सी डी में बी जे पी ही सक्रिय है उन्ही का मेयर है तो घपले-बाज़ी में उनका भी हाँथ है। अगर आप दोनों पार्टी मिलकर भारत को बर्बाद करना चाहते भारत को लूटना चाहते तब तो कोई बात नहीं । अगर आप और आपकी पार्टी भारत के सामने स्वक्ष रहना चाहती तो अविलम्ब कलमाड़ी का इस्तीफा लेना चाहिए जिस तरह आपने विदेश राज्य मंत्री का इस्तीफा ले लिया था।
मैं पुनः कहूँगा की कलमाड़ी का इस्तीफा जल्द से जल्द लेना चाहिए इनके इस्तीफा देने के वावजूद राष्ट्र मंडल खेल भारत में सम्पन्न होगी और अच्छे से होगी।
अन्तः मैं यही कहूँगा की अभी नहीं तो कभी नहीं और ऐसे में कांग्रेस को बहुत बड़ा नुक्सान उठाना पर सकता है।

Thursday, August 5, 2010

आखिर तेंदुलकर क्यों चुप?

भारत के जाने-माने बल्लेबाज़ सचिन तेंदुलकर आखिर चुप क्यों ? क्या वे भारत के नागरिक नहीं जिनके देश में आई पी एल और राष्ट्र मंडल जैसे खेल के आयोजन पर रुपयों का बंदरबांट हो रहा ? खेल से तो वे जुड़े है उन्हें शीघ्र अपनी टिप्पणी देनी चाहिए ।
भारत के करोड़ों जनता उनके बल्लेबाजी को लेकर दुआएं मागती है, संसद में उन्हें "भारत रत्न" देने की मांग की जाती है तो क्या तेंदुलकर का दायीत्वा नहीं बनता की वे इतने बड़े घोटाले पर अपनी टिप्पणी दें। भारत के नागरिक होने के नाते उन्हें भी अपनी टिप्पणी देनी चाहिए वरना वो "भारत रत्न " के सही हक़दार नहीं।
१९८० के दशक में सुनील गावस्कर भी काफी नामी-गिरामी बल्लेबाज़ थे उस समय उनकी भी बल्लेबाजी में पूरी दुनिया लोहा मानती थी तो क्या उन्हें "भारत रत्न " नहीं मिलाना चाहिए? मेरे समझ से तो उन्हें भी "भारत रत्न" तेंदुलकर से पहले मिलना चाहिए।
हर भारतीये का यह कर्तब्य है की वो भारत में अनियमतता का घोर विरोध करे वरना वो सच्चा भारतीय नहीं। मिशालके तौर पर सिने अभिनेता शाहरूख खान एक ऐसे जिंदादिल इन्सान है जिन्होंने बल थाकड़ेसे माफ़ी मांगने से इंकार कर दिया। अमिताभ बच्चन भी जब कभी भारत पर या भारत में अनियमतता का संकट गहराता है तो अपनी आवाज़ को देने से चुकते नहीं। "सेव टाइगर" के लिए प्रचार-प्रसार उनके भारतीये होने का गर्व प्रदान करता है।
लोग कहते है सेलेब्रिटी ही प्रचार-प्रसार के लिए सही माध्यम है ? मैं पूछता हूँ की भारत में ऐसे कई सेलेब्रिटी है जो घोटाले पर अपनी आवाज़ को ताला -चाभी दे देते । वाह रे सेलेब्रिटी ! वाह रे दुनिया ! ऐसे सेलेब्रिटी का क्या मतलब जब उनके ही खेल की दुनिया में इस तरीके का घपले बाज़ी हो और ये सेलेब्रिटी छु-खामोश हो तो इनका क्या कहना ! ये तो भारत रत्न के क्या किसी भी रत्न के लायक नहीं।

Tuesday, August 3, 2010

५४५ सांसद धोखेबाज़ तो १.२५ करोड़ जनता नौटंकीबाज़

जी हां ! यह सच है की भारत में घोटाले-पर-घोटाले होते रहते है और भारत की जनता इन्हें सिर्फ पढ़ती -सुनती- देखती रहती है, चुकी जनता के पास कोई उपाय नहीं । वोट विकल्प नहीं और जनता के पास कोई ऐसा सरकारी हथियार नहीं जिससे ये सांसदों को सबक सिखा सके। ऐसे में मीडिया कर्मी भी कम ड्रामेबाज नहीं। भारत का तीसरा अस्तंभ न्यायापालिका ये भी अंधे कानून से बंधा है की ये भी चाह कर कुछ कर नहीं सकती। और ऐसे में पूंजीपति का बल्ले-बल्ले होना लाज़मी है।
आज भारत में चारो ओर घोटाले की चर्चा हो रही कोई सीबीआई पर उंगली उठा रहा तो कोई व्यवस्था पर। ये उठाने वाले कोई भारत के आम जनता नहीं बल्कि मीडिया ही है भले ही ये भी पाक-साफ़ न हो किन्तु आवाज जरूर उठाते। अमित शाह और नरेन्द्र मोदी पर कई गंभीर आरोप है तो लालू पर ९५० करोड़ का चारा घोटाला न्यायालय में अब तक लंबित है वंही आज दिल्ली में आयोजित राष्ट्र मंडल खेल को लेकर तमाम घोटाले का पर्दाफाश हो रहा है। इन घोटालो और आरोपों का खेल वर्षों तक न्यायालय में चलता रहेगा तब तक भारत की आबादी १.२५ करोड़ से ३ सौ करोड़ पहुँच जाएगी और भारत की जनता यूँ ही तमाशबीन बनी रहेगी।
मैं पूछता हूँ की ये सब ५४५ सांसद संसद में क्या कर रहे सिर्फ जनता को ठग रहे या खुद का जेब भर रहे। महगाई पर संसद ४ दिनों तक नहीं चली फिर संसद चलने लग गई क्या महगाई कम हो गई। मैं तो यही कहूँगा की सब-के-सब सल्फेट है ये जनता को ठगते है और जनता लाचार है।चूकी इनके पास कोई हथियार नहीं जिससे ये सांसदों को कुचल सकें ।
सभी दल को को एक-एक सांसदों का आचरण पता है फिर भी ये तब तक खामोश रहते जब तक इनके काम चलते रहते जब ये समझ लेते की अब इनसे पार्टी का काम नहीं चलेगा तब ये सी बी आई का प्रयोग करते और उतना ही तक सिमित रहते जितना में इन दलों/ पार्टी का काम चल जाता।
पूंजीपति , किसान , मजदूर और व्यवसायी वर्ग को वोट के अलावे कानूनी दायित्व मिल जाये तो इन नेताओं को ४७ सेवेन से गोली दागने में देर नहीं लगेगी।