Friday, March 19, 2010

१९७७ के कुत्ते

रामायण युग में भ्रष्ट, अत्याचार और राक्षसों के बिनाश के लिए राम की बानर सेना ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । हलाकि लोग कहते है आज भी उनके वंशज है पर उदंड, लालची और कोहराम से भरा। वर्तमान युग में १९७७ के कुत्ते का कोहराम पुरे देश के लोग झेल रहे हर कोई के जुबान पर है की नेता, पुलिस, प्रशासन और शासन सब के सब भ्रष्ट हो चुके पर आगे बढ़ने को कोई तैयार नहीं।
जी हाँ आज भारत के अधिकांश राज्यों में १९७७ के ही कुत्तों का राज्य-पाठ है। बिहार को ही देखे सब-के-सब १९७७ के जन्मे है और ये गर्व से कहते भी है की हम १९७७ के उपजे है। गुजरात में भी देखे तो १९७७ के ही। ये सभी कुत्ते कंही न कंही अपनी छाप इन्सान पर छोड़ अपना राजपाट कर रहे। सिर्फ यंही नहीं १९७७ के वंशज भी अब इंसानों पर राजपाट कर रहे। जरूरत है २१ वी सदी के कुत्तों की जो एलास्तिसिटी थेओरी पर आधारित है । इन्हें आप उतना ही खिंच या तान सकते जितना आपको जरूरत है ज्यादा इन्हें खीचने से ये ब्रेक कर जायेंगे। ये अत्याधुनिक है, तकनिकी यन्त्र से लैस जो एक सुरक्षित, कुशल यवम जनता के उम्मीदों से भरा पड़ा होगा।
आइये हम सब १९७७ के कुत्तों से बचे और अपने वोट से इन्हें शिकस्त करे । दलगत राजनीत से उभरे जो अच्छे इन्सान हो उन्हें दलगत भावनाओ से हटकर मतदान करे। आम तौर पर हमने देखा है की जब जनता को इन १९७७ के कुत्तों को उखाड़ फेकना होता है तो जनता फिर उन्ही दलगत भावनाओ में आकर उन्हें वोट करती । जरूरत है पार्टी या दलगत से ऊपर उठने की। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो तो ये मठाधीश बने रह जायेंगे और २१ वी सदी के लोग ................................

Sunday, March 14, 2010

क्या ३३% महिला विधेयक से सभी वर्ग के महिला को लाभ होगा?

देश पर भारी कुछ खास वर्ग ही है ऐसे में यह तो तय करना ही चाहिए की ३३% आरक्षण में सिर्फ उन्ही वर्ग के महिला संसद में न पहुंचे जो पहले से मजबूत है। सभी पार्टी या दल के चुनाव समिती के सदस्य गन उच्य वर्ग से प्रायः आते है और जब सिम्बोल देने की बात आती है तो वंहा समीक्षा यह होती है की - फलाने की हैसियत नहीं, तो वह दलित है, तो वह अल्पसंख्यक है , तो वो हमारे लोबी के नहीं आदि ऐसे प्रश्न के आधार पर उन्हें सिम्बोल से बंचित कर दिया जाता। मीडिया में भी आप देखे तो एक खास वर्ग के लोग ही शीर्ष पर बैठे है। ऐसे में क्या सही में गाँव , क़स्बा, बस्ती या टोला की महिलाओं को आरक्षण का लाभ मिल पायेगा?
कांग्रेस और भा ज पाअगर सही में चाहती है की ३३% महिला को आरक्षण मिले तो आवाम की आवाज को सुनना चाहिए और ३३% में यह बारा-न्यारा करना होगा की सभी वर्ग यानि सभी जात से महिला प्रतिनिधि करेंगी यह नहीं की सिर्फ ब्रह्मण, भूमिहार, राजपूत के महिला को ही आरक्षण का लाभ मिले। अगर ऐसा आरक्षण का मतलब सिर्फ खास वर्ग के लिए हो तो यह निरर्थक होगा, बेमानी होगी महिलाओं के साथ। कई राज्यों में ५०% महिला आरक्षण से गाँव, कसबे, टोला आदि की महिलाये आगे बढ़ी है।
पंचायती चुनाव में जब महिलाये जीत कर आई थी तो सभी को लगता था की ये क्या हो रहा है पर जब वो अपने कार्य-कुशल की क्षमता को भारतीय पटल पर रखी तो दुनिया अचंभित सी दिखी।
टिकरी मुलायम , शरद यवम लालू की बात को सुनकर ३३% में ही सभी वर्ग के लिए आरक्षित कर देना चाहिए। मेरे समझ से जो अब तक अर्चने है वह यही है की ३३% महिला विधेयक का मतलब यह नहीं की सिर्फ उच्य वर्ग इसका लाभ ले।

Friday, March 12, 2010

आनंद से भरा महिला विधेयक

पुरे देश पर भारी टिकरी (मुलायम, लालू यवम शरद )। आखिर ऐसी कौन सी मज़बूरी हो गई जिससे रूलिंग पार्टी या संसद को महिला विधेयक पास करने में इतना बिलम्ब हो रहा ? ३३% तो सभी वर्ग के लिए है इस बात को बुध्धिजीवी वर्ग इन तिकरियों को समझाने में असमर्थ क्यों है?

भा ज पा में भी अंतर्कलह , राजद भी राग अलाप रही उधर सपा भी चिल्ला रही वन्ही ज द यु में भी दो फार है नितीश कह रहे हम महिला आरक्षण के समर्थन में है तो शरद कह रहे है की हम संसद में प्राण दे देंगे । यह तो नाटकीय जाल है भाई। जनता को तो ये लोग पुर्णतः बेबकूफ ही समझ लिया है। ये लोग जान गए है की हम जो चाहेंगे वही जनता को करना होगा चाहे वो हंसकर करे या रोकर। मीडिया भी इसमें पुरजोर मज़ा ले रही।