Saturday, February 22, 2014

भारत में एक और युद्ध

याद करें अंग्रेज लॉर्ड क्लाइव की बात "भारत में अराजकता का दृश्य ऐसा है जहाँ भ्रम, घुसखोरी, बेइमानी, भ्रष्टाचार और लूट-खसोट जारी है। प्रत्येक आदमी एक ही दिन में अरब-खरबपती बन जाना चाहता है। यह रोग सर्वव्यापी हो चला है। ऐसे में नागरिक, प्रशासन, पूलिस, फौज ही नहीं लेखकों, कलमनविसो और व्यापारियों तक को अपनी चपेट में ले चुका है।'' अगर क्लाइव की बातों में वजन है तो वो दिन दूर नहीं की भारत में एक और युद्ध हो। 

Monday, April 22, 2013

भारत में अब भी कौआ कान ले गया

भारत में अब भी कौआ कान ले गया भारतीय लोग गुलाम है और गुलाम रहेंगें भले ही वो आज विदेशियों का गुलाम नहीं पर भारतीय का गुलाम है. भारत में जब तक शिक्षा की सोंच नहीं बदलेगी की शिक्षा का मतलब सिर्फ क, ख, ग पढना नहीं होता बल्कि उसके सही अर्थ समझना होता। लोग प्रत्येक दिन लाखो की तादात में राजघाट पर "गाँधी" के समाधी को देखने जाते पर वे यह नहीं समझ पाते की ये समाधी पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च क्यों कर रही, इसके पीछे किसी भी सरकार की मनसा क्या है? मैं तो सिर्फ यही कहूँगा की लोग समझे फिर किसी निष्कर्ष पर आन्दोलन करें।

Tuesday, October 23, 2012

भारतीय मीडिया अपना स्वरुप बदले नहीं तो जनता जूता बरसायेगी

भारतीय मीडिया अपना स्वरुप बदले नहीं तो जनता जूता बरसायेगी आम तौर पर देखा गया है भारतीय मीडिया पुराने ढर्रे पर चल रही है। लोग बदले, लोगों की सोंच बदली, सरकार बदली, मौसम बदला, पर भारतीय मीडिया का विचार नहीं बदला? आखिर क्यों? ये प्रिंट मीडिया या इलेक्ट्रोनिक मीडिया का मिजाज क्या किसी पार्टी/दल के भ्रष्टाचार से कम है?

Wednesday, October 17, 2012

सवा सौ कड़ोड़ पर भारी पांच सौ पैंतालिस

सवा सौ कड़ोड़ पर भारी पांच सौ पैंतालिस श्वेत क्रांति के जनक रहे डॉ. वर्गीज कुरियन ने अपनी आत्मकथा ‘मेरा भी एक सपना था’ (I too had a dream) में लोकतंत्र के प्रति चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि ‘‘आखिर लोकतंत्र है क्या? यह निश्चित रूप से वह नहीं है जो हमारे देश में दुर्भाग्यवश समझा जाने लगा है: नौकरशाहों की, नौकरशाहों द्वारा और नौकरशाहों के लिए सरकार।’’ लोकतंत्र के इस ब्राण्ड में लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। जनलोकपाल बिल की मांग करने वाले अन्ना और अरविंद केजरीवाल हर मंच पर लोकतंत्र की लोकशाही की बात करते हैं जिसकी चिंता डॉ. कुरियन ने की थी। आजादी के समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नेहरू से कहा था कि राजनीति के क्षेत्र में हम एक दूसरे को साफगोई के साथ समझें। गांधी, कुरियन एवं लोक नायक जय प्रकाश नारायण से लेकर अन्ना, केजरीवाल हर किसी के केन्द्र में आम जनता को स्थापित करने की चिंता है। लेकिन वर्तमान में जो परिदृश्य चल रहा है वहां आम आदमी कहीं नहीं दिखता। ऐसा महसूस होता है कि देश की सवा करोड़ जनसंख्या पर पांच सौ पैंतालिस सांसद भारी पड़ रहें हैं। सांसदों को जब अपनी सुविधा, सुरक्षा और संरक्षण में बढ़ोत्तरी करने की बात आती है तो सारे सांसद एकजुट हो जाते हैं लेकिन जब लोकशाही, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने के लिए जनलोकपाल विधेयक पारित करने की बात हो तो कुछेक को छोड़ सारे साांसद विरोध में खड़े दिखते हैं। उन्हें देश में जरूरत मंद लोगों की गंभीर एवं संवेदनशील मुद्दे पर ये आंकड़े अपना रुख किसी सिद्धान्त तथ्यपूर्ण कारणों से तय करने की बजाय वोटों के गणित से अधिक प्रभावित करता है। वाजपेयी सरकार ने एटमी परीक्षण किया। कई देशों ने प्रतिबंध लगाए। तब कांग्रेस ने कहा देश को नुकसान हुआ। लेकिन यूपीए की सरकार बनी तो मनमोहन सिंह ने अमेरिका से एटमी करार के लिए सरकार को ही दांव पर लगा दिया। तब विपक्ष में बैठी भाजपा कह रही थी कि इससे देश को नुकसान होगा। जनलोकपाल 42 साल से संसद में अटका हुआ है। एक बार तो विधेयक पेश हो चुका है। कांग्रेस की सरकार प्रस्ताव लेकर आती तो विपक्ष विरोध करता। लेकिन जब राजग सरकार प्रस्ताव लेकर आई तो कांग्रेस ने विरोध किया। और जब अन्ना के आंदोलन का दबाव बना तो यूपीए और राजग दोनों विपक्ष बन गए। ये तमाम उदाहरण है कि एफडीआई, पेट्रोल-डीजल की कीमत, पेंशन बिल, आदि जैसे कई आवश्यक विधेयकों पर राजग के शासन में कांग्रेस विरोध दर्ज कराया और जब यूपीए की सरकार कई मुद्दों पर कड़े फैसले लेने शुरू किए तो तृणमूल के ममता बनर्जी ने समर्थन वापस ले लिया तो विपक्ष की भूमिका में राजग ने संसद न चलने देने का अभियान चलाया। यह वही देश है जब नेहरू ने अटल बिहारी बाजपेयी को देश का भावी नेता बताया था तो अटल जी ने इंदिरा गांधी को दुर्गास्वरूपा कहा था। वहीं इंदिरा जी ने जब अपने शासनकाल में विपक्ष के नेता अटल बिहारी बाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में देश का प्रतिनिधित्व करने भेजा था। यह था उस दौर में सत्ता और विपक्ष के बीच तारतम्यता और विश्वास, जो वर्तमान की राजनीति कल्पना भी नहीं कर सकती। और अंत में......अक्टूबर में महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, लोक नायक जयप्रकाश नारायण जैसे महान विभूतियों की जयंती और पाप नाशिनी देवी दूर्गा की पूजा एवं बकरीद पूरा देश मना रहा है। यदि हम नौकरशाहों और राजनेताओं पर ही निर्भर रहेंगे, जैसा कि अब तक रह रहे हैं और लोगों पर निर्भर नहीं रहेंगे, हम बहुत कुछ उपलब्ध नहीं कर सकेंगे। ये नौकरशाह और राजनेता और भी मजबूत होते जायेंगे। नवम्बर में हिमाचल प्रदेश के 68 सीटों और दिसम्बर में गुजरात के 182 सीटों वाली विधान सभा चुनाव को सेमिफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में 100 प्रतिशत वोटरों के पास फोटो आईडी कार्ड हैं तो गुजरात में 99 प्रतिशत के पास हैं। अब ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है। फिलहाल जनता को तय करना है कि पांच सौ पैंतालिस पर सवा सौ करोड़ भारी पड़ना है या पहले की तरह बने रहना है...............।

Saturday, January 14, 2012

भारत एक "धर्मनिरपेक्ष" राज्य है. यंहा हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई भी रहते और सबमें संबेद्नायें है, सभी भावनात्मक है ये अलग बात हो सकती की कोई धर्म-मजहब के नाम पर भड़क जाये और ये लाज़मी भी है. देवियों एवं सज्जनों ! ये १८५७ नहीं और ना ईस्ट इंडिया है और ना ही अंतिम बादशाह बहादुर शाह ज़फर. ये तो २१ वीं शदी है. समय बदला, देश बदला, लोग बदले, विचार बदले, शिक्षा बदली, डिक्सनरी बदली, नई तकनिकी आई, नए शोध कार्य हुएऔर हम बदले लेकिन हमारे देश के भ्रष्ट नेता नहीं बदले वो हमारे बीच दोमुहा सांप की भूमिका निभाते रहे है यही नेता देश में अराजकता जैसी माहौल बनाते. कभी मंडल तो कभी कमंडल, तो कभी अल्पसंख्यक तो कभी पिछड़ा/अति पिछड़ा की बात कर समाज को खंडित करने का प्रयास करते.
देश को जो बांटने का प्रयास करेगा या खंडित करेगा या देश को लूटेगा वो कंही ना कंही थप्पड़, जूता, गाली या कंही गोली भी खा सकता. हाँ भावना में बहक कर अगर कोई घटना घटती है यो वाकई निंदा योग्य होगा. www.lokstambh.com

Wednesday, December 21, 2011

अन्ना बनाम सांसद

लोकपाल बिल को लेकर अन्ना एवं अन्ना की टीम को सबसे पहले ये समझना होगा भारतीय संविधान में इन सांसदों की ताकत क्या है? और इससे पहले यह भी समझना होगा की ये किनके द्वारा चुनाव जीतकर संसद के अन्दर प्रवेश करते? अगर ये सांसद भ्रष्ट है तो इन्हें कौन चुनकर भेजता? जब ये वाकई भ्रष्ट है तो फिर अन्ना या उनके टीम या भारतीय जनता कैसे यह उम्मीद पालें हुए है की सरकार (यानि सांसद) अपना हाथ काटकर एक स्वत्रन्त्र लोकपाल को दे दे.
अन्ना अनशन पर बैठें या जेल भरो आन्दोलन लाये इनसे ज्यादा लाभ नहीं मिलने को है. अगर अन्ना या भारतीय जनता सही में देश से या इन भ्रष्ट सांसदों / नेताओं को सांसद भवन से बाहर फेंकना होगा और ये तभी होगा जब भारत की जनता अपने-अपने मतों/वोट को दलगत आधार/पार्टी आधार से हटकर प्रयोग करें. इसके लिए टीम अन्ना के साथ-साथ भारत के उन तमाम लोगों को भारत के गाँव-गाँव में जाकर "भ्रष्ट नेताओं"के खिलाफ अलख जगाना पड़ेगा. मुझे याद है जब जोर्जे फ़र्नान्डिस मुजफ्फरपुर (बिहार) संसदिये क्षेत्र से लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे तो वंहा की जनता इनसे नाखुस थी इस बात को जोर्जे फ़र्नान्डिस भी समझ चुके थे उन्होंने एक मंच से अपने भाषण में कहा- "आप मुझे जिताए या ना जितायें मेरे लिए सांसद का मार्ग और भी है इसलिए आप ये ना समझे की आप सांसद का मार्ग बंद कर देंगें". बात भी सही है इनके लिए कई मार्ग है जैसे राज्य सभा का मार्ग, स्पीकर का मार्ग, कई तरह के बोर्ड में चयन आदि-आदि .
भारतीय जनता को इन भ्रष्ट नेताओं का मार्ग अगर ध्वस्त करना है तो लोगो पार्टी स्तर से हटकर एक स्वतंत्र विचार वाले लोगों का चयन कर उन्हें चुनाव में अपने-अपने क्षेत्र से चुनाव लड़ाना होगा और जित भी सुनिश्चित करनी होगी तभी इन भ्रष्ट नेताओ का कई तरह के मार्ग ख़त्म हो सकेंगे. यह काम सिर्फ अन्ना का नहीं होगा बल्कि समुच्य भारत वासियों का होगा. ठीक है अन्ना इस कार्य को लीड कर रहे है तो उन्हें करने दे पर आम लोगो को भी अन्ना के इस "भ्रष्टाचार ख़त्म करो" आन्दोलन के पीछे भाग लेना होगा. और यह कार्य इतना आसन भी नहीं पर उतना कठिन भी नहीं इसके लिए वैसा ही जोश-खरोस चाहिए जिस तरीके से अंग्रेजों के विरूद्ध आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी. .

Sunday, June 5, 2011

कांग्रेस की क्रूरता या सोनिया का विदेशी मूल का होना

इतिहास के पन्नों को अगर पलट कर देखा जाये तो ४ जून २०११ की रात जलियावाला कांड से कहीं ज्यादा भयावह थी क्योंकि यह क्रूरता भारतियों (कांग्रेसियों ) द्वारा किया गया ।

इस घटना की जीतनी भी निंदा की जाये वो कम है। यह भारतीय संविधान के अनुसार एक घोर अपराध है और ऐसे मामलों में सुप्रीमकोर्ट को हस्तक्षेप कर कांग्रेसियों को कठघरे में लाना चाहिए।

बात सिर्फ रामदो बाबा की नहीं बल्कि उन तमाम एक लाख लोगों (जिनमे महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग व जवान आदि ) शामिल थे उन्हें सर्कार के ५ हज़ार पुलिस कर्मी ने बेदर्दी, बर्बरता और क्रूरता से पिटाई कर उनके साथ लूटपाट किया और उनके अंगों के साथ छेड़-छाड किया।

मैं कांग्रेस सरकार या सोनिया गाँधी से पूछना चाहता हूँ की इन एक लाख लोगों का गुनाह क्या था? आज पूरा भारत (कांग्रेसियों) को छोड़ यह सवाल कर रहा है। इसका जवाब नेहरु खानदान को तो देना ही पड़ेगा। सोनिया के सिपाही क्या सोनिया को वेदेशी मूल होने का मौका दे रहे है? कपिल सिब्बल कोई राजनेता नहीं बल्कि वे एक अधिवक्ता है फिर सोनिया या नेहरु खंडन के लोग इन लोगों के कहने पर इतनी बर्बरता कैसे दिखाई । ऐसे में लगता है की सोनिया को भारतीय महिला, बच्चों, बुजुर्ग और जवान से मतलब नहीं।