Wednesday, October 17, 2012

सवा सौ कड़ोड़ पर भारी पांच सौ पैंतालिस

सवा सौ कड़ोड़ पर भारी पांच सौ पैंतालिस श्वेत क्रांति के जनक रहे डॉ. वर्गीज कुरियन ने अपनी आत्मकथा ‘मेरा भी एक सपना था’ (I too had a dream) में लोकतंत्र के प्रति चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि ‘‘आखिर लोकतंत्र है क्या? यह निश्चित रूप से वह नहीं है जो हमारे देश में दुर्भाग्यवश समझा जाने लगा है: नौकरशाहों की, नौकरशाहों द्वारा और नौकरशाहों के लिए सरकार।’’ लोकतंत्र के इस ब्राण्ड में लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। जनलोकपाल बिल की मांग करने वाले अन्ना और अरविंद केजरीवाल हर मंच पर लोकतंत्र की लोकशाही की बात करते हैं जिसकी चिंता डॉ. कुरियन ने की थी। आजादी के समय राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने नेहरू से कहा था कि राजनीति के क्षेत्र में हम एक दूसरे को साफगोई के साथ समझें। गांधी, कुरियन एवं लोक नायक जय प्रकाश नारायण से लेकर अन्ना, केजरीवाल हर किसी के केन्द्र में आम जनता को स्थापित करने की चिंता है। लेकिन वर्तमान में जो परिदृश्य चल रहा है वहां आम आदमी कहीं नहीं दिखता। ऐसा महसूस होता है कि देश की सवा करोड़ जनसंख्या पर पांच सौ पैंतालिस सांसद भारी पड़ रहें हैं। सांसदों को जब अपनी सुविधा, सुरक्षा और संरक्षण में बढ़ोत्तरी करने की बात आती है तो सारे सांसद एकजुट हो जाते हैं लेकिन जब लोकशाही, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने के लिए जनलोकपाल विधेयक पारित करने की बात हो तो कुछेक को छोड़ सारे साांसद विरोध में खड़े दिखते हैं। उन्हें देश में जरूरत मंद लोगों की गंभीर एवं संवेदनशील मुद्दे पर ये आंकड़े अपना रुख किसी सिद्धान्त तथ्यपूर्ण कारणों से तय करने की बजाय वोटों के गणित से अधिक प्रभावित करता है। वाजपेयी सरकार ने एटमी परीक्षण किया। कई देशों ने प्रतिबंध लगाए। तब कांग्रेस ने कहा देश को नुकसान हुआ। लेकिन यूपीए की सरकार बनी तो मनमोहन सिंह ने अमेरिका से एटमी करार के लिए सरकार को ही दांव पर लगा दिया। तब विपक्ष में बैठी भाजपा कह रही थी कि इससे देश को नुकसान होगा। जनलोकपाल 42 साल से संसद में अटका हुआ है। एक बार तो विधेयक पेश हो चुका है। कांग्रेस की सरकार प्रस्ताव लेकर आती तो विपक्ष विरोध करता। लेकिन जब राजग सरकार प्रस्ताव लेकर आई तो कांग्रेस ने विरोध किया। और जब अन्ना के आंदोलन का दबाव बना तो यूपीए और राजग दोनों विपक्ष बन गए। ये तमाम उदाहरण है कि एफडीआई, पेट्रोल-डीजल की कीमत, पेंशन बिल, आदि जैसे कई आवश्यक विधेयकों पर राजग के शासन में कांग्रेस विरोध दर्ज कराया और जब यूपीए की सरकार कई मुद्दों पर कड़े फैसले लेने शुरू किए तो तृणमूल के ममता बनर्जी ने समर्थन वापस ले लिया तो विपक्ष की भूमिका में राजग ने संसद न चलने देने का अभियान चलाया। यह वही देश है जब नेहरू ने अटल बिहारी बाजपेयी को देश का भावी नेता बताया था तो अटल जी ने इंदिरा गांधी को दुर्गास्वरूपा कहा था। वहीं इंदिरा जी ने जब अपने शासनकाल में विपक्ष के नेता अटल बिहारी बाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र के अधिवेशन में देश का प्रतिनिधित्व करने भेजा था। यह था उस दौर में सत्ता और विपक्ष के बीच तारतम्यता और विश्वास, जो वर्तमान की राजनीति कल्पना भी नहीं कर सकती। और अंत में......अक्टूबर में महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, लोक नायक जयप्रकाश नारायण जैसे महान विभूतियों की जयंती और पाप नाशिनी देवी दूर्गा की पूजा एवं बकरीद पूरा देश मना रहा है। यदि हम नौकरशाहों और राजनेताओं पर ही निर्भर रहेंगे, जैसा कि अब तक रह रहे हैं और लोगों पर निर्भर नहीं रहेंगे, हम बहुत कुछ उपलब्ध नहीं कर सकेंगे। ये नौकरशाह और राजनेता और भी मजबूत होते जायेंगे। नवम्बर में हिमाचल प्रदेश के 68 सीटों और दिसम्बर में गुजरात के 182 सीटों वाली विधान सभा चुनाव को सेमिफाइनल के रूप में देखा जा रहा है। हिमाचल प्रदेश में 100 प्रतिशत वोटरों के पास फोटो आईडी कार्ड हैं तो गुजरात में 99 प्रतिशत के पास हैं। अब ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो भविष्य के गर्भ में है। फिलहाल जनता को तय करना है कि पांच सौ पैंतालिस पर सवा सौ करोड़ भारी पड़ना है या पहले की तरह बने रहना है...............।

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