मैं बार-बार कह रहा हूँ की भारत देश की आबादी इतनी अधिक है की इसे संभालना किसी भी सरकार या गैर सरकार संगठन के लिए मुश्किल है। आबादी बढ़ गई पर भारत का आन्तरिक सुभिधाये नहीं बढ़ पाई रेल कर्मचारी क्या करे उसे जीतनी सुभिधाये दी गई है उसे ही वह अपना कर्तब्य समझता है। यात्रियों की संख्या को देखते हुए ट्रेन की बोगिया २०-२२ कर दी गई पर रेल ट्रैक को नहीं बढाया गया ऐसे में यह कहना बड़ा कठिन हो जाता की कौन सी गाड़िया किस प्लेटफोर्म पर आगमन करेगी।
यात्री भी मजबूर है चुकी जनसँख्या के हिसाब से जीतनी गाड़िया होनी चाहिए वो तो है नहीं अगर थोड़ी है भी तो सीट बहुत कम ऐसे यात्री एक-दुसरे पर चढ़ जाना पसंद करता चाहे किसी की जान चली जाये पर वो धक्का-मुक्की कर जाना जरूर पसंद करता।
आये दिन ऐसी घटना होती रहती है की रेल कर्मचारी को निर्धारित या घोषित प्लेटफोर्म को एका-एक बदलना पड़ता है। ऐसे में यात्रियों को भी सजग रहने की आवश्यकता होती पर यात्री एक-दुसरे यात्री का ख्याल कंहाकरने वाले वो तो एक-दुसरे की जान लेने पर तुले होते की आगे हम जाये तो हम जाये...
आप सडको पर भी यही नज़ारा देख सकते है। गाँव की ओर बस जानेवाली को भी आप देख सकते की किस तरह से यात्री एक-दुसरे पर लड़ कर यात्रा करते । लोकल सवारी चाहे वह रेल , बस या ऑटो हो सब में यात्री लादे जाते है। आखिर यात्रियों के पास क्या बिकल्प है? सरकार क्या करेगी? सरकार तो नहीं कहती की आप लादे जाओ फिर भी आप एक-दुसरे पर चढ़ के जाते हो आखिर क्यों?
जनता भी कम दोषी नहीं ? भले ही जाँच के लिए ममता जी ने कह डाला पर जनता को खुद इसकी जांच करनी चाहिए की दोषी सरकार या हम ?????????????????????????
3 comments:
shai kaha aapne!
जनता बिलकुल दोषी है,क्योकि वह भ्रष्ट मंत्रियों से लड़ने को तैयार नहीं है / ऐसे मंत्री जो जनता को अनावश्यक दौर-धूप करने को मजबूर कर रहें हैं / जरा सोचिये ये मंत्री और अधिकारी ईमानदारी से काम करें तो हर राज्य का संतुलित विकाश होगा ,तो वहीँ रोजगार भी बढेगा ,फिर देश के कोने-कोने से लोग दिल्ली क्यों आयेंगे / जनता बिलकुल दोषी है ,जो भ्रष्ट मंत्रियों को जूता नहीं मारती है / आप भी इस दोष में शामिल हैं और हम भी / अब भी वक्त है अपने क्षेत्र में जागरूकता फ़ैलाने का काम निडरता से कीजिये /
भाई हम हमेशा उलटा ही सोचते है,यह जनता सच मै दोषी है हमेशा इन ही लोगो की बातो मै आ कर इन्हे बार बार वोट देती है, कभी धर्म के नाम से तो कभी जात पात के नाम से,आपस मै लडते है, इस लिये जनता ही दोषी है, कोन कहता है सरकार नही समभाल सकती जनता को समभाल सकती है , अगर नही तो क्यो बेठी है ?? जब तक हम आप आजरुक नही होते तब तक यही सब होता रहेगा, हर सालो अरबो रुप्ये का रेलवे बजट बनता है किसी ने पता किया कि यह सब पैसा कहां जाता है, कोन सी नयी लाईन बिछी, कितनी नयी गाडियां चली.... इस सरकार को लाने वाली जनता है इस लिये सरकार को लेनी चाहिये इस जनता की जिमेदारी, हम सरकार को चुनते है अपने भले के लिये, देश के भले के लिये, ना कि इन के भले के लिये, जो सरकार देश का देश वासियो का भला नही कर सकती, वो जाये भाड मै
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