भारतीय मीडिया का आज़ादी के बाद अब तक यही रवैया रहा है की "जन्हा देखा खीर उन्ही गया फिर"। बड़ी से बड़ी खबर को आप गौर से देखेंगे तो आपको लगेगा की कंही न कंही इसमें मीडिया कर्मी अपना उल्लू सीधा किया है। भारत के चौथी अस्तभ और समाज के दर्पर्ण कहलाने वाले ये मीडिया कर्मी आज सिर्फ अपना उलू सीधा करते है।
खबरे बनती नहीं आज बनाई जाती है। चाहे वो छोटे तबके के पत्रकार हो या बड़े तबके के सभी अपने स्वार्थ में ख़बरों को तरजीह देते है। इन्हें अगर आप दुत्कार दे तो आपके पीछे पर जायेंगे और संसद या निचले अस्तर पर हंगामा खड़ा करना चाहेंगे। इनके अस्तर इतने निचे गिर गए फिर भी ये चौथी अस्तभ बने है क्योंकि इनके पीछे खबरची नेता है।
आपको सायद नहीं मालूम की ये लोग प्रधान मंत्री कोटे से एक सप्ताह के लिए विदेश भेजे जाते सिर्फ इसलिए की आप जाओ थोडा येशमौज कर लो। आप गौर से देखेंगे तो कुछ चैनल सरकार के पक्ष में रहेगी तो कुछ प्रिंट मीडिया भी। मीडिया में भी मारा-मारी है।बड़े मीडिया छोटे मीडिया कर्मी को तरजीह नहीं देते तो छोटे मीडिया भी बड़े मीडिया को तरजीह नहीं देते। अन्तः हालत ऐसे उत्पन्न होते की कुछ ख़बरों जन्हा बड़ी रकम मिलनेवाली होती वंहा इन्हें नुक्सान उठाना पड़ जाता । आप जब भड़ास मीडिया को पढेंगे या अस्थानिये अस्तर पर देखेंगे तो मीडिया का रोल आपको बड़ा हस्याद्पद लगेगा। आज का मीडिया कर्मी सही मायने में चटोरपन हो गया है। चटोरपन हो भी तो क्यों न हो नेताओ का तो मीडिया के साथ ऐसा सम्बन्ध है जैसे एक पति-पत्नी का। कुछ प्रमुख पार्टी के नेता को आप प्रत्येक दिन देख सकते। खासकर भा जा पा और कांग्रेस में। ये नेता ऐसे है जिन्हें अपने जिला का चौहद्दी नहीं मालूम फिर भी राज्य सभा के सदस्य बना दिए जाते या फिर जाती के नाम पर सदस्य। यही नेता गन मीडिया वालो को चापलूसी सिखाता खबरों को उलट-पुलट करना बताता। तो भाई सरकारी ऑफिसर भी कान्हा पीछे....
आज का मीडिया आपको फ़ोन लगाएगा पूछेगा की :
सर! आज का मौसम कैसा रहेगा
जवाब में : बिलकुल अच्छा रहेगा
सर! ऐसी संभावना हो सकती है की एक-दो रोज में मौसम कुछ बदल जाये
जवाब में : हाँ ऐसा क्यों नहीं हो सकता ?
कल होकर आप अखबारों में देखेंगे की मौसम विभाग ने कहा एक-दो रोज के अन्दर वर्षा के साथ कुछ छींटे भी हो सकते।
दिल्ली के जी बी रोड पर पुलिस का दौरा हुआ खबर छपी की "तबले की थाप की जगह पुलिस के बूट की थाप" । आप बारीकी से देखे तो कई ऐसे खबर आपको मिलेंगे की ये खबरे या तो बनाई गई है या फिर पैसे लेकर लिखी गई है।
मीडिया कर्मी धमकाते भी ज्यादा है " आपको कहेंगे देख लेंगे " मीडिया का अस्तर आज इस हद तक गिर चूका है की इनके लाख लेखनी के बावजूद कोई परिवर्तन नहीं होता। आज के दौर में इनका मिजाज़ यही है "जिधर देखे खीर उधर गए फिर" .
6 comments:
काफी हद तक ठीक है..
आज पत्रकार रात की पार्टियों में विश्वास करता है। उसे जब तक टुकड़े डालो तब तक ही चुप रहता है। नहीं तो वो आपकी ऐसी की तेसी करने पर तुल जाता है। यह चौथा स्तम्भ है या फिर चौथा ग्रह पता नहीं। लेकिन आपने एकदम सही लिखा है।
आप की बात से सहमत है, आज का मिडिया दुम हिलऊ बनता जा रहा है
सुरेन्द्र जी...मैं आपकी सोच से सहमत नहीं हूं...आपने मीडियावालों के प्रति जो धारणा बनाई है...वो काफी हद तक गलत है...आप सबको एक ही तराजू पर नहीं तौल सकते...माना आपके साथ कुछ बुरा हुआ होगा... लेकिन सभी मीडियाकर्मी एक जैसे नहीं होते...मैं खुद 4 साल से मीडिया में हूं..औऱ मुझे कभी किसी मोड़ पर ऐसा नहीं करना पड़ा है...मैं अपने उसूलों पर चलती हूं और अपने इस कार्य से बेहद संतुष्ट हूं...कृप्या ऐसी भ्रांति फैलाने से पहले इसे पूरी तरह से जांच-परख लें...भाव में बहकर कुछ भी लिख देना उचित नहीं है
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