Friday, June 18, 2010

फांसी के फंदे में मुहब्बत

कहते है लोग प्यार दो तरीके के होते है एक टेक्टोनिक दूसरा प्लुतोनिक। दोनों में जमीं-आसमा का अंतर है। न जाने क्यों आज-कल की लड़कियां समझने में असमर्थ है ? नतीजे के तौर पर फांसी का फंदा ही नज़र आता है। जबकि मरने से पहले ये लडकिय किसी को भी फंसने या फ़साने से वंचित कर जाती है अपने सुसाइड नोट में लिखकर । लेकिन इन्हें क्या पता की मरने के बाद इनके परिवार के सदस्य या प्रेमी पुलिस के जाल में कैसे फंसते या फसाए जाते या पुलिस इनके परिवार के लोगो को कैसे सताती है?
प्यार करना जुर्म नहीं ? ऐसा मेरा मानना है किन्तु प्यार में अपने होशो-हबास को इस क़द्र खो नहीं देना जिससे फांसी का फंदा ही गले में डाल ले। मैंने अपने जीवन में कई ऐसे उदाहरण देखे है की लडकिय अंतिम क्षण में खुद को जिम्मेवार समझकर आत्म-हत्या कर लेती । सायद इनका प्रेम के प्रति नजरिया हो , सायद ये समझती हो की प्रेमी बदनाम न हो और मैंने उनके प्रेम के लिए क़ुर्बानी दे डाली। किन्तु यह ढकोसला ही कहलायेगा। आप में जब लड़ने की क्षमता न हो, अच्छे-बुरे का ज्ञान न हो तो प्रेम ही कैसा? प्रेम तो एक तपस्या है, बलिदान है। महाभारत काल में राधा ने भी कृष्ण से प्यार किया जो आज भी अमर है? लोग इनकी पूजा करते। लोग आज राधे-कृष्ण का गुण-गान करते, पूजते , अपने मन-मस्तिक में रखते फिर तुम्हारे प्रेम में ऐसी कौन सी बात आ जाती की तुम आत्म -हत्या या फांसी के फंदे में खुद को डाल लेती ?
मतलब साफ़ है की तुम्हारा प्रेम न तो पाक है न साफ़ ? तुम प्रेम के नहीं वासना के इतनी दीवानी हो जाती की तुम्हे "प्रेम" शब्द का ज्ञान ही नहीं हो पाता ।
आज-कल की लड़कियां अपने माता - पिता से कोसों दूर रहकर अकेली वास करती इन्हें पूरी आजादी होती छूटकर टहलने-घुमने , बात-चित करने का । ये एक ही घर के अन्दर "पी जी" स्टाइल में ज्यादातर रहती , घुमती सैर करती पर इन्हें क्या पाता की ये एक दिन अपने ही गले में अपने ही दुपट्टा से फांसी लगाएंगी।
दोस्तों , माता एवं बहनों खुद को संभलो इज्ज़त तुम्हारा है इस इज्ज़त को तुम्हे ही संभालना है वर्ना कुत्ते तो हज़ार है जो तुम्हे खाने को तैयार बैठे है।
तुम ये गफलत में न रहो की तुम्हे चाहने वाले हज़ार है ? तुम इस फ़िराक में रहो की तुम लूटो ही नहीं । एक बार लुट गई न तो कंही के भी नहीं रहोगी। अंजाम वही है की प्यार में फांसी ..............................................

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

बिलकुल सही लिखा जी, यह नही जानती प्यार क्य है... ओर मरने के बाद मां बाप के लिये आफ़त पेदा कर जाती है

Unknown said...

जिन्दा लोगों की तलाश!
मर्जी आपकी, आग्रह हमारा!!


काले अंग्रेजों के विरुद्ध जारी संघर्ष को आगे बढाने के लिये, यह टिप्पणी प्रदर्शित होती रहे, आपका इतना सहयोग मिल सके तो भी कम नहीं होगा।
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सच में इस देश को जिन्दा लोगों की तलाश है। सागर की तलाश में हम सिर्फ बूंद मात्र हैं, लेकिन सागर बूंद को नकार नहीं सकता। बूंद के बिना सागर को कोई फर्क नहीं पडता हो, लेकिन बूंद का सागर के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। सागर में मिलन की दुरूह राह में आप सहित प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति का सहयोग जरूरी है। यदि यह टिप्पणी प्रदर्शित होगी तो विचार की यात्रा में आप भी सारथी बन जायेंगे।

हमें ऐसे जिन्दा लोगों की तलाश हैं, जिनके दिल में भगत सिंह जैसा जज्बा तो हो, लेकिन इस जज्बे की आग से अपने आपको जलने से बचाने की समझ भी हो, क्योंकि जोश में भगत सिंह ने यही नासमझी की थी। जिसका दुःख आने वाली पीढियों को सदैव सताता रहेगा। गौरे अंग्रेजों के खिलाफ भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, असफाकउल्लाह खाँ, चन्द्र शेखर आजाद जैसे असंख्य आजादी के दीवानों की भांति अलख जगाने वाले समर्पित और जिन्दादिल लोगों की आज के काले अंग्रेजों के आतंक के खिलाफ बुद्धिमतापूर्ण तरीके से लडने हेतु तलाश है।

इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम हो चुका है। सरकार द्वारा देश का विकास एवं उत्थान करने व जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, हमसे हजारों तरीकों से टेक्स वूसला जाता है, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ अफसरशाही ने इस देश को खोखला और लोकतन्त्र को पंगु बना दिया गया है।

अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, हकीकत में जनता के स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को डकारना और जनता पर अत्याचार करना इन्होंने कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं।

आज देश में भूख, चोरी, डकैती, मिलावट, जासूसी, नक्सलवाद, कालाबाजारी, मंहगाई आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका सबसे बडा कारण है, भ्रष्ट एवं बेलगाम अफसरशाही द्वारा सत्ता का मनमाना दुरुपयोग करके भी कानून के शिकंजे बच निकलना।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)-के 17 राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से दूसरा सवाल-

सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! अब हम स्वयं से पूछें कि-हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवकों) को यों हीं कब तक सहते रहेंगे?

जो भी व्यक्ति इस जनान्दोलन से जुडना चाहें, उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्ति हेतु लिखें :-

(सीधे नहीं जुड़ सकने वाले मित्रजन भ्रष्टाचार एवं अत्याचार से बचाव तथा निवारण हेतु उपयोगी कानूनी जानकारी/सुझाव भेज कर सहयोग कर सकते हैं)

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा
राष्ट्रीय अध्यक्ष
भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय
7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)
फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666

E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in