Wednesday, August 26, 2009

भाजपा को मुद्दे की लडाई लड़नी चाहिए न की धर्म और मजहब की

संघ परिवार में व्यापक रूप से भ्रष्टाचार आ चुका है। संघ का जब से राजनीतिकरण हुआ तभी से संघ का प्रत्येक सदस्य मूल उद्देश्य से भटक गया। संघ में पैसों का खेल खेला जाने लगा जैसे क्रिश्चानिटी में हो रहा है। संघ की शाखा अब एक्के-दुक्के ही लगतीहै। संघ से जुड़े व्यक्ति एक-दुसरे के घर जा-जा कर अपना ही राग अलापते नजर आयेंगे। देश-दुनिया की बात से कोसों दूर राजनीत की बात अवस्य करेंगे।
भाजपा के शीर्ष नेताओं में गैर संघी ज्यादा रहे है। यही वजह है की भाजपा भी अपने मूल उदेश्यों को छोड़ अब तक भटकती रही है। न तो वह राम का ही नाम ले सकी और न रहीम का। १९५२ से सक्रिए राजनीत में एक ही पार्टी देश पर हाबी रही वह है कांग्रेस । बीच-बीच में कुछ-एक वर्षों के लिए भारतीये जनता ने कांग्रेस से मुंह मोड़ ली थी। वह भी रणनीतिकारों की वजह से वरना कांग्रेस को सत्ता से कोई दूर नही कर सकता था। आज भारतीये राजनीत में विपक्ष के पास कोई रणनीति नही । अब वो जमाना गया की कोई राम और रहीम के नाम पर सत्ता काबिज़ कर ले।
भाजपा को राजनीत करनी है तो संघ से अलग रहे और संघ को अपने मिशन में आगे बढ़ना हो तो वे राजनीत से कोसो दूर रहे।

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