Friday, November 14, 2008

मंदी के दौड़ में सिगरेट का धुंआ उरता रहा

मंदी-मंदी-मंदी........................................कहाँ है मंदी ? ये मंदी क्या होता है भाई आदि सवाल का जखीरा सिगरेट के धुँए में उरता रहा । जब मैंने उस व्यक्ति से ये जानने की कोशिश की कि भाई आप कौन सा सिगरेट पीतेहो और कितना पीते हो तो जवाब में उन्होंने बताया - गोल्ड फ्लैग, इसकी कीमत क्या है ? बोला - ४.०० रुपए प्रति सिगरेट और मैं प्रति दिन 1० सिगरेट पिता था अब इस मंदी के दौड़ में २० हो गया है। मतलब भाई साहब का खर्च मंदी से पहले प्रति दिन ४०.०० रुपये था अब महामंदी में इनका खर्च प्रति दिन ८०.०० रुपए हो गए।
जब-जब मंदी का दौड़ आता है सिगरेट, तम्बाकू, गुटखा और शराब की खपत ज्यादा होने लगतीऔर उत्पादन भी उधोग्कर्ता ज्यादा कराने लगते हैं। यहाँ स्तिथि बिल्कुल साफ़ है की मंदी का असर इन नशीली पदार्थों पर नही होता ।

1 comment:

ab inconvenienti said...

एक काम और करो, दारु की खपत पर भी नज़र रखो, मंदी का गम हल्का करने के लिए लोग इसी पर पैसे खर्च करेंगे, दारु कम्पनियाँ और ठेके मालामाल होने वाले हैं. (वैसे भी मालामाल हैं, पर अब और भी ज़्यादा हो जायेंगे).