Saturday, November 15, 2008

भारत में मंदी का खेल उच्च्स्तरिये

भारत अभी मंदी के दौड़ से बहुत पीछे है किंतु एलर्ट है। भारत में अब भी आम जन-जीवन पर इसका असर होता दिखाई नही दे रहा है किंतु बड़े -बड़े उद्योग घराने ने मंदी का खेल व्यापक रूप से खेलना शुरू कर दिया है। सरकार के तमाम कोशिशें के वावजूद निचले अस्तर के कर्मचारियों का शोषण करना उधोगपतियों का धंधा बन गया है।
उधोगपतियों द्वारा निचले अस्तर से छटनी शुरू है। कर्मचारियों का इन्क्रीमेंट, बोनस आदि जैसे सुविधा में कटौती करना, कर्मचारियों में छटनी का दहसत फैलाना इनका अभी मुख्या धंधा हो गया है। भारत में मंदी का असर आईटी और गारमेंट्स पर थोड़ा सा जरुर पड़ा है। इसका मतलब ये नही होता की बाज़ार के सभी सेक्टरों में मंदी छ गया है।
बैंकों द्वारा लोगों को ऋण नही मिलने से ऑटोमोबाइल क्षेत्र में मंदी दिखाई दे रही है जिस वजह से टाटा ने अपना उत्पादन हफ्ते-दो-हफ्ते के लिए रोका लेकिन विजय माल्या ने तीव्रगति से अपने कर्मचारियों का ही छटनी करना शुरू कर दिया। इसीतरह आईटी क्षेत्र में भी निचले अस्तर पर छटनी शुरू कर दिया गया।
मिडिया जगत में भी मंदी का दहसत जबरजस्त रूप से हाबी है। उधोगपतियों द्वारा विज्ञापन में कमी कर देने से इनके खस्ता हाल हो गए । मीडिया जगत में उच्चास्तारिये पदाधिकारियों का वेतनमान प्रतिमाह लाखो में है, जबकि निचले अस्तर पर प्रतिमाह हजार में। लेकिन यंहा भी अगर छटनी की बात होती है तो निचले अस्तर से ही।
उच्चास्तारिये लोग इस मंदी का खेल खेलकर सरकार, कर्मचारी और आम जनता में दहसत पैदा कर रहे हैं। सरकार को इस दिशा में जल्द ही कोई ठोस कदम उठाना चाहिए ताकि ये उच्चास्तारिये लोग मंदी का खेल, खेल नही सके।

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