Saturday, November 29, 2008

भारतीये तंत्र व्यवस्था

भारत को आजाद हुए ६२ वर्ष हो गए किंतु आज भी भारत की तंत्र व्यवस्था ढीली और लोचपूर्ण है। एक कहावत है " जिधर देखें खीर उधर गए फिर" । भारत में अभी तक ऐसा ही देखने को मिला है। भारत में अगर आज़ादी है तो वह है " बोलने और लिखने " का। आडवानी जी जब तक गृह मंत्री रहे तब तक उन्होंने अपना जीवन परिचय किताब नही लिखा जब वो सत्ता से अलग हुए तो जीवन परिचय नाम से एक पुस्तक लिखी गई जो विवादास्पद था। उन्होंने इस पुस्तक में अपने को कंधार के घटना-क्रम से बिल्कुल अलग रखा।
आडवानी जी के कार्य-काल में कई ऐसे घटना-क्रम हुए जिसकी जांच प्रक्रिया आज तक पुरी नही हो सकी और न जाने कब तक चलेगी।
मुंबई ब्लास्ट १९९३ में भी हुई जिसकी जांच प्रक्रिया आज तक चल ही रही है। वर्ष २००८ के नवम्बर माह में आतंवादियों द्वारा मुंबई ब्लास्ट किया गया । इस घटना-क्रम को अंजाम आतंकवादियों ने जरूर दिया लेकिन इसके जिम्मेवार भारत सरकार और यंहा की तंत्र व्यवस्था है।
इस घटना के पहले हमारे खुफिया तंत्र कंहा थे, हमारे सुरक्षा कर्मी क्या कर रहे थे , हमारी सरकार क्या कर रही थी आदि सवाल सैकडों निर्दोष लोगों के मर जाने पर आपको मिलेगा वह भी सायद आपके स्वर्गवास के बाद। यही है हमारा तंत्र व्यवस्था।
भारत में एक प्रथा जबरदस्त चल पड़ी है वह यह की - बायोग्राफी । आप किसी के बाड़े में कुछ भी लिख दे । कई मिशाल है जिससे लेखक को जल्द ख्याति मिल जाती है। अगर आज कोई महिला अपने जीवन परिचय में यह लिखे की मैं ये पी जे कलम से मोहब्बत करती थी तो उसे ख्याति मिल जायेगी भले ही मामला कोर्ट में क्यूँ न जाए ।
आप अलोग-ब्लॉग पर कुछ भी लिख डालें पर इसकी खोज-ख़बर लेने वाला कोई नही यही है भारतीये तंत्र व्यवस्था।

5 comments:

appaliwal said...

mitra aapne sahi kahaa kripya yeh bhi dekhen http://agrakikhabar.blogspot.com/2008/11/blog-post.html

परमजीत सिहँ बाली said...

आप ९३ के कंधार की बात कररहे हैं उस से पहले हुए ८४ के जनसंहार के दोषीयो को आज तक सजा नही मिल सकी। यही तो है हमारा प्रजातंत्र देश की प्रजातंत्र में विश्वास रखने वाली सरकारों के कारनामे।;)

Udan Tashtari said...

इस दुखद और घुटन भरी घड़ी में क्या कहा जाये या किया जाये - मात्र एक घुटन भरे समुदाय का एक इजाफा बने पात्र की भूमिका निभाने के.

कैसे हैं हम??

बस एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खुद के सामने ही लगा लेता हूँ मैं!!!

A Priydarshi said...

bilkul sahi baat kaha aapne.

Unknown said...

मित्र, लगता है आप हीनभावना से ग्रसित हो चुके हैं. अपनी सोंच और नजरिये को बदलिये, तभी हिन्दुस्तान बदलेगा. वैसे भी कबीर ने कहा है- बुरा जो देखन मैं चला. . . . । अभी जरूरत है अपने गिरेबान में झांकने की. पहले खुद को तो सुधारिये, देश खुद ब खुद सुधर जायेगा.

आपका हितैषी