लोकपाल बिल को लेकर अन्ना एवं अन्ना की टीम को सबसे पहले ये समझना होगा भारतीय संविधान में इन सांसदों की ताकत क्या है? और इससे पहले यह भी समझना होगा की ये किनके द्वारा चुनाव जीतकर संसद के अन्दर प्रवेश करते? अगर ये सांसद भ्रष्ट है तो इन्हें कौन चुनकर भेजता? जब ये वाकई भ्रष्ट है तो फिर अन्ना या उनके टीम या भारतीय जनता कैसे यह उम्मीद पालें हुए है की सरकार (यानि सांसद) अपना हाथ काटकर एक स्वत्रन्त्र लोकपाल को दे दे.
अन्ना अनशन पर बैठें या जेल भरो आन्दोलन लाये इनसे ज्यादा लाभ नहीं मिलने को है. अगर अन्ना या भारतीय जनता सही में देश से या इन भ्रष्ट सांसदों / नेताओं को सांसद भवन से बाहर फेंकना होगा और ये तभी होगा जब भारत की जनता अपने-अपने मतों/वोट को दलगत आधार/पार्टी आधार से हटकर प्रयोग करें. इसके लिए टीम अन्ना के साथ-साथ भारत के उन तमाम लोगों को भारत के गाँव-गाँव में जाकर "भ्रष्ट नेताओं"के खिलाफ अलख जगाना पड़ेगा. मुझे याद है जब जोर्जे फ़र्नान्डिस मुजफ्फरपुर (बिहार) संसदिये क्षेत्र से लोक सभा का चुनाव लड़ रहे थे तो वंहा की जनता इनसे नाखुस थी इस बात को जोर्जे फ़र्नान्डिस भी समझ चुके थे उन्होंने एक मंच से अपने भाषण में कहा- "आप मुझे जिताए या ना जितायें मेरे लिए सांसद का मार्ग और भी है इसलिए आप ये ना समझे की आप सांसद का मार्ग बंद कर देंगें". बात भी सही है इनके लिए कई मार्ग है जैसे राज्य सभा का मार्ग, स्पीकर का मार्ग, कई तरह के बोर्ड में चयन आदि-आदि .
भारतीय जनता को इन भ्रष्ट नेताओं का मार्ग अगर ध्वस्त करना है तो लोगो पार्टी स्तर से हटकर एक स्वतंत्र विचार वाले लोगों का चयन कर उन्हें चुनाव में अपने-अपने क्षेत्र से चुनाव लड़ाना होगा और जित भी सुनिश्चित करनी होगी तभी इन भ्रष्ट नेताओ का कई तरह के मार्ग ख़त्म हो सकेंगे. यह काम सिर्फ अन्ना का नहीं होगा बल्कि समुच्य भारत वासियों का होगा. ठीक है अन्ना इस कार्य को लीड कर रहे है तो उन्हें करने दे पर आम लोगो को भी अन्ना के इस "भ्रष्टाचार ख़त्म करो" आन्दोलन के पीछे भाग लेना होगा. और यह कार्य इतना आसन भी नहीं पर उतना कठिन भी नहीं इसके लिए वैसा ही जोश-खरोस चाहिए जिस तरीके से अंग्रेजों के विरूद्ध आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी. .

Wednesday, December 21, 2011
Sunday, June 5, 2011
कांग्रेस की क्रूरता या सोनिया का विदेशी मूल का होना
इतिहास के पन्नों को अगर पलट कर देखा जाये तो ४ जून २०११ की रात जलियावाला कांड से कहीं ज्यादा भयावह थी क्योंकि यह क्रूरता भारतियों (कांग्रेसियों ) द्वारा किया गया ।
इस घटना की जीतनी भी निंदा की जाये वो कम है। यह भारतीय संविधान के अनुसार एक घोर अपराध है और ऐसे मामलों में सुप्रीमकोर्ट को हस्तक्षेप कर कांग्रेसियों को कठघरे में लाना चाहिए।
बात सिर्फ रामदो बाबा की नहीं बल्कि उन तमाम एक लाख लोगों (जिनमे महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग व जवान आदि ) शामिल थे उन्हें सर्कार के ५ हज़ार पुलिस कर्मी ने बेदर्दी, बर्बरता और क्रूरता से पिटाई कर उनके साथ लूटपाट किया और उनके अंगों के साथ छेड़-छाड किया।
मैं कांग्रेस सरकार या सोनिया गाँधी से पूछना चाहता हूँ की इन एक लाख लोगों का गुनाह क्या था? आज पूरा भारत (कांग्रेसियों) को छोड़ यह सवाल कर रहा है। इसका जवाब नेहरु खानदान को तो देना ही पड़ेगा। सोनिया के सिपाही क्या सोनिया को वेदेशी मूल होने का मौका दे रहे है? कपिल सिब्बल कोई राजनेता नहीं बल्कि वे एक अधिवक्ता है फिर सोनिया या नेहरु खंडन के लोग इन लोगों के कहने पर इतनी बर्बरता कैसे दिखाई । ऐसे में लगता है की सोनिया को भारतीय महिला, बच्चों, बुजुर्ग और जवान से मतलब नहीं।
Monday, February 28, 2011
इंतज़ार कब तक
आखिरकार क्या हुआ परिणाम रूपम पाठक हत्या कांड के जांच-परताल का ? पूरा देश इन्तेजार कर रहा है तार्किक परिणाम का| बिहार के मुख्य मंत्रीजी ने आनन्-फानन में इस राजनितिक हत्या कांड के अनुसन्धान की घोषणा तो कर, पर इसका जाँच परिणाम कब तक लोगो के बीच आएगा यह अपने-आप में एक पहेली बन चूका है| न जाने इस तरह के जांच परताल की घोषणा अनेकों बार बिहार और बिहार के बाहर देखने को मिला है। मिसाल के तौर पर आरुशी हत्या कांड आज तक पहेली बनी हुई है।
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