Monday, September 1, 2008

बिहार की बदहाली में नेताओं की तरक्की

बाढ़ आया, बाढ़ आया, बाढ़ आया .......... ये बात बिहार के लिए कोई नई बात नही है। यंहा तो यह प्रतेक वर्ष पर्व के रूप में आता ही है बस , फर्क इतना है की इस पर्व से जंहा आम जनता तबाही का मंजर देखती है वहीँ नेता अपनी झोली भरते नही थकते।
आजादी के ६२ बसंत बीत गए पर बिहार की जनता कभी स्वतंत्रता का गीत नही गुनगुना सकी। क्यों नही गुनगुना सकी? इन ६२ वर्षों में ६२ बड़े उद्योग बिहार में नही लग सके, नदियों की उरही नही हो सकी, कोशी का बाँध नही बाँध सका, खेतों के सिंचाई के लिए कनाल नही बन सका, रोजगार के लिए कोई नई तरकीब नही धुन्धी जा सकी। हम देखते आए है की इन ६२ वर्षों में अगर किसी उद्योग ने अपने पैर जमाये है तो वह है भ्रष्टाचार का उद्योग। जंहा चारा घोटाला जैसे कई भारश्ताचारी उद्योग से नेताओं की तरक्की हो रही है वन्ही बिहार की जनता रोजी-रोटी के लिए तरस रही है। लोग अपने घर-परिवार का पेट भरने के लिए बिहार से दुसरे राज्यों में पलायन करते है। वंहा इन्हें जिहाजूरी तो करनी ही होती है। साथ-साथ गली-लत-जुटता अदि का भी सेवन करना परता है। इसका जीता-जगता प्रमाण महाराष्ट्र व पंजाब है। मैं तो इन राज्यों को धन्यवाद देता हूँ की वे बिहारियों को अपने यंहा पेट भरने का जुगार उपलब्ध करा देते हैं।
बिहार की ब्यथा को इन ब्लॉग या वेब साईट के छोटे पन्नो पर अंकित नही किया जा सकता। मैं बिहार के उन युवाओं यवम जनता को आगाह करना चाहूँगा की बिहार में संपूर्ण क्रांति की अवाशाक्यता है। न की १००० करोर की भीख से संतुष्ट होना।
मैं पुनः अपील करता हूँ की जात-पात से ऊपर उठकर बिहार की खुशहाली के लिए उन तमाम भ्रष्टाचारी नेताओं को गद्दी से उखार फ़ेंक एक नई ग्रेजुअत पार्टी की सरकार का निर्माण करें ताकि सभी दपोर्शंखी नेताओं का सत्यानाश हो सके और विकाश का मार्ग प्रशस्त हो सके। आइये हम सब मिलकर शपथ लें...............................

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