महिलाओं से जब यह सबाल पूछा जाता है की अगले जन्म में "नारी होना" पसंद करेंगी या नही तो उनका जब्वाब होता है की "अगर हांथों में कलम हो तो नारी में hin जन्म लेना पसंद करुँगी" । मतलब साफ है जब महिला के साथ "पवार" शब्द जुर जाए तो "नारी सबला नही अबला की पुराणी कहाबत गौण हो जाती है । दरअसल में "पवार" शब्द की बुनियाद बुध्कलिन अम्बपाली, मध्यकालीन रजिया सुलतान यावं आधुनिक युग में रानी लक्ष्मी बाई ने राखी । इस करी को और भी age बढ़ते हुए महिलाओं ने घर के आंगन से मर्यादा का अंचल को संजोये हुए भारतीय सभ्यता यावं sanskriti का मिशल बनकर उभरीं जिनमें एनी बेसेंट, सरोजनी नायडू, इंदिरा गाँधी, मदर टेरेसा, महादेवी वर्मा, अमृता प्रीतम, नर्गिस, किरण बेदी, बचेंद्री पल, पी टी उषा , कल्पना चावला, सुनीता विलिउम्स यावं प्रथम महिला नागरिक प्रतिभा पाटिल शामिल हैं ।
आज जब हम महिला सशक्तिकरण और एकीस्विन्सदी क बात करे तो नारियों में आत्मबोध, आत्मबल और आत्मा विश्वास का sancharan भरपूर हुआ हैं । लेकिन अफसोस की बात हैं की नारिया अपनी गोरी बांहें , उभरी छातियाँ , नंगी जांघों , नंगी पेरू, अर्धनग्न नितंभ की मांसलता को खुलें आम सरको पर परोस रही हैं इसससे नारी सशक्तिकरण की बात कुछ अटपटा व बेसुरा होता जा रहा हैं भले हिन् आधी आबादी के प्रतिबिम्ब सरको से संसद तक नारी होने का dambh तो भारती हैं लेकिन महिला होना फक्र की बात अब भी बेमानी साबित हो रही हैं ।

Saturday, August 30, 2008
Tuesday, August 12, 2008
दहेज कानून ने घरों को तोरने का काम किया है : वर्मा
हिंदू विवाह कानून में दहेज़ कानून ने न जाने कितने घरों को जोराने की बजाये तोरने का कम कीया है। जिसका प्रमाणिक तौर पर सर्वोच्य न्यायलय ने भारत में तलाक के बढते मामलों पर चीनता व्यक्त करते हुए कहा की हींदू विवाह ने देश की पारिवारिक प्रणाली को मजबूत बनने की बजाये कमजोर कीया है। मेरा मानना है की दहेज़ कानून में विसंगतियां होने के कारन आज समाज में व्यापक पैमाने पर विवाह होने के कुछ हिन् दीनों बाद तलाक की याचिका दर्ज कराइ जा रही है। मेरा यह भी मानना है की भारतीये समाज में न जाने कितने माता-पीता ने अपने अयोग्य , अपाहीज यवम मानसिक वीकृत बेटे-बेटीयों की शादी में अपारदर्शिता , झूठ यवम दहेज़ कानून की आर में स्वस्थ्य , योग्य युवक -युवतियों के साथ शादी कर देते हैं जिसका परिन्नाम्म यह होता है की दाम्पत्य जीवन खुशहाल होने के बदले अभीशाप बनकर रह जाता है। मेरी राये में यैसे माता-पीता जो अयोग्य यवम अपाहीज व मानसिक वीकृत बेटे , बेटीयों की शादी झूठ , अपारदर्शिता यवम दहेज़ कानून की आर में करते है उन्हें भारतीय संविधान में संशोधन कर यैसे माता-पीता को कठोर दंड देने का प्रावधान करना चाहिए तथा दहेज़ कानून में भी संशोधन करना चाहिये ।
प्रकाशित दैनिक आज , ०३ जूलाई २००८ पेज संख्या ०४
प्रकाशित दैनिक आज , ०३ जूलाई २००८ पेज संख्या ०४
Monday, August 11, 2008
लालू और आलू में अन्तर नही
जी हाँ चौकिये मत ! नेता में लालू , सब्जी मैं आलू और जनवर मैं भालू गौर से देखने पर समानता तीनो मैं पर लालू आलू की तासीर मैं अन्तर न के बराबर है । लालू हर जगह अपने बर्बोले के कारन फिट हो जाते हैं और वाह-वही लुट लेते हैं तो आलू हर मौसम में हर सब्जी के साथ जयेकेदर बनकर लालू की तरह हर के जुबान पर है । जिस तरह भालू हर किसी के जुबान पर मनोरंजन के रूप में है वही लालू बिहारीपन रिफ्रेशमेंट के रूप में चर्चित हैं। यह अलग बात है की लालू कित्रिम लाल बत्ती से पूछे - जाने जाते हैं तो आलू और भालू प्राकृतिक वातावरण से ।
Wednesday, August 6, 2008
कहना जरूरी है ...
मन में अगर मगर कुछ भी है तो बिना रुके, बिना झिझके कभी भी माहौल को देखते हुए अपनी बात, जजबात कहने से अपने को मत रोकिये जो भी है मन निकल दीजिए दोस्तों के सामने क्युकी दोस्त ही है जो आपके अच्छे बुरे सरे बातों को सुनकर भी बुरा नहीं मानेगा। जब भी कुछ कहेगा भलाई के लिए ही, कुछ एक की बात छोड़ दीजिए जो केवल कीच कीच करते हैं दोस्तों से भी।
Subscribe to:
Posts (Atom)