लोग कहते आए हैं की अपने गिरिवान या अपने को सही कर ले तो देश अपने आप सुधर जाएगा। लेकिन मैं अपने ४२ वें बसंत में देखा है की लोग नही सुधरे।
मैं डेल्ही में १९९० के दशक में कदम रखा और संघ लोक सेवा की तैयारी में लग गया । मेरी सोंच बिल्कुल पारदर्शिता थी। मैं प्रत्येक पहलुओं पर पारदर्शिता के साथ-साथ अनुशासनात्मक कदम रखता आया किंतु हम पीछे के कतार में ही अपने को पाया। आप आम लोगों के दिन-चर्चा पर ध्यान दे तो आपको लगेगा की कही न कही सामंतवादी इन्हे दबोच रखे हुए है और कह रहा है की पहले अपने गिरिवान में झांक कर देखो।
जीवन के हर पडाव पर आपा-धापी है। चाहे वह इंदिरा आवास की योजना हो, प्रधामंत्री रोजगार योजना हो, ग्रामीण रोजगार योजना हो, कोर्ट-कह्चरी, स्वाथ्थ्य योजना, बिजली-पानी, मकान-नक्शा, रेलवे आरक्षण, राज्य सरकार या केन्द्र सरकार की नौकरियां आदि क्षेत्र में अराजकता व्यापक पैमाने पर है। और इन अराजकता के पीछे सामंतवादी मानसिकता छुपी है।
ये तो शासन - प्रशासन की बात है । आप मीडिया के क्षेत्र में भी देखे तो वंहा भी वे वैसी ही ख़बर को लेते है जिससे उन्हें फ़ायदा हो । वे वैसी ख़बर को आमतौर पर जगह नही देते जिससे की उनके व्यापार पर असर डाले। आप अगर अखवार पढ़े और खबरों पर नजर डाले तो बहुत कुछ समझ में आ जायेगी। कई पत्रकार ऐसे मिल जायेंगे जो अवसरवादी है।
प्रत्येक व्यक्ति अपने गिरिवान में एक वार जरूर झांक कर देखता है किंतु हालत ऐसे उत्पन्न होते है जिससे वह भौचक होकर कुछ भी करने-सोंचने को विवश हो जाता यही है अवसरवादियों का प्रवचन ।
अगर सामंतवादी गिरेवान और देश सुधरने की बात करते हैं तो सबसे पहले उन्हें पारदर्शिता और अनुशासन में आना होगा लेकिन यह संभव ही नही है चुकी भारत में आज भी गुलामी प्रथा कायम है भले ही भारत आजाद हो गया हो। भारत में चाटुकारों और चापलुस्वाजो की कमी नही, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इनकी संख्या अत्यधिक है।
इसे पढ़ने के बाद क्या आप भी कहेंगे की गिरेवान में झांक कर देखो देश अपने आप सुधर जाएगा?
मैं डेल्ही में १९९० के दशक में कदम रखा और संघ लोक सेवा की तैयारी में लग गया । मेरी सोंच बिल्कुल पारदर्शिता थी। मैं प्रत्येक पहलुओं पर पारदर्शिता के साथ-साथ अनुशासनात्मक कदम रखता आया किंतु हम पीछे के कतार में ही अपने को पाया। आप आम लोगों के दिन-चर्चा पर ध्यान दे तो आपको लगेगा की कही न कही सामंतवादी इन्हे दबोच रखे हुए है और कह रहा है की पहले अपने गिरिवान में झांक कर देखो।
जीवन के हर पडाव पर आपा-धापी है। चाहे वह इंदिरा आवास की योजना हो, प्रधामंत्री रोजगार योजना हो, ग्रामीण रोजगार योजना हो, कोर्ट-कह्चरी, स्वाथ्थ्य योजना, बिजली-पानी, मकान-नक्शा, रेलवे आरक्षण, राज्य सरकार या केन्द्र सरकार की नौकरियां आदि क्षेत्र में अराजकता व्यापक पैमाने पर है। और इन अराजकता के पीछे सामंतवादी मानसिकता छुपी है।
ये तो शासन - प्रशासन की बात है । आप मीडिया के क्षेत्र में भी देखे तो वंहा भी वे वैसी ही ख़बर को लेते है जिससे उन्हें फ़ायदा हो । वे वैसी ख़बर को आमतौर पर जगह नही देते जिससे की उनके व्यापार पर असर डाले। आप अगर अखवार पढ़े और खबरों पर नजर डाले तो बहुत कुछ समझ में आ जायेगी। कई पत्रकार ऐसे मिल जायेंगे जो अवसरवादी है।
प्रत्येक व्यक्ति अपने गिरिवान में एक वार जरूर झांक कर देखता है किंतु हालत ऐसे उत्पन्न होते है जिससे वह भौचक होकर कुछ भी करने-सोंचने को विवश हो जाता यही है अवसरवादियों का प्रवचन ।
अगर सामंतवादी गिरेवान और देश सुधरने की बात करते हैं तो सबसे पहले उन्हें पारदर्शिता और अनुशासन में आना होगा लेकिन यह संभव ही नही है चुकी भारत में आज भी गुलामी प्रथा कायम है भले ही भारत आजाद हो गया हो। भारत में चाटुकारों और चापलुस्वाजो की कमी नही, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इनकी संख्या अत्यधिक है।
इसे पढ़ने के बाद क्या आप भी कहेंगे की गिरेवान में झांक कर देखो देश अपने आप सुधर जाएगा?
2 comments:
वमाॆ जी मै आपके इस विवेचना का समथॆन करता हूं । इस जमाने के लोग अवसरवादी हो गये है । मीडिया हो या अन्य संस्थान या सरकारी संस्थान हर जगह कमोवेश एक जैसी ही स्थिति है । सभी अपने फिराक में रहते है । अच्छा लेख है । मेरा पोस्ट भी पढ़े
वमाॆ जी मै आपके इस विवेचना का समथॆन करता हूं । इस जमाने के लोग अवसरवादी हो गये है । मीडिया हो या अन्य संस्थान या सरकारी संस्थान हर जगह कमोवेश एक जैसी ही स्थिति है । सभी अपने फिराक में रहते है । अच्छा लेख है । मेरा पोस्ट भी पढ़े
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